Sardar Vallabhbhai Patel: एकता के सूत्रधार की साहसपूर्ण धरोहर, सरदार पटेल को श्रद्धांजलि

Sardar Vallabhbhai Patel: सरदार पटेल के आदर्शों का अनुसरण करने के लिए भारत सरकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी (Prime Minister Narendra Modi) के दूरदर्शी नेतृत्व के अंतर्गत इस लक्ष्य को अंगीकार करने के लिए कई कदम उठा रही है।

Written By :  Arjun Ram Meghwal
Update:2022-12-15 10:01 IST

सरदार वल्लभ भाई पटेल: photo - social media

हमारा देश कोविड महामारी (covid pandemic) के उतार-चढ़ाव का सामना करते हुए अत्यंत कठिन दौर से गुजरने के पश्चात फिर से अपनी पूरी ऊर्जा के साथ विकास और समृद्धि के पथ पर आगे बढ़ रहा है। यह प्रक्रिया आजादी के अमृत महोत्सव ( Azadi Ka Amrit Mahotsav) के दौरान भी जारी है। इस समय हम स्वतंत्रता के 75वें वर्ष (75th year of independence) का उत्सव मना रहे हैं । जिसके चलते पूर्वजों द्वारा संकल्पित दृष्टिकोण के साथ तालमेल बिठाते हुए आत्ममंथन करने, देश के प्रति निष्ठावान होने और जीवन समर्पित करने के संदेश का प्रसार किया जा रहा है।

चूंकि 15 दिसम्बर को हमारे देश की एकता के महान सूत्रधार, सरदार वल्लभ भाई की पुण्यतिथि (Sardar Vallabhbhai's death anniversary) है। अतएव उनके विचारों, कृत्यों के माध्यम से ज्ञान का प्रसार करना और उनकी राष्ट्रवादी भावना को अपनाना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करना होगा। भारत की जनता स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उनके कुशल नेतृत्व तथा स्वतंत्रता के बाद उनकी दूरदर्शिता, बुद्धिमत्ता और राजनीतिज्ञता की सदैव ऋणी रहेगी।  

सरदार पटेल जिम्मेदार और विवेकपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में उभरे  

 अहमदाबाद के निगम पार्षद के रूप में अपने जीवन की शुरुआत करते हुए पटेल भारत के गृह मंत्री और उप प्रधानमंत्री बने। पटेल को विभिन्न हितधारकों के शासन, प्रशासन, महत्व एवं भूमिकाओं और दायित्वों की बहुत गहरी समझ थी। किसी भी परिस्थिति की जटिलताओं का समाधान करने में अपने दृढ़ निश्चय के कारण वे जनता के बीच एक जिम्मेदार और विवेकपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में उभरे। उन्होंने 1922-23 के दौरान सार्वजनिक स्थानों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के आंदोलन में जनता को प्रेरित करते हुए स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन को सक्रिय रूप से सुदृढ़ किया। 


बारदोली का अहिंसात्मक सत्याग्रह (Nonviolent Satyagraha of Bardoli) अंग्रेजों के शक्तिशाली साम्राज्य के विरुद्ध किसानों की प्रभावशाली और अनूठी विजय सिद्ध हुआ। इसके पश्चात महिलाओं ने उन्हें सरदार की उपाधि दी। इस घटना के पश्चात उनके इस कार्य का प्रभाव पूरे भारत पर हुआ। एकता और संगठनात्मक कौशल के लिए दृढ़ निश्चय वाले अनुशासक के रूप में, उन्होंने 1937 के प्रान्तीय चुनावों, व्यक्तिगत सत्याग्रह, भारत छोड़ो आंदोलन में असाधारण योगदान दिया, जिसके चलते उन्हें अपने जीवन के बहुत से वर्ष कारावास में व्यतीत करने पड़े।

संविधान सभा को सरदार पटेल ने मार्गदर्शन प्रदान किया

संविधान सभा (constituent Assembly) की मौलिक अधिकार, अल्पसंख्यक तथा जनजातीय और अपवर्जित क्षेत्रों से संबंधित परामर्शदात्री समिति के अध्यक्ष के रूप में सरदार पटेल ने मौलिक और अल्पसंख्यक नियमों से संबंधित महत्वपूर्ण खंडों के लिए मार्गदर्शन प्रदान किया। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं। यद्यपि, मौलिक कर्तव्यों को 1976 के 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से बाद में सम्मिलित किया गया।

