जब हाकिंग एक पहेली थे, बात उस दौर की, अतीत के झरोखे से

हॉकिंग का मानना था कि जलवायु परिवर्तन से 26 सौ तक धरती आग  का गोला बन जाएगी और मानव सभ्यता का अंत हो जाएगा। इंसान  को दस लाख साल तक अस्तित्व बचाए रखना है , तो सौ वर्षों में दूसरे ग्रहों पर उपनिवेश बनाना पड़ेगा। वे विज्ञान के इतिहास में अमर हो गए।

Update:2020-04-18 14:07 IST

योगेश मिश्र

बात तक़रीबन 19 साल पहले की है , आप सोचेंगे कि आख़िर उन्नीस साल पहले की बात के ज़िक्र का मतलब क्या है ? लेकिन जब हम लॉकडाउन के दौर से गुज़र रहे हो, तब अतीत को खंगाल लेना ग़लत नहीं होगा।

यही नहीं, 19 साल पहले की जिस घटना का मैं ज़िक्र करने जा रहा हूँ। वह घटना हमारे तमाम पत्रकार साथियों और पाठकों के लिए ज़रूर दिलचस्पीका सबब आज भी होगी , यह मेरा यक़ीन है। बात उन दिनों की है जब मैं दैनिक जागरण अख़बार के लिए राष्ट्रीय ब्यूरो में काम करता था ।

उससमय साइंस और टेक्नोलॉजी विभाग बतौर बीट देखने का काम भी मेरे ज़िम्मे ही था। इसकी वजह यह थी कि उस समय इस विभाग के मंत्री डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी थे। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। डॉक्टर जोशी के पास मानवसंसाधन विकास मंत्रालय भी था।

साइंस और टेक्नोलॉजी की बीट मेरे पास

यह मंत्रालय मैं देखता था इसलिए सहूलियत के लिहाज़ से मुझे साइंस और टेक्नोलॉजी विभाग भी बीट के तौर पर देखने को दिया गया था। इंटरमीडिएट के बाद विज्ञान से मेरा कोई रिश्ता नहीं रह गया था । यह ज़रूर है कि इंटरमीडिएट के दौरान जंतु विज्ञान की कक्षाओं में की गईतिलचट्टे की चीरफाड़ और मेढक के डिसेक्सन के काम को मैं हिंसा नहींमानता था। इन्हें बख़ूबी कर भी लेता था ।

दो बेहद मुश्किल मुकाम

मेरे लिए रिपोर्टिंग के दौर में दो बेहद मुश्किल मुक़ाम आये। मैं आज आपसबको एक मुश्किल मुक़ाम से रूबरू कराना चाहूँगा । यह मुक़ाम तब का है जब अंतरिक्ष के बड़े वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग अपनी पहली यात्रा पर भारत आए थे। उनके कई कार्यक्रम थे । मुझे स्टीफन हॉकिंग का कार्यक्रम कवर करना था।

मेरे लिए यह बेहद चुनौतीपूर्ण था क्योंकि हॉकिंग ख़ुद कुछ नहीं बोलते थे । विज्ञान की भाषा समझना मेरे लिए मुश्किल काम था । फिर कंप्यूटरवॉयस सिंथेसाइजर से निकले शब्दों को पकड़ना और भी कठिन।

कुछ ऐसे की तैयारी

रिपोर्ट करने से पहले मैंने हॉकिग को लेकर कि जो कुछ भी इधर उधर बिखरा पड़ा था ,उसे पढ़ा । उन दिनों गूगल अंकल का दौर इस क़दर नहींथा कि वे सब कुछ माँगते ही मुहैया करा देते । इस रिपोर्ट को करने और हाकिंग के कार्यक्रम में जाने से पहले मैंने उन दिनों पीटीआई औरयूएनआई के साइंस कवर करने वाले साथियों से बात की।

हमें यह पता था कि हिंदू अख़बार हीइकलौता ऐसा समाचार पत्र है, जिसके पास साइंस टेक्नोलॉजी कवर करने के लिए अलग सेसंवाददाता हैं, उनसे भी बात की। तीनों से आग्रह किया कि हाकिंग के कार्यक्रम के बाद वे मेरी मददकर दें। ताकि मैं भी रिपोर्ट लिख सकूँ। फाइल कर सकूँ।

