महिला अफसर के बहाने 'आधी दुनिया' पर निशाने की कवायद

ये मामला पुरुषवादी मानसिकता का है। पुरुषवादी मानसिकता ये कैसे सहन कर सकती है कि अफसर बनने के बाद एक पत्नी अपने पति का त्याग कैसे कर सकती है। हां, पुरुष त्याग कर सकता है। क्योंकि, सदियों से यही होता आ रहा है और ये स्वीकार्य है।

Update: 2023-07-03 13:58 GMT
प्रतीकात्मक चित्र (Social Media)

इन दिनों उत्तर प्रदेश की एक महिला पीसीएस अफसर (PCS officer UP) की शादीशुदा जिंदगी को लेकर सोशल मीडिया में मजे लिए जा रहे हैं। मीडिया में भी खबरें छप रही हैं। इनके पति का आरोप है कि, पीसीएस बनने के बाद इनका व्यवहार बदल गया। पति का ये भी आरोप है कि उनकी पीसीएस पत्नी उनसे बेवफाई कर रही हैं और एक अफसर से उनका संबंध है। पति चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं।

स्वाभाविक रूप से लोगों की सहानुभूति पति के साथ है। इस प्रकरण के बहाने लोग प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही लड़कियों पर भी निशाना साध रहे हैं। इसके लिए अमिताभ बच्चन की फिल्म 'सूर्यवंशम' के नायक हीरा ठाकुर के नाम से जोक्स और मीम्स शेयर किए जा रहे हैं, कि अब कोई पति हीरा ठाकुर नहीं बनेगा। अफवाह फैलाई जा रही है कि कई पतियों ने तो प्रयागराज में तैयारी कर रही अपनी पत्नियों को वापस बुला लिया है।

यही काम यदि पुरुष अफसर करता तो क्या होता?

अब इसके उलट तस्वीर देखते हैं। यदि यही कार्य सरकारी अफसर बनने के बाद किसी पुरुष ने किया होता तो क्या होता? बरसों से इस तरह के अनेक मामले हैं जब अफसर बनने के बाद पति ने अपनी पत्नी को दूर कर दिया। शहर में किसी अन्य महिला से या तो शादी कर ली या लिव इन में रहने लगे। हम अपने आस-पास नजर दौड़ाएं तो ऐसे कई अफसर नज़र आएंगे, जिनकी पहली पत्नी गांव में रह रही हैं और साहब शहर में किसी अन्य के साथ। लेकिन, क्या कभी इन पुरुषों के चरित्र को लेकर सोशल मीडिया अथवा मुख्यधारा की मीडिया में शोर-शराबा हुआ? जहां तक पति द्वारा पत्नी को पढ़ाने-लिखाने की बात है तो ये एक अच्छी बात है और स्वागत योग्य है। लेकिन, क्या पुरुष ही पत्नी के करियर को संवारते हैं?

कितने ही ऐसे उदाहरण हैं जब पत्नी ने अपने पति को तैयारी करने के लिए पूरे परिवार की जिम्मेदारी अपने सिर पर ली। कई ऐसे अफसर हैं जो नौकरी में तब आए जब उनके बाल-बच्चे थे। प्रयागराज, लखनऊ और दिल्ली में आज भी कई अभ्यर्थी मिल जाएंगे जिनकी शादी हो चुकी होती है, बच्चे भी होते हैं और गांव में पत्नी सास-ससुर समेत पूरी जिम्मेदारी निभाती है।

सबक सिखाने मैदान में उतरी पूरी 'मर्दवादी मानसिकता'

स्पष्ट है कि पूरा मामला पुरुषवादी मानसिकता का है। पुरुषवादी मानसिकता ये कैसे सहन कर सकती है कि अफसर बनने के बाद एक पत्नी अपने पति का त्याग कैसे कर सकती है। हां, पुरुष त्याग कर सकता है। क्योंकि, सदियों से यही होता आ रहा है और ये स्वीकार्य है।

प्रयागराज का मामला विशुद्ध रूप से एक पारिवारिक विवाद का मामला है। पति-पत्नी के बीच दरकते रिश्तों का मामला है। इसका समाधान कानूनी रूप से ही होना है। हां, यहां सामने आना वाला पीड़ित पक्ष पति का है तो स्वाभाविक रूप से मानवीय संवेदना उनके साथ आ रही है। लेकिन, जिस तरह से इस मुद्दे को लड़कियों के अफसर बनने और उसके बाद उनके बदलने से जोड़ा जा रहा है वह वाहियात है। कुछ लोगों की मर्दवादी सोच है। इस घटना के बाद यदि देश में एक भी लड़की की तैयारी बाधित होती है तो इससे बड़ा दुर्भाग्य और कुछ नहीं होगा। ये 'मर्दवादी मानसिकता' का सबसे विकृत चेहरा होगा।

Tags:    

Similar News