अरुणाचल में उबाल

अरुणाचल प्रदेश और खासकर राजधानी इटानगर में 'पीआरसी' मसले पर बीते कई महीनों से आक्रोश है। जहां इटानगर और नामसाई के लोग पीआरसी के बारे में राज्य सरकार का विरोध कर रहे हैं वहीं महादेवपुर (लेकांग) के लोग पीआरसी के पक्ष में रास्ता जाम कर अपना विरोध जता रहे हैं।

Update:2019-02-25 16:23 IST

इटानगर: अरुणाचल प्रदेश और खासकर राजधानी इटानगर में 'पीआरसी' मसले पर बीते कई महीनों से आक्रोश है। जहां इटानगर और नामसाई के लोग पीआरसी के बारे में राज्य सरकार का विरोध कर रहे हैं वहीं महादेवपुर (लेकांग) के लोग पीआरसी के पक्ष में रास्ता जाम कर अपना विरोध जता रहे हैं। सबसे पहले जानना जरूरी है कि पीआरसी है क्या?

पीआरसी यानी परमानेंट रेजीडेन्स सर्टिफिकेट सरकार द्वारा जारी एक प्रमाणपत्र है जो किसी नागरिक को अरुणाचल प्रदेश का स्थाई निवासी प्रमाणित करता है। यूं आम तौर पर इस प्रमाणपत्र मुख्य इस्तेमाल शिक्षण संस्थानों में एडमिशन पाने के लिए किया जाता है। यह प्रमाणपत्र आवेदक के स्थाई निवास को प्रमाणित करता है और इस प्रकार एडमिशन के दौरान स्थाई निवास कोटे का लाभ लिया जा सकता है। वैसे कुछ नौकरियों के लिए भी इस प्रमाणपत्र की जरूरत हो सकती है।

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अरुणाचल प्रदेश की अनुसूचित जातियां (एपीएसटी) राज्य में पीआरसी धारक हैं, लेकिन राज्य में निवास कर रहे अन्य गैर एपीएसटी भी पीआरसी की मांग करते आ रहे हैं। इनका तर्क है कि जब वे अरुणाचल प्रदेश में रहते आ रहे हैं तो वह भी इस प्रमाणपत्र के हकदार हैं। विवाद इस बात का है कि तमाम गैर एपीएसटी को पड़ोसी राज्य असम में एसटी का दर्जा मिला हुआ है लेकिन अरुणाचल में बरसों से निवास करने के बावजूद उन्हें सरकारी तौर पर जमीन की मिल्कियत का अधिकार भी नहीं है। इन लोगों को अरुणाचल प्रदेश में नॉन ट्राइबल माना जाता है।

इन जनजातियों में देशोरी, सोनोवाल कछारी, मोरान, आदिवासी और मिशिंग शामिल हैं जो अरुणाचल प्रदेश के नामसाई और छांगलांग जिलों में रहते हैं। इनके अलावा छांगलांग जिले के सुदूर विजयनगर सर्किल में रहे वाले गोरखा लोग और पूर्व सैनिक भी पीआरसी की मांग कर रहे हैं। इनकी मांग के पीछे एक मसला यह भी है कि ये लोग योबिन समुदाय से पट्टों पर जमीन लेकर रह रहे हैं और इनका पट्टा साल 2020 में खत्म होने वाला है।

एपीएसटी की चिंता

अरुणाचल प्रदेश की जनजातियों की चिंता है कि अगर गैर-जनजातियों को पीआरसी दे दिया गया तो इससे 'बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन एक्ट 1873 कमजोर पड़ जाएगा। इसी एक्ट के तहत अरुणाचल प्रदेश में इनर लाइन परमिट का नियम लागू है। इस नियम के अनुसार समस्त गैर-स्थाई निवासियों और आगंतुकों को अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करने से पहले इनर लाइन परमिट लेना अनिवार्य है। इसके लिए अरुणाचल प्रदेश में विभिन्न प्रवेश मार्गों पर जांच द्वार बनाए गए हैं जहां परमिट की जांच की जाती है।

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अरुणाचल प्रदेश के मूल जनजातियों का मानना है कि गैर-ट्राइबल्स को पीआरसी देने से ट्राइबल जमीनों पर गैर-ट्राइबल्स का आसानी से कब्जा हो जाएगा जिसका नतीजा ट्राइबल्स की संस्कृति पर पड़ेगा। ऑल अरुणाचल स्टूडेंट्स यूनियन (आप्सू) का कहना है कि अरुणाचल में लंबे समय से रह रहे गैर जनजातियों को पीआरसी देने से कोई नुकसान नहीं होगा लेकिन पीआरसी देने का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि गैर जनजातियों को इनर लाइन परमिट से छूट मिल जाए। पीआरसी प्रक्रिया की समीक्षा कर रही उच्चस्तरीय कमेटी ने आप्सू ने मांग की है कि वह स्पष्ट करे कि पीआरसी को इनरलाइन परमिट नहीं माना जाएगा। अरुणाचल प्रदेश सरकार ने वरिष्ठ राजनीतिज्ञों, छात्र नेताओं, विभिन्न समुदायों के प्रतिनिधियों की एक संयुक्त हाई पावर कमेटी बनाई है जिसका काम राज्य में पीआरसी की मांग की समीक्षा करना है।

लोग सडक़ों पर क्यों उतरे

संयुक्त हाई पावर कमेटी की अंतिम सिफारिशें जनवरी 2019 तक तैयार हो जानीं थीं। इसी बीच आंध्र के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने 7 दिसम्बर 2018 को विजयनगर में एक समारोह में कहा कि राज्य सरकार अरुणाचल के गैर-जनजातियों को पीआरसी देने पर विचार कर रही है। दूसरी ओर अरुणाचल के उप मुख्यमंत्री चाउना मीन ने असम में एक समारोह में कहा कि राज्य सरकार गैर जनजातियों को पीआरसी के रूप में न्यू ईयर गिफ्ट देगी। ऐसे कई बयानों से लगमे लगा कि ६ गैर जनजाति समुदायों को पीआरसी प्रदान किया जाने वाला है। इसी बीच पीआरसी की मांग करने वाले समुदायों ने अपनी मांग पर जोर डालने के लिए प्रदर्शन आदि तेज कर दिए। हाईपावर कमेटी की रिपोर्ट 23 फरवरी को राज्य विधानसभा में पेश की जानी थी लेकिन इसके पहले 21-22 फरवरी को 18 संगठनों ने पीआरसी पर सरकार व हाई पावर कमेटी के रुख का सख्त विरोध करते हुए 48 घंटे के अरुणाचल बंद का आह्वान किया। इसके बाद राज्य में हिंसा भड़क उठी, उप मुख्यमंत्री का आवास जला दिया गया और फायरिंग में दो लोगों की मौत हो गई। हिंसक भीड़ ने आप्सू के दफ्तर भी फूंक दिए।

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इस बवाल के बाद मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने घोषणा की है कि सदन के वर्तमान सत्र में हाई पावर कमेटी की रिपोर्ट पेश नहीं की जाएगी। बता दें कि अरुणाचल विधानसभा के चुनाव आगामी लोकसभा चुनावों के संग होने हैं।

केंद्र सरकार की भूमिका

केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजु का कहना है कि राज्य सरकार पीआरसी जैसा कोई बिल नहीं लाने जा रही है बस केवल मकसद ज्वाइंट हाई पावर कमेटी की रिपोर्ट को पेश करने का था। उनका कहना है कि कांग्रेस भी पीआरसी लाना चाहती थी। इस कमेटी की प्रमुख नबम रेबिया हैं, जो राज्य सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर हैं।

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