येरूशलम पर बवाल तय, ट्रंप कदम से बढ़ सकती है मुश्किले
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने येरूशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने का फैसला करके नया विवाद शुरू कर दिया है। अरब देशों ने ट्रंप के फैसले की
नीलमणि लाल
लखनऊ:अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने येरूशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने का फैसला करके नया विवाद शुरू कर दिया है। अरब देशों ने ट्रंप के फैसले की कड़ी निंदा की है। अरब लीग में शामिल दो दर्जन से ज्यादा देश 12 दिसंबर को इस मुद्दे पर बैठक करेंगे जबकि 57 देशों वाला इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) तो अमेरिकी योजना को 'नग्न आक्रामकता’ करार दे चुका है। ट्रंप के फैसले का जर्मनी ने भी विरोध किया है। जर्मनी ने चेताया है कि येरुशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने से संकट शांत नहीं होगा, बल्कि इसे और बढ़ावा मिलेगा। तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोआन ने कहा है कि अमेरिका के इस कदम के बाद उनका देश इजरायल के साथ कूटनीतिक संबंध तोडऩे की सीमा तक जा सकता है।
इजरायल ने 1967 में युद्ध के बाद यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों के पवित्रतम केंद्र येरुशलम को अपने कब्जे में ले लिया था। तब से इजरायल येरुशलम को अपनी राजधानी के रूप में मान्यता दिलाने की कोशिश करता रहा है। वहीं फलीस्तीनी भी येरुशलम पर अपना दावा करते हैं क्योंकि उनको लगता है कि जब भी उनका एक आजाद देश बनेगा, उस दिन येरुशलम ही उसकी राजधानी होगी। देखा जाए तो येरुशलम अरब-इजराएल विवाद की धुरी जैसा है। इजरायल के वर्तमान प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू से पहले के इजरायल केदो पूर्व प्रधानमंत्री येरुशलम का बंटवारा करने के पक्ष में थे लेकिन मौजूदा नेतन्याहू सरकार कहती है कि पूरा येरुशलम इजराएल की राजधानी है। इजरायल का प्रधानमंत्री कार्यालय, सुप्रीम कोर्ट और संसद येरुशलम में ही है।
इजरायल हमेशा से येरुशलम को अपनी राजधानी बताता रहा है, 1948 में जब इजरायल राज्य बना, तब से अबतक किसी भी देश ने इसे इजरायल की राजधानी का दर्जा नहीं दिया है। अमेरिका ऐसा फैसला करने वाला पहला देश बना है। भारत ने अभी तक येरुशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता नहीं दी है और ट्रंप के फैसले की प्रतिक्रया में कहा है कि इस मामले में भारत का रुख स्वतंत्र और गुट निरपेक्ष है।
करीब साढ़े नौ लाख आबादी वाला येरुशलम भूमध्य सागर और 'मृत सागर’ (डेड सी) के बीच स्थित है। इस शहर का इतिहास काबा, काशी, मथुरा, अयोध्या, रोम, कंधार जैसे प्राचीन शहरों की तरह ही है। यहूदी और ईसाई मानते हैं कि यही धरती का केंद्र है। यहूदी दुनिया में कहीं भी हों, येरुशलम की तरफ मुँह करके ही उपासना करते हैं।
यहीं यहूदियों का पवित्र सुलेमानी मन्दिर हुआ करता था, जिसे रोमनों ने नष्ट कर दिया था। ये शहर ईसा मसीह की कर्मभूमि रहा है और यहीं से हजरत मुहम्मद स्वर्ग गए थे। येरुशलम इजरायल का एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल भी है। इस शहर में 158 गिरिजाघर तथा 73 मस्जिदें हैं।
कई बार नष्ट हुआ है येरुशलम
ईसाई और इस्लाम धर्म की शुरुआत से अपने लंबे इतिहास के दौरान, येरूशलम कम से कम दो बार नष्ट किया गया, इसे 23 बार घेर लिया गया, 52 बार इस पर हमला हुआ और कब्जा कर लिया गया। शहर का सबसे पुराना हिस्सा 4 सहस्राब्दी ईसा पूर्व बस गया था जबकि वर्ष 1538 में शहर के चारों ओर दीवारों का निर्माण किया गया। आज उन दीवारों को चार तिमाहियों से जाना जाता है। इस शहर के चार हिस्से 19 वीं सदी के बाद से धर्म के आधार पर विभाजित हैं - अर्मेनियाई,ईसाई,यहूदी और मुसलमान। यहूदी पश्चिम एशिया के उस इलाके में अपना हक जातते थे, जहां सदियों पहले यहूदी धर्म का जन्म हुआ था। यही वो जमीन थी जहां ईसाईयत का जन्म हुआ। बाद में इस्लाम का भी उदय यहीं से हुआ। मध्य काल तक इस इलाके में अरब फलिस्तीनियों की आबादी बस चुकी थी।
• ये जानना जरूरी है कि दूसरे विश्व युद्ध से पहले इजरायल का अस्तित्व नहीं था बल्कि यह इलाका फलस्तीन कहलाता था और इसपर 1922 से ब्रिटिश राज थाढ्ढ लेकिन तब भी यहूदियों और फलिस्तीनियों के बीच संघर्ष जारी रहा करता था। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद कुछ अरब संगठन ब्रिटिश राज के खिलाफ विद्रोह कर रहे थे वहीँ हजारों यहूदी शरणार्थी अपने ‘फादरलैंड’ यानी इजरायल में शरण मांग रहे थेढ्ढ 1947 में ब्रिटिश साम्राज्य ने ऐसा उपाय निकलने की घोषणा की जिससे अरब और यहूदी दोनों संप्रदाय के लोग सहमत होंढ्ढ संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसी उपाय के तहत 29 नवम्बर 1947 को फलस्तीन के विभाजन को मान्यता दे दी।इस विभाजन में दो राज्यों का निर्माण होना था - एक अरब और एक यहूदी।
• यहूदियों ने इस व्यवस्था को तुरंत मान्यता दे दी लेकिन अरब समुदाय ने इसको ख़ारिज कर दियाढ्ढ इसी के साथ गृह युद्ध की स्थिति बन गई और करीब ढाई लाख फलिस्तीनी लोगों को अपना राज्य छोडऩा पडा। 14 मई 1948 को यहूदी समुदाय ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता की घोषणा कर दी और इजरायल को राष्ट्र घोषित कर दिया इसके बाद सीरिया, लीबिया और इराक ने इजरायल पर हमला कर दियाढ्ढ इसमें सऊदी अरब, यमन और मिस्र भी शामिल हो गए लगभग एक वर्ष के बाद युद्ध विराम की घोषणा हुयी और जोर्डन और इजरायल के बीच सीमा रेखा बना दी गयी