ये उनकी अदम्य तत्परता और अति निर्भीकता ही थी कि उन्होंने एक सीमित अवधि में प्रान्तीय रियासतों को एकीकृत करने के कार्य को सतर्कतापूर्वक पूरा किया। पटेल के राजनयिक युक्तिकौशल के कारण प्रान्तीय राज्यों का भारतीय संघ में सम्मिलन सुनिश्चित हो सका। इससे देश को संवैधानिक रूपरेखा के अनुरूप संगठित किया जा सका। शेख अब्दुल्ला के दबाव में पंडित जवाहर लाल नेहरू (Pandit jawaharlal nehru) द्वारा कश्मीर का असफल एकीकरण एक गंभीर गलती थी।

जब पटेल की भावनाएं गहराई तक आहत हुईं

23 दिसम्बर, 1943 को नेहरू ने जम्मू-कश्मीर को पटेल के नियंत्रण से निकालकर इसे गोपाल स्वामी अयंगर के नियंत्रणाधीन दे दिया। इससे पटेल की भावनाएं गहराई से आहत हुईं। उन्होंने नेहरू के एक पत्र का उत्तर देने के दौरान उनसे अपना त्यागपत्र देने की इच्छा व्यक्त की थी। यदि पटेल को इस मामले का प्रबंधन करने के लिए पूरी स्वतंत्रता के साथ जिम्मेदारी दे दी जाती तो कश्मीर की समस्या कहीं भी नहीं होती। संविधान सभा के तीन प्रमुख सदस्य यथा अर्थात डॉ. भीमराव अम्बेडकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और सरदार पटेल ने योजनाएं बनाने के दौरान ही जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिए जाने का विरोध किया था। इन महान ऐतिहासिक गलतियों ने ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी जिस पर विचार किया जाना और इतिहास के पृष्ठों पर बारीकी से गौर करना आवश्यक हो जाता है। 

स्वतंत्र भारत के प्रधानमंत्री को चुनने के संबंध में कांग्रेस के प्रजातांत्रिक मूल्यों से संबंधित उनका खोखलापन और अंतर्दलीय सत्ता संघर्ष स्पष्ट था। यह कहना युक्तियुक्त  होगा कि 15 में से 12 कांग्रेस समितियों ने अध्यक्ष के पद के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल का चुनाव किया था।तीन समितियों ने किसी को भी मतदान न करने का निर्णय लिया था, तथापि पंडित नेहरू का चुनाव किया गया। सरदार वल्लभ भाई पटेल को इस महत्वपूर्ण स्थिति से निपटने से वंचित कर दिया गया। इस संबंध में कई जाने-माने नेताओं ने प्रजातंत्रिक पतन और राष्ट्र के लिए उसके नतीजों पर परिचर्चा की। समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण ने भी कहा था कि यदि पंडित नेहरू के स्थान पर सरदार पटेल भारत के प्रथम प्रधानमंत्री होते तो संभवतरू भारत का बंटवारा टाला जा सकता था।

सरदार पटेल को 41 वर्षों के बाद मृत्युपरांत भारत रत्न

 7 नवम्बर, 1950 को सरदार पटेल द्वारा लिखा गया प्रसिद्ध पत्र इस बात को स्पष्ट रूप से उजागर करता है कि वे तिब्बत, चीन और कश्मीर के मामलों पर गलत नीति अपनाए जाने के संबंध में नेहरू की विदेश नीति की जबर्दस्त आलोचना करते थे। यह आलोचना विदेश नीति के संबंध में डॉक्टर अम्बेडकर के विचारों से मेल खाती है। नेहरूवाद की इन कार्रवाईयों से भारत-पाक  और भारत-चीन युद्धों की परिणति सामने आई। लौह पुरुष सरदार पटेल को 41 वर्षों के बाद मृत्युपरांत भारत रत्न देना भी चर्चा का अन्य विषय है , जिससे राष्ट्र निर्माण में सरदार पटेल को महिमा मंडित करने और उन्हें उनका स्थान दिए जाने के संबंध में कांग्रेस की द्वेषपूर्ण भावना उजागर होती है। नेहरूवादी और वामपंथी इतिहासकारों के पास तर्कसंगत आधार न होने के बावजूद भी इतिहास में सरदार पटेल की प्रखर भूमिका को उपेक्षित कर दिया गया। इसलीए आने वाली पीढ़ी के लिए उनकी स्मरणीय विरासत को तर्कसंगत रूप में प्रस्तुत करना आवश्यक हो जाता है।