भारतीय गणित व भौतिकी में माहिर

साल 2001 था, तारीख़ 15 जनवरी की थी।वह सोलह दिन भारत में रहे।यात्रा की शुरुआत मुम्बईसे हुई थी।वहाँ उन्होंने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च के ‘स्ट्रिंग-2001 ‘सम्मेलन कोसंबोधित किया था। हॉकिंग ने मुंबई के ओबेरॉय होटल में अपना उनसठवाँ जन्मदिन भी मनाया था।मुंबई से वो दिल्ली आए।

दिल्ली में 15 जनवरी, 2001 को ‘ अल्बर्ट आइंस्टीन मेमोरियल’ लेक्चर दिया। उन्होंने जंतर मंतर और कुतुबमीनार देखा। उस समयके राष्ट्रपति के.आर.नारायणन से भेंट की। और स्टीफ़न हॉकिंग ने कहा,”भारतीय गणित और भौतिकी में माहिर हैं। भारतीयों ने दोनों विषय अपने क़ब्ज़े में कर लिये हैं।”

हॉकिंग के बारे में

हमने हॉकिंग के बारे में जो जानकारी इकट्ठी की उसके मुताबिक़ हॉकिंग 8 जनवरी,1942 को ऑक्सफ़ोर्ड में जन्मे थे। हॉकिंग की पढ़ाई सेंट एलंबस स्कूल में हुई थी। उनके पिता फ्रेंक होकिंग उन्हें मेडिसिन पढ़ाना चाहते थे लेकिन हाकिंग गणित पढ़ना चाहते थे पर विश्वविद्यालय में गणित विषय नहीं था लिहाजा उन्हें भौतिक विज्ञान पढ़ना पड़ा। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी सेबीए ऑनर्स किया , कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से एमए और पीएचडी की । उन्होंने अपनी PHD अपने डॉक्टर ट्यूटर डेनिस विलियम सी आमा की मदद से पूरी की। उन्होंने 39 रिसर्च स्कॉलर्स को पीएचडी कराई।

21 साल की उम्र में लकवाग्रस्त हो गए

महज़ २१ साल की उम्र में उन्हें मोटर न्यूरॉन नामक बीमारी हो गई । यह बीमारी न्यूरॉन के क्षतिग्रस्त होने के कारण होती है । मस्तिष्क की हर मांसपेशी उसके फ़्रंटल लोब में स्थित मोटर न्यूरॉन से नियंत्रित होती हैं , फ़्रंटल लोब के अलावा मस्तिष्क के निचले हिस्से और मेरूदंड में भी मोटर न्यूरॉन पाए जाते हैं , जब मस्तिष्क या मेरुदंड या दोनों जगहों के मोटर न्यूरॉन कमज़ोर हो जाते हैं , तब यह बीमारी होती है ।

तकनीक पर हो गई निर्भरता

बीमारी के कारण हॉकिंग का शरीर लक़वा ग्रस्त हो गया था। उनका शरीर पूरी तरह से व्हील चेयरपर सिमट गया था । अपनी बीमारी के कारण वह सिर्फ़ चेहरे की कुछ मांसपेशियाँ और एक हाथ की कुछ उंगुलियां ही हिला सकते थे। बाक़ी पूरा शरीर हिल नहीं सकता था। कोई हरकत नहीं करसकता था। अपने रोज़मर्रा के कार्यों -नहाने ,खाने ,कपड़े पहनने और यहाँ तक कि बोलने के लिए भी वह लोगों और तकनीक पर निर्भर थे।

जिंदगी की कामयाबी के सूत्र इसी दुनिया में

यह एक तरह से उनके सक्रिय जीवन का अंत था । डॉक्टरों के हिसाब से उनके पास जीने के लिए सिर्फ़ दो साल थे। हालाँकि वे दशकों तक इस बीमारी से पीड़ित रहे। जबकि इस बीमारी के ज़्यादातर मरीज़ पाँच साल के भीतर मर जाते हैं। हॉकिंग ने विकलांगता को चैलेंज किया। डॉक्टरों की भविष्यवाणी को फेल किया। चिकित्सा जगत को चुनौती दी।

