दूरसंचार क्षेत्र: एक एकाधिकार या द्वयाधिकार ?
दूरसंचार क्षेत्र: रिलायंस जियो (Reliance Jio) के गोरिल्ला इंट्रोडक्शन के बाद सिर्फ एयरटेल (Airtel) ही बाजार में अपनी स्थिति बनाए रखने में कामयाब रहा है। वहीं सबसे अधिक बकाया वोडाफोन-आइडिया समूह का है।
हर विनाश एक अभूतपूर्व परिवर्तन लाता है। यह सार्वभौमिक भी है फिर चाहे वह राजनीतिक, आर्थिक या कोई भी अन्य क्षेत्र क्यों न हो। कोविड-19 महामारी (covid-19 pandemic) बेशक वैश्विक रूप से सदी की सबसे बड़ी समस्या है। यह सामान्य रूप से दुनिया और विशेष रूप से भारत (India) को नया आकार देने जा रहा है। महामारी ने देश और दुनिया की अर्थव्यवस्था (Economy) को एक भारी नुकसान पहुंचाया है तथा अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि इस महामारी के चलते आर्थिक मंदी (financial crisis) कब समाप्त होगी । लेकिन यह अवश्य स्पष्ट है कि इसका अंत बेहद ही निर्णायक होगा और इसका अंत इस तरह से निर्णायक होने की आशंका जताई जा रही है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार और संरचना को पूरी तरह से बदला जा सके।
अगर हम मौजूदा आर्थिक गतिविधियों को बहुत करीब से देखें तो यह स्पष्ट है कि भारतीय बाजार (Indian market) में छोटी कंपनियां धीरे-धीरे गायब हो रही हैं। कोविड -19 की महामारी ने व्यापक रूप से छोटे व्यवसाय को बुरी तरह प्रभावित किया है। यह भी माना जा सकता है कि अर्थव्यवस्था में जारी मंदी के मध्य छोटे व्यवसाय अपने पैर जमाने में असमर्थ हैं। ऐसा लगता है कि भारतीय आर्थिक संरचना (Indian economic structure) धीरे-धीरे एकाधिकार की ओर बढ़ रही है । जिसे वर्तमान हालात के मद्देनज़र आंशिक एकाधिकार भी कहा जा सकता है।
रिलायंस जियो और एयरटेल बाजार में अपनी स्थिति बनाए रखने में कामयाब हो पाए
तकनीकी रूप से किसी अर्थव्यवस्था को एकाधिकार कहना विवादास्पद हो सकता है । लेकिन वर्तमान परिस्थितियाँ निश्चित रूप से द्वयधिकार (दो कंपनियों के प्रभुत्व) बाजार का स्पष्ट संकेत दे रही हैं। रिलायंस जियो (Reliance Jio) के गोरिल्ला इंट्रोडक्शन के बाद सिर्फ एयरटेल (Airtel) ही बाजार में अपनी स्थिति बनाए रखने में कामयाब रहा है। इसके अतिरिक्त बीएसएनएल लगभग खात्मे के बेहद नज़दीक पहुंच रहा है तथा वोडाफोन कंपनी भी लगातार हो रहे घाटे से परेशान है। इसी के चलते निकटतम भविष्य में यह संभव है कि भारतीय दूरसंचार बाजार (Indian telecom market) में केवल दो कंपनियां ही जीवित रह पाएं। इन सबके अतिरिक्त वोडाफोन-आइडिया (vodafone-idea) के एजीआर संकट (AGR Crisis) के मद्देनजर चल रही मंदी दूरसंचार सेवा में प्रतिस्पर्धा को खत्म कर सकती है। भारतीय दूरसंचार क्षेत्र टूट रहा है, खात्मे के करीब पहुंच रहा है तथा हमारा डिजिटल भविष्य धीरे-धीरे धूमिल होता जा रहा है।
एजीआर क्या है?