लौह पुरुष सरदार पटेल ने भारत को एकीकृत करने संबंधी अपने महान कार्य के पश्चात भारत जैसे विविधता वाले देश में राज्यों के पुनर्गठन, एकीकरण की भावना को सुदृढ़ करने के लिए अपने सुविचारित मंतव्य के अनुसार अखिल भारतीय सेवाओं के रूप में भारत को लौह आवरण देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सरदार पटेल ने नवम्बर 1947 में आक्रांताओं द्वारा गिराए गए सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करके भारतीयों की साझा विरासत और परंपराओं को सांस्कृतिक आधार पर जोड़ने का निर्णय लिया जिससे भारत के पुनर्जागरण की गाथा और विध्वंस के बाद निर्माण की विजय परिलक्षित होती है।


सरदार पटेल के आदर्शों का अनुसरण

 सरदार पटेल के आदर्शों का अनुसरण करने के लिए भारत सरकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी (Prime Minister Narendra Modi) के दूरदर्शी नेतृत्व के अंतर्गत इस लक्ष्य को अंगीकार करने के लिए कई कदम उठा रही है। भारत के लौह आवरण से संबंधित मंतव्य उस समय और सुदृढ़ हो जाएगा , जब मिशन कर्मयोगी के माध्यम से भविष्य के लिए तैयार हो रहे सिविल सर्वेंट क्रियाशील हो जाएंगे। इस क्षमता निर्माण कार्यक्रम का उद्देश्य यह है कि प्रौद्योगिकी से जुड़े विश्व में आधुनिक समस्याओं का सामना करने के साथ-साथ नागरिकों को सहज जीवन शैली प्रदान की जाए तथा श्रेष्ठ सुशासन व्यवस्था प्रदान की जाए ताकि देश की सिविल सेवाएं विश्व की श्रेष्ठ सिविल सेवाओं में शुमार हो सकें।   

 मोदी सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 और जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करके एक बड़ी ऐतिहासिक गलती को सुधारा गया है। सरकार सोमनाथ मंदिर परिसर को और अधिक आकर्षक बनाने के अलावा, सोमनाथ के समग्र विकास के संबंध में सरदार पटेल के सपनों को साकार कर रही है।

'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' सरदार पटेल की विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा

सरदार पटेल की 143वीं जयंती के अवसर पर विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा "स्टेच्यू ऑफ यूनिटी" (Statue of Unity) को राष्ट्र को समर्पित किया गया, जो सरदार वल्लभ भाई पटेल की बुद्धिमत्ता का प्रतीक है। भावी पीढ़ियों का मार्ग भी प्रशस्त करती है। 31 अक्तूबर, 2014 से उनकी जयंती को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है। 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' पहल विभिन्न क्षेत्रों के बीच अनवरत और संरचित सांस्कृतिक संबंधों को और अधिक सुदृढ़ करती है।

इस यथार्थ को स्वीकार करना भी युक्तियुक्त होगा कि आज हमें विरासत में जो कुछ मिला है उसके लिए हम अपने पूर्वजों के ऋणी हैं। उन्होंने इस अवसंरचना को संस्थागत बनाने के लिए कठोर परिश्रम किया था। जिससे संपूर्ण राष्ट्र के लिए नई ऊंचाइयां और बुलंदियां निर्धारित किए जाने के लिए पूर्ण क्षमता प्राप्त करने और आगे बढ़ने के लिए भारत के लोग और सशक्त होंगे। इस समय चल रहे आजादी के अमृत महोत्सव के भाग के रूप में सरदार पटेल की जयंती एक ऐसा उचित अवसर है जिसमें हम परिचित और अपरिचित अंख्यक यश वंचित नायकों के सर्वोच्च बलिदानों की अनुभूति करें और इसके माध्यम से अपनी ओर से श्रेष्ठतम श्रद्धांजलि अर्पित करें और  नए भारत के निर्माण हेतु भावी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए शपथ लें।  

(लेखक केन्द्रीय संस्कृति एवं संसदीय कार्य राज्य मंत्री हैं।)

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