हॉकिंग ने एक बार कहा था,”मैं दुनिया को दिखाना चाहता हूँ कि शारीरिक विकलांगता लोगों को तब तक अक्षम नहीं बना सकती जब तक वो ख़ुद ऐसा ना मान लें।” हॉकिंग ने यह साबित किया कि इंसान के भीतर जीवट हो तोउसकी ज़िंदगी की कामयाबी के सूत्र इसी दुनिया में बसे हैं।

दिमागी तौर पर हमेशा ऊपर देखा

ऐसा वह इसलिए सोचते और साबित करना चाहते थे क्योंकि स्टीफन हॉकिंग की बनावट ऐसे आघात के सामने लाचार हो जाने वाली नहीं थी । हौसले और इच्छाशक्ति से लबरेज़ हॉकिंग को दिमाग़ की बात को सुनकर आवाज़ देने वाले कम्प्यूटराइज्ड वाइस सिंथेसाइजर जैसे उन्नत उपकरणों का साथ मिला।

उन्होंने अपनी बीमारी से पैदा सारी चुनौतियों को पीछे छोड़ दिया। शारीरिक अपंगता के बावजूद हॉकिंग दिमाग़ी रूप से ताउम्र सक्रिय रहे। उनमें शारीरिक रूप से तारों की तरफ़ देखने की क्षमता नहीं थी, लेकिन दिमाग़ी तौर पर भी हमेशा ऊपर देखते थे।

दो पत्नियां और तीन बच्चे

व्हील चेयर पर बैठे बैठे ब्रह्माण्ड की जटिल गुत्थियाँ सुलझाने वाले, ब्लैक होल और सापेक्षता केसिद्धांत के क्षेत्र में अपने अनुसंधान से महान योगदान देने वाले भौतिकविद हॉकिंग। ब्रिटिश वैज्ञानिकहॉकिंग के बच्चे लूसी ,रॉबर्ट और टिम थे। 1965 में उन्होंने जेन विल्ड से शादी की। उनकी बढती विकलांगता के चलते जेन से उनका तलाक हो गया। इसके बाद 1995 में उन्होंने अपनी नर्स एलेन मैसेन से दूसरा विवाह किया। यह शादी भी सिर्फ 6 साल चली। दो पत्नियाँ थीं। हॉकिंग को पार्टियों में शामिल होने का बेहद शौक़ था।। उन्हे फ़िल्मी कलाकारों का साथ भी पसंद था ।

हॉकिंग अपनी किताब ‘ए ब्रीफ़ हिस्टरी ऑफ़ टाइम’ के चलते चर्चा में आये। इस किताब ने बिक्री के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। इसका 40 भाषाओं में अनुवाद हुआ। विश्व के हर 750 स्त्री पुरुषों तथा बच्चों के लिए लगभग एक व्यक्ति के हिसाब से कब की यह किताब बिक चुकी है।

गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल

यह जानकर आश्चर्य होगा कि मैडोना पर लिखी किताब जितनी नहीं बिकी उससे ज़्यादा भौतिकी पर लिखी गई स्टीफन हाकिंग की यह किताब बिकी है। इसकी क़ीमत १४.९९ डॉलर थी। २३७ सप्ताह तक संडे टाइम्स का बेस्ट सेलर रहने के बाद इसे गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल किया गया ।

हॉकिंग की माँ इसाबेला ने इस पुस्तक को पढ़ने के बाद जो अपनी प्रतिक्रिया दी है वो यह थी की,”पुस्तक की संकल्पना तो कठिन है।लेकिन भाषा और लेखन शैली के साथ कोई दिखावा नहीं है । न ही पाठक की अवहेलना की गई है।”

नहीं हटाई जीवन रक्षक प्रणाली

जब हॉकिंग अपनी बेस्ट सेलर बुक लिख रहे थे । तो डॉक्टरों ने उन्हें अपने जीवन रक्षक मशीन हटानेको कहा था। स्विट्ज़रलैण्ड में सीने में संक्रमण के चलते उन्हें ज़बर्दस्त निमोनिया हो गया । उस वक़्त डॉक्टरों ने दर्द से निजात दिलाने के लिए उनकी जीवन रक्षक उपकरण हटा देने की पेशकशकी। यह पेशकश हॉकिंग की पत्नी से की गई थी । लेकिन उसने मना कर दिया ।