AGR दूरसंचार कंपनियों से दूरसंचार विभाग द्वारा लिया जाने वाला उपयोग और लाइसेंस शुल्क है। इसमें स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क और लाइसेंस शुल्क शामिल है ।.जिसके अंतर्गत स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क 3 से 5 प्रतिशत के बीच है। लाइसेंस शुल्क कुल लाभ का 8 प्रतिशत है। टेलीकॉम सेक्टर में पूरा विवाद एजीआर की गणना को लेकर ही रहा है। दूरसंचार विभाग एजीआर को कंपनियों द्वारा होने वाले संपूर्ण आय पर मापता है । इसके चलते दूरसंचार कंपनियों के सीधे तौर पर लाभ के साथ ही संपत्ति की बिक्री और जमा ब्याज पर अर्जित लाभ भी शामिल है। इन सबके अतिरिक्त टेलीकॉम कंपनियां की मात्र यह गुहार है कि समस्त सेवाओं से होने वाला कुल राजस्व ही एजीआर का हिस्सा हो।
2005 में सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया (COAI) ने 'दूरसंचार विवाद समाधान और अपीलीय न्यायाधिकरण' में AGR गणना को चुनौती दी थी। ट्रिब्यूनल ने सरकार को सही माना और सभी कंपनियों को एजीआर के हिस्से के रूप में सभी आय को देखते हुए कंपनियों को सम्बंधित शुल्क चुकाने का निर्देश दिया गया था । लेकिन बाद में टेलीकॉम कंपनियों ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी तथा जिसके चलते 24 अक्टूबर 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक टेलीकॉम कंपनियों को अब बकाया राशि चुकानी होगी।
सबसे अधिक बकाया वोडाफोन-आइडिया समूह का
वर्तमान में भारतीय दूरसंचार क्षेत्र पर दूरसंचार विभाग का AGR के रूप में कुल 1.48 लाख करोड़ रुपये बकाया है। इसके अंतर्गत सबसे अधिक बकाया वोडाफोन-आइडिया समूह का है, इनका कुल बकाया ₹53,000 करोड़ है। इसके अतिरिक्त भारती एयरटेल कुल ₹35,600 करोड़ कमाती है तथा दिवालिया होने की कगार पर खड़ी रिलायंस कम्युनिकेशन कुल ₹21,200 करोड़ रुपये है। सबसे अहम बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के मुताबिक वोडाफोन-आईडिया और भारती एयरटेल को हर हाल में भारत सरकार को कुल ₹90,000 करोड़ का भुगतान करना है जिसमें से भारती एयरटेल पहले ही ₹10000 करोड़ का भुगतान कर चुकी है । लेकिन वोडाफोन अभी भी दुविधा में नज़र आ रही है। वर्तमान में वोडाफोन-आईडिया के पास एयरटेल की तरह मजबूत परिसंपत्ति आधार नहीं है तथा इन पर पहले से ही ₹1 लाख करोड़ से अधिक का बाहरी कर्ज भी। इसी के चलते वोडाफोन-आईडिया के लिए बाजार से अतिरिक्त कर्ज़ लेकर एजीआर राशि चुकाना संभव नहीं लग पा रहा है।
इन स्थितियों में यदि एयरटेल और वोडाफोन-आईडिया एजीआर के बकाए का भुगतान कर भी देते हैं तो निकटतम भविष्य में उनके लिए कोई नया और अच्छा निवेश करना लगभग असंभव है। इसके चलते नए निवेश की कमी इन कंपनियों के लिए अंततः रोजगार के नए अवसरों और 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी में बाधा उत्पन्न करेगी। शायद इसी कारणवश कुमार मंगलम बिड़ला ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर वोडाफोन-आइडिया को महत्वपूर्ण सरकारी मदद नहीं मिलती है तो उसके पास कारोबार बंद करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा।
सरकार, दूरसंचार क्षेत्र की सच्चाई जानती है
बाजार के साथ-साथ टेलीकॉम कंपनियों की भी सरकार पर नजर है । लेकिन सरकार का अपना वित्तीय अनुशासन है और इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार कोई बड़ा कदम नहीं उठा सकती क्योंकि इस केंद्रीय बजट 2020 में दूरसंचार क्षेत्र से राजस्व संग्रह में तेजी और दोगुना राशि प्राप्त होने की आशंका है। इसके मद्देनज़र यदि टेलीकॉम कंपनियों को सरकार द्वारा किसी तरह की छूट दी जाती है तो अंततः सरकार का ही नुकसान होगा। इसके अतिरिक्त यदि सरकार इन दूरसंचार कंपनियों को बचाने के लिए आगे आती भी है तो और इससे देश में राजनीतिक उथल-पुथल भी हो सकती है और निश्चित रूप से विपक्ष इस मुद्दे को निशाना बनाकर हावी होना शुरू कर देगा तथा कुछ निजी कंपनियों द्वारा सरकारी काम में हस्तक्षेप करने के भी आरोप लगा सकता है। शायद इन्हीं कुछ वजहों से सरकार दूरसंचार क्षेत्र की सच्चाई जानने के बावजूद भी किसी अवांछित विवाद से बचने की कोशिश कर रही है।
यह आमतौर पर ज़ाहिर है कि भारत दुनिया में सबसे अधिक मोबाइल उपभोक्ताओं (mobile users) वाला देश बनने की ओर अग्रसर है। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) द्वारा हाल ही में जारी आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक भारत में मोबाइल ग्राहकों की संख्या 120 करोड़ से अधिक हो गई है तथा भारत का दूरसंचार क्षेत्र दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाले दूरसंचार क्षेत्र की श्रेणी में आ गया है। लेकिन मौजूदा विपरीत हालतों ने इसे गंभीर चिंता के विषय में तब्दील कर दिया है।
यदि ऐसे ही हालात बने रहे और हालातों में कोई सुधार ना हुआ तो क्या यह भारत के दूरसंचार क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा का अंत है? अगर हां तो सामान्य रूप से सबसे ज्यादा नुकसान उपभोक्ताओं को होने वाला है। ऐसे ही हालात रहते हैं तो प्रतिस्पर्धा के अभाव में दूरसंचार कंपनियां 'कार्टेल' बनाएंगे और इसके माध्यम से वे तय करेंगी कि बाजार में बेहतर सेवा वितरण दर क्या होगी।
(अनुवाद- रजत वर्मा)