यहां है हरितालिका व्रत की सही जानकारी, सुहाग की लंबी उम्र का व्रत इस दिन ही करना होगा शुभ

तृतीया तिथि रविवार को दिन 11:21 बजे के बाद शुरू होगी। जो सोमवार सुबह 9:01 बजे तक रहेगी।  इसलिए शास्त्रोनुसार सोमवार को तृतीया तिथि मानी जाएगी। भगवान शिव और पार्वती का पूजन सुहागिन व कुंवारी दोनों  करती है। शाम 7:54 बजे तक पूजा करना होगा। क्योंकि उसके बाद से भद्रा लग जाएगा।

Update:2019-08-31 12:24 IST

जयपुर: हरितालिका तीज पति के लंबी उम्र के लिए महिलाएं करती है। तीज भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया को रखा जाता है। इस बार हरितालिका तीज का व्रत 2 सितंबर,सोमवार को रखना शुभ है। तृतीया तिथि रविवार को दिन 11:21 बजे के बाद शुरू होगी। जो सोमवार सुबह 9:01 बजे तक रहेगी। इसलिए शास्त्रोनुसार सोमवार को तृतीया तिथि मानी जाएगी। भगवान शिव और पार्वती का पूजन सुहागिन व कुंवारी दोनों करती है। शाम 7:54 बजे तक पूजा करना होगा। क्योंकि उसके बाद से भद्रा लग जाएगा।

कहते हैं तीज में चतुर्थी सहित तृतीया में व्रत करना शुभ होता है। इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार कर शुभ मुहूर्त में भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करती हैं। हरतालिका तीज प्रदोषकाल में पूजा जाता है। सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त को प्रदोषकाल कहा जाता है। यह दिन और रात के मिलन का समय होता है।

तीज हर साल मैं करूं तीज ओ सांवरिया, साजन लगे तुझे मेरी भी उमरिया

विधि : इसके लिए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की बालू रेत व काली मिट्टी की प्रतिमा हाथों से बनाएं। पूजास्थल को फूलों से सजाकर एक चौकी रखें और उस चौकी पर केले के पत्ते रखकर भगवान शंकर, माता पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद देवताओं का आह्वान करते हुए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश का षोडशोपचार पूजन करें।

सुहाग की पिटारी में सुहाग की सारी वस्तु रखकर माता पार्वती को चढ़ाएं। इस व्रत की मुख्य परंपरा है। इसमें शिव जी को धोती और अंगोछा चढ़ाया जाता है। यह सुहाग सामग्री सास के चरण स्पर्श करने के बाद ब्राह्मणी और ब्राह्मण को दान देना चाहिए। इस प्रकार पूजन के बाद कथा सुनें और रात्रि जागरण करें। आरती के बाद सुबह माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं व हलवे का भोग लगाकर व्रत खोलें।

कथा : शास्त्रों के अनुसार मां पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय पर गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया। इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया। काफी समय सूखे पत्ते चबाकर काटी और फिर कई वर्षों तक उन्होंने केवल हवा पीकर ही व्यतीत किया। माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता अत्यंत दुखी थे। इसी दौरान एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर मां पार्वती के पिता के पास पहुंचे, जिसे उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया। पिता ने जब मां पार्वती को उनके विवाह की बात बतलाई तो वह बहुत दुखी हो गई और जोर-जोर से विलाप करने लगी।

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फिर एक सखी के पूछने पर माता ने उसे बताया कि वह यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं जबकि उनके पिता उनका विवाह विष्णु से कराना चाहते हैं। तब सहेली की सलाह पर माता पार्वती घने वन में चली गई और वहां एक गुफा में जाकर भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई। भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र को माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया। तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।

मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं विधि-विधानपूर्वक और पूर्ण निष्ठा से इस व्रत को करती हैं, वह अपने मन के अनुरूप पति को प्राप्त करती हैं। साथ ही यह पर्व दांपत्य जीवन में खुशी बनाया रखता है और महिलाएं सौभाग्यवती बनी रहती है।

अखंड सौभाग्य का प्रतीक है हरितालिका तीज का व्रत, पति की लंबी आयु के लिए जरुर रखें

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