आइंस्टीन के बाद की दुनिया में ब्रह्मांड को समझने में हमारी मदद स्टीफन हॉकिंग ने जितनी की है उतनी किसी ने नहीं की है। गुरुत्वाकर्षण, दिक (स्पेस) और काल (टाइम )के बारे में आज हम जो भी जानते हैं ,उसका श्रेय हॉकिंग को भी जाता है।

ब्लैक होल पर जानकारी हाकिंग की देन

विश्व की उत्पत्ति और ब्लैक होल (कृष्ण विवर ) के बारे में उनकी खोज हमारी सभ्यता को उनकी प्रमुख देन है । ब्लैक होल के बारे में आज हम जो भी जानते हैं उसका सर्वाधिक श्रेय हॉकिंग को है। 1974 में हॉकिंग ने क्वांटम के सिद्धान्त पर भरोसा करते हुए घोषणा की कि ब्लैक होल उष्मा काविकिरण करता है । और इस क्रम में वह अंतत: अस्तित्व से बाहर हो जाएगा।

इस ब्रह्माण्ड की गुत्थियों को समझाने में दुनिया की मदद करने वाले हॉकिंग ने बिग बैंग सिद्धान्त केअध्ययन के दौरान 1974 में ब्लैक होल सिद्धांत की सबसे अहम खोज की। इसके अलावा उन्होंने पहली बार विज्ञान की क्वांटम सिद्धांत और सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत को एक साथ ला दिया। अपनी ‘थ्योरी ऑफ़ एवरीथिंग’में उन्होंने बताया कि ब्रह्माण्डका निर्माण साफ़ तौर पर परिभाषित सिद्धांतों के आधार पर हुआ है।

बिग बैंग थ्योरी

ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के बारे में हॉकिंग की ‘बिग बैंग’ या बड़े विस्फोट की परिकल्पना इसी परआधारित है। उन्होंने अपने पूर्ववर्ती वैज्ञानिकों के इस बात का खंडन किया कि ब्रह्माण्ड हमेशा से इसीस्थिति में रहा है । कैंब्रिज में उनकी पीएचडी का विषय भी यही था।

हॉकिंग के मुताबिक़ ब्रह्माण्ड उच्च घनत्व और तापक्रम की अवस्था में विस्तारित हुआ । विस्तारण किइस प्रक्रिया के विश्लेषण से पता चलता है कि यह लगभग 13.8 अरब वर्ष पहले हुआ । यह माना जाता है कि ब्रह्माण्ड की रचना एक सिंगुलैरटी या अनंतबिंदुता से शुरू हुई। बिग बैंग के कारण असीमित मात्रा में ऊर्जा और कई तरह की गैस निकली।

जैसे शुरुआत वैसे अंत

प्रारंभिक प्रसार के बाद ब्रह्माण्ड शीतल होने लगा, जिसकी वजह से सूक्ष्म कणों का निर्माण हुआ , जिसमें बाद में अणुओं को जन्म दिया । प्रारंभिक तत्वों के विशालकाय बादल गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में संगठित हुए और इसने तारों और आकाशगंगाओं की रचना की। वह यह भी मानते थे कि जिसतरह इस ब्रह्माण्ड की शुरुआत हुई उसी तरह इसका अंत भी होगा।

उनका विश्वास भी था कि ब्रह्मांड में अन्यत्र हमसे भी उन्नत सभ्यता की परिकल्पना बकवास नहीं है ।हॉकिंग ब्रह्माण्ड के रहस्यों से पर्दा हटाना चाहते थे।

हॉकिंग ने मानी अपनी पराजय

उन्होंने इस बात की परिकल्पना की कि ब्लैक होल में गुरुत्वाकर्षण इतना ज़्यादा होता है कि प्रकाश भी उससे बच नहीं सकता।उसको भी वो अपनी ओर खींच लेता है। उनका यह भी कहना था कि ऐसी स्थिति में जब ब्लैक होल के अंदर जाने वाली सारी सूचनाएँ नष्ट हो जाएंगी, जब ऊर्जा का निस्सरण होगा। पर दूसरे विज्ञानी उनकी बात से सहमत नहीं थे।

