Teachers Day 2022: भारतीय शिक्षा जगत को नई दिशा देने वाले डॉ. राधाकृष्णन

Teachers Day: भारतीय शिक्षा जगत को नई दिशा देने वाले डॉ. राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर सन 1888 ई. को हुआ था।

Written By :  Mrityunjay Dixit
Update: 2022-09-04 13:11 GMT

डॉ. राधाकृष्णन

Click the Play button to listen to article

Teachers Day 2022: भारतीय शिक्षा जगत को नई दिशा देने वाले डॉ. राधाकृष्णन (Dr. Radhakrishnan) का जन्म तत्कालीन दक्षिण मद्रास से लगभग 60 किमी की दूरी पर स्थित तिरुत्तनी नामक छोटे से कस्बे में 5 सितम्बर सन 1888 ई. को सर्वपल्ली वीरास्वामी के घर पर हुआ था। उनके पिता वीरास्वामी जमींदार की कोर्ट में एक अधीनस्थ राजस्व अधिकारी थे। डॉ. राधाकृष्णन (Dr. Radhakrishnan) बचपन से ही कर्मनिष्ठ थे। उनकी प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा तिरुत्तनी हाईस्कूल बोर्ड व तिरुपति के हर्मेस वर्ग इवैंजेलिकल लूथरन मिशन स्कूल में हुई। उन्होंने मैट्रिक उत्तीर्ण करने के बाद वेल्लोर के बोरी कालेज में प्रवेश लिया और यहां पर उन्हें छात्रवृत्ति भी मिली।

डॉ. राधाकृष्णन की शिक्षा

सन 1904 में विशेष योग्यता के साथ प्रथम कला परीक्षा उत्तीर्ण की तथा तत्कालीन मद्रास के क्रिश्चियन कॉलेज में 1905 में बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए उन्हें छात्रवृत्ति दी गयी। उच्च अध्ययन के लिए उन्होंने दर्शन शास्त्र को अपना विषय बनाया। इस विषय के अध्ययन से उन्हें वैश्विक ख्याति मिली। एम. ए. की उपाधि प्राप्त करने के बाद 1909 में एक कालेज में अध्यापक नियुक्त हुए और शिक्षा के क्षेत्र में निरंतर प्रगति के पथ पर बढ़ते चले गये। उन्होंने मैसूर तथा कलकत्ता विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र के आचार्य के रूप में कार्य किया। उनका अध्ययन जिज्ञासा पर था। उन्होंने कहा कि वे बेचारे ग्रामीण व गरीब अशिक्षित जो अपनी पारिवारिक परम्पराओं तथा धार्मिक क्रियाकलापों से बंधे हैं जीवन को वे ज्यादा अच्छे से समझते हैं। उन्होंने द एथिक्स ऑफ वेदांत विषय पर शोध ग्रंथ लिखने का निर्णय किया। जिसमें उन्होंने दार्शनिक विषयों को सरल ढंग से व्यक्त करने का प्रयास किया । उनका कहना था कि, "हिदू वेदों वर्तमान शताब्दी के लिए उपयुक्त दर्शन उपलब्ध कराने की क्षमता रखता है। जिससे जीवन सार्थक व सुखमय बन सकता है"। उन्होंने मनोविज्ञान के अनिवार्य तत्व पर भी एक पुस्तक लिखी जो कि 1912 में प्रकाशित हुई।

मेरी अभिलाषा मस्तिष्कीय गति की व्याख्या करने की है: राधाकृष्णन

वह विश्व को दिखाना चाहते थे कि मानवता के समक्ष सार्वभौम एकता प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन भारतीय धर्म दर्शन है। उन्होंने कहा कि मेरी अभिलाषा मस्तिष्कीय गति की व्याख्या करने की है। उन्होंने 1936 में आक्सफोर्ड विवि में तीन वर्ष तक पढ़ाया। यहां पर उन्होंने युद्ध पर व्याख्यान दिया जो विचारात्मक था। 1939 में उन्होनें दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर व्याख्यान दिया। इसी समय द्वितीय विश्व युद्ध प्रारम्भ हो गया और वे स्वदेश लौट आए तथा उन्हें बनारस विवि का उपकुलपति नियुक्त किया गया।

1949 में वे सोवियत संघ में भारत के बने राजदूत

भारत को स्वाधीनता मिलने पर डा. राधाकृष्णन को विश्वविद्यालय आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया तथा 1949 में वे सोवियत संघ में भारत के राजदूत बने। इस दौरान उन्होंने लेखन भी जारी रखा। सन 1952 में डा. राधाकृष्णन भारत के उपराष्ट्रपति (Former Vice President Dr. Radhakrishnan ) बने। 1954 में उन्हें भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया। डा.राधाकृष्णन 1962 में राष्ट्रपति बने तथा इन्ही के कार्यकाल में चीन तथा पाकिस्तान से युद्ध भी हुआ। 1965 में उनको साहित्य अकादमी की फेलोशिप से विभूषित किया गया तथा 1975 में धर्म दर्शन की प्रगति में योगदान के कारण टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया। उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखी जो उनके ज्ञान तथा विचारशीलता को प्रमाणित करती हैं । उनकी इण्डियन फिलासफी,द हिंदू व्यू ऑफ लाइफ,रिलीफ एंड सोसाइटी ,द भगवद्गीता ,द प्रिंसिपल ऑफ द उपनिषद,द ब्रह्मसूत्र,फिलॉसफी ऑफ रवींद्रनाथ टैगोर आदि पुस्तकें सम्पूर्ण विश्व को भारत की गौरव गाथा के बारे में ज्ञान कराती हैं।

डॉ राधाकृष्णन निष्काम कर्मयोगी,करूण हृदयी,धैर्यवान, विवेकशील तथा विनम्र थे। उनका आदर्श जीवन भारतीयों के लिये ही नहीं अपितु सम्पूर्ण मानवता के लिए प्रेरणास्रोत है। उन्हीं को आदर्श मानकर आज पूरे भारत में शिक्षक दिवस मनाया जाता है। 

Tags:    

Similar News