इस समझ को आगे बढ़ाने वालों में मरीका टेलर भी थी , जो हॉकिंग की छात्रा थीं। हॉकिंग ने अपनी पराजय स्वीकार की और आज यह ‘इन्फ़ॉर्मेशन पेराडॉक्स के नाम से जाना जाता है। 1982 में हॉकिंग ने ‘थ्योरी ऑफ़ कॉस्मिक की इंफ्लेशन’ दिया, जिसके तहत उन्होंने कहा कि ब्रह्माण्ड में ऐसा समय आया, जब उसमें भारी विस्तार आया ।

बिग बैंग बम जैसा धमाका नहीं

बिग बैंग थ्योरी यह भी बताती है कि क़रीब १५ अरब साल पहले पूरे भौतिक तत्त्व और ऊर्जा एक विंदुमें सिमटे हुए थे । फिर इस विंदु ने फैलना शुरू किया। बिग बैंग बम विस्फोट जैसा धमाका नहीं था,बल्कि इससे प्रारंभिक प्रमुख ब्रह्मांड के कण समूचे अंतरिक्ष में फैल गए और एक दूसरे से दूर भागनेलगे। इस सिद्धांत का श्रेय एडविन हबल नाम के वैज्ञानिक को जाता है । उन्होंने कहा था कि ब्रह्माण्ड का निरंतर विस्तार हो रहा है। इसका मतलब ब्रह्माण्ड कभी सघन रहा होगा । हॉकिंग ब्रह्मांड की रचना को स्वतःस्फूर्त घटना मानते थे।

स्वर्ग एक मिथक है अंधेरे से डरने वालों के लिए

अपनी किताब ‘द ग्रांड डिज़ाइन’ में उन्होंने भगवान के अस्तित्व पर सवाल उठाया था । बाद के दिनों मेंउन्होंने खुद को नास्तिक घोषित कर दिया था। इसके चलते वह धार्मिक समुदायों की ओर सेआलोचना का पात्र बन गए थे ।

हॉकिंग ने ‘द गार्जियन’ के इंटरव्यू में कहा था कि स्वर्ग एक मिथक है । स्वर्ग या मृत्यु उपरांत जीवनजैसी कोई चीज़ नहीं है । यह केवल परीकथा है । जिसमें लोगों के डर को ख़त्म करने की कोशिशकी जाती है। स्वर्ग केवल अंधेरे से डरने वालों के लिए बनायी गई कहानी है।

बहुत से पुरस्कारों से नवाजा गया

उन्होंने कहा कि क्वांटम उतार चढ़ाव या ब्रह्माण्ड में पदार्थों के बीच सूक्ष्म विविधता बहुत ही छोटे छोटे तरंगों को जन्म देता है और इन्हीं तरंगों में ही तारों,नक्षत्रों और जीवन के रहस्य छिपे होते हैं।

उनका सारा काम सैद्धांतिक क्षेत्र में है ,इसका कहीं कोई प्रायोगिक रिकॉर्ड नहीं है , यही कारण है किउन्हें नोबेल पुरस्कार नहीं मिल पाया। हॉकिंग को अलबर्ट आइंस्टीन पुरस्कार, वुल्फ़ पुरस्कार, कोप्लेमेडल और फंडामेंटल फिजिक्स पुरस्कार से नवाज़ा जा चुका है। हालांकि कि उन्हें १९७४ में जब रॉयल सोसायटी की फेलोशिप मिली तब वह इस सम्मान को पाने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे।

और चुनौती से उबर गया मैं

इतना सब जानने के बाद अभी हाकिंग को कवर करने के लिए पैडिंग के सिवाय मेरे पास कुछ नहीं था। उनके भाषण को समझना मेरे लिए पहेली थी। वैसे तो मुझे यह पता था कि हिंदी अख़बार केलिए , उसके पाठकों के लिए हाकिंग के कार्यक्रम का कितना महत्व है। पर मैं अपनी चुनौती से जूझरहा था। उससे जीतना चाहता था।

खबर बनाने के लिए जब कार्यक्रम ख़त्म होने के बाद मैंने उन दोस्तों को फ़ोन किया जिनसे खबर लिखने के समय मदद की उम्मीद थी, पर सब के सब जल्दी से जल्दी अपनी खबर फाइल करने में जुटे थे। लिहाज़ा किसी ने हमें इंटरटेन नहीं किया। पर चुनौती तोचुनौती होती है। उससे उबरना या उसके साथ ही डूबना होता है।

मैं डूबने को तैयार नहीं था। तरकीबऔर तिकड़म तलाश रहा था। हमें अंदाज था कि पीटीआई और यूएनआई जब रिलीज़ करेंगे तो हमेंम दद मिल जायेगी। पर वह भी अंग्रेजी की खबर पहले रिलीज़ करते हैं। यह चलन है। उनकी खबरें रिलीज़ होते ही पीटीआई और यूएनआई में काम कर रहे दूसरे साथियों से टिकर फ़ैक्स पर मंगा मैं अनुवाद करने में जुट गया। किसी तरह खबर बन पाई। पर पैडिंग में सबसे अधिक सूचना हमारे पासही थी। चुनौती से ऊबर गया मैं।

हर दिन जीवन का आखिरी दिन

आज हाकिंग को गुजरे काफ़ी साल लग गये। दिल्ली यात्रा के बाद में उनकी झोली कीर्तिमानों से भरगई।२००९ में उन्हें अमेरिका के सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम से नवाज़ागया।

2013 में उनके जीवन पर हॉकिंग नाम से डॉक्युमेंट्री फ़िल्म बनायी गई। जिसमें उन्होंने अपने जीवनके बारे में कहा था चूंकि हर दिन मेरे जीवन का आख़िरी दिन हो सकता है , इसलिए मैं एक एक मिनटका ज़्यादा इस्तेमाल कर लेना चाहता हूँ ।

हॉकिंग ने एक्टिंग भी की

2014 में उनके जीवन पर आधारित बनी फ़िल्म ‘द थियरीऑफ़ एवरीथिंग’ में अभिनेता एड़ी रेडमायन ने उनका किरदार जीवंत किया। 2004 में बेनेडिक्ट कुंवरबैंच पहले अभिनेता बने , जिन्होंने इस भौतिकशास्त्री के जीवन को रुपहले पर्दे पर जीवंत किया। उन्होंने ‘स्टार ट्रैक :द नेक्स्ट जनरेशन’ नाम की एक फ़िल्म में छोटी सी भूमिका भी अदा की । मशहूर टीवी सीरियल ‘द सिम्पसन’ में एक एनिमेटेड करेक्टर का रोल भी निभाया।

आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के आलोचक

बाद के दिनों में हॉकिंग का मानना था कि तमाम अच्छाइयों के बावजूद मशीनों को बुद्धि देना मानव इतिहास की सबसे बुरी घटना हो सकती है। हॉकिंग ब्रिटेन की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में लीवरहम सेंटरफॉर द फ़्यूचर ऑफ़ इंटेलिजेंस के उद्घाटन के मौक़े पर बोल रहे थे। मशीनों की सोच मनुष्य की सोचसे टकरा सकती है । जिससे भयावह स्थिति पैदा हो जाएगी । ये रोबोट या यंत्र अपने आस पास केपरिवेश के हिसाब से ख़ुद फ़ैसले करने में सक्षम होते हैं।

हॉकिंग 2007 में लक़वे के शिकार पहले व्यक्ति बनें जिसने शून्य गुरुत्व का अनुभव किया । इसकेलिए विशेष प्रकार के विमान में भारहीनतान का उन्हें अनुभव कराया गया था।तब उन्होंने कहा मेरामानना है कि मानव सभ्यता का तब तक कोई भविष्य नहीं है तब तक वह अंतरिक्ष में नहीं जाती। हाकिंग ने अटलांटिक महासागर के ऊपर विशेष जेट विमान में 25 सेकेण्ड तक भारहीनता का अनुभव करके दुनिया में यह करने वाले पहले विकलांग आदमी बन बैठे। इसके लिए उन्होंने 40 साल में पहली बार अपनी व्हीलचेयर से खुद को अलग किया।

हॉकिंग का मानना था कि जलवायु परिवर्तन से 26 सौ तक धरती आग का गोला बन जाएगी और मानव सभ्यता का अंत हो जाएगा। इंसान को दस लाख साल तक अस्तित्व बचाए रखना है , तो सौ वर्षों में दूसरे ग्रहों पर उपनिवेश बनाना पड़ेगा। वे विज्ञान के इतिहास में अमर हो गए।

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