Freedom: आखिर इन बातों से कब मिलेगी आजादी ?

Freedom: विगत 76 वर्षों में हम यदि बारीकी से आकलन करें तो हम संवेदनहीन हुए है और राजनीतिक विचारधाराओं ने वोट गणित में मुद्दों की बलि चढ़ा दी है | अब आम आदमी पर राजनीतिक प्रभाव इतना गहरा दिखाई पड़ने लगा है कि वह बड़ी से बड़ी घटनाओं पर प्रश्न करने के बजाय इस तरह का व्यवहार कर रहा है मानों उसका इससे कोई लेना देना ही न हो।

Update:2023-08-17 15:10 IST
freedom (photo: social media )

Freedom: देश को आजाद हुए 76 वर्ष पुरे हो गए । अभी देश ने 77वां स्वतंत्रता दिवस मनाया है । इन 76 वर्षो में अनेकों अप्रत्याशित बदलाव और उपलब्धियां रही है । जिससे देश का प्रत्येक नागरिक अत्यधिक मजबूत हुआ है । साथ ही कई बिन्दुओं में हम अंतर्राष्ट्रीय मानकों की भी पूर्ति कर रहें है | राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो आजादी का अमृत काल चल रहा है। चारो तरफ खुशहाली दिखाई पड़ रही है । इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता की वर्तमान केंद्र सरकार ने अनेकों निर्णय लेकर देश को बेहतर करने का कार्य किया है । इसके प्रभाव को अभी महसूस किया जा रहा है ।

विगत 76 वर्षों में हम यदि बारीकी से आकलन करें तो हम संवेदनहीन हुए है और राजनीतिक विचारधाराओं ने वोट गणित में मुद्दों की बलि चढ़ा दी है | अब आम आदमी पर राजनीतिक प्रभाव इतना गहरा दिखाई पड़ने लगा है कि वह बड़ी से बड़ी घटनाओं पर प्रश्न करने के बजाय इस तरह का व्यवहार कर रहा है मानों उसका इससे कोई लेना देना ही न हो। ऐसे में यह जरुरी हो जाता है की हम उन मुद्दों पर आजादी की बात करें जिन पर हमें आजादी प्राप्त किये बिना किसी भी देश का सम्पूर्ण विकास संभव नहीं हो सकता है।

राजनीतिक अहंकार

आजादी के पश्चात् से ही राजनीतिक अहंकार एक दो नहीं कई अवसरों पर देखने को मिला है । कई नेताओं ने देश को बाटने का कार्य किया है। जनता में ऐसी अवधारणा विकसित कर दी है कि मतभेद बढ़ते चले जा रहें है | अनेक अवसरों पर बड़े विवाद की देन नेताओं की वाणी रही है। देश की किसी भी अव्यवस्था और समय से उपलब्धि प्राप्त न होने के पीछे प्राथमिक रूप से इनकी भूमिका को नाकारा नहीं जा सकता है ।इन्होने एक ऐसे अहंकार को पाल रखा है जो देश को लक्ष्य प्राप्त करने में हमेशा बाधक सिद्ध हुआ है ।

76 वर्षो में यदि इनके द्वारा ईमानदारी से कार्य किया गया होता तो आज देश की तस्वीर कुछ और होती। हालाँकि कुछ ऐसे नेता जरुर रहें है जिनकी प्रतिबद्धता और ईमानदारी का कायल देश का प्रत्येक आदमी रहा है । पर यह नाकाफी इसलिए है । क्योंकि लोकतंत्र में चुने हुए सभी नेताओं की भूमिका सामान होती है और सामान सोच वालों की संख्या अधिक होने पर एक ईमानदार से भी बहुत कुछ फर्क नहीं पड़ता। आज राजनीतिक अहंकार सभी दलों पर भारी है तभी देश की स्थिति इतनी दयनीय है। आखिर कब इन अहंकारों से देश को आजादी मिलेगी ?

महिला सुरक्षा

कथिततौर पर महिला सम्मान की बात हर छोटे बड़े प्लेटफार्म से सभी करतें है । पर व्यवहारिक स्वरुप उसका ठीक विपरीत है । आजादी के पश्चात् से अब तक देखा जाएँ तो महिला सुरक्षा के नाम पर सरकारें बनती बिगडती दिखाई दी है । पर महिलायें न केवल असुरक्षित आज भी हैं, बल्कि किसी भी विरोध में उनके साथ अन्याय करना आम बात बन चुका है। मणिपुर की घटना आपको यह सोचने में विवश जरुर कर देगी कि आखिर आजादी के मायने क्या है ? क्या देश का कानून इतना कमजोर है की इस तरह की घटना पर नियंत्रण नहीं पाया जा सकता है ?

इस पर सोचने और कार्य करने की जरूरत है। देश के अन्दर महज तीन वर्षों में 13 लाख महिलाओं का गायब होना यह स्वतः बयान करता है कि महिलाओं की सुरक्षा कितनी सशक्त है। आज भी महिलाओं के लिए समानता का अधिकार कागजों तक सीमित है । घरेलु अपराध में भी सबसे अधिक पीड़ित महिलाएं ही हैं।आखिर महिला सुरक्षा के विषय में आजादी कब मिलेगी ?

भ्रष्टाचार

समय के साथ – साथ इसका सिर्फ स्वरुप चेंज हुआ है। यह अत्यधिक तेजी से हर जगह विद्यमान हो चुका है | सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में लगभग हर कार्यस्थल इस बीमारी से प्रभावित हुआ है। इसके परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था को कितना बड़ा नुकसान हुआ है, यह अभी अज्ञात है । देश में कई बार भ्रष्टाचार समाचार पत्र की सुर्खियाँ बनता है पर शाम होतें - होतें जिस तरह पुराने न्यूज़ पेपर का अस्तित्व समाप्त हो जाता है, उसी तरह ख़बरें भी गायब हो जाती है ।

राजनीतिक संलग्नता इस मुद्दे को और अधिक मजबूत कर रही है । नतीजन, इसके बुरे प्रभाव का खामियाजा आम जनता को सहना पड़ रहा है | जबकि वर्तमान सरकार ने डिजिटलीकरण करके इस पर अंकुश लगाने की दमदार कोशिश की है पर शातिर तकनीकी आज भी इस पर भारी है | आखिर भ्रष्टाचार से आजादी कब मिलेगी ?

अशिक्षा

देश का आम आदमी पढ़ा-लिखा तो जरुर हुआ है । पर सिस्टम की समझ और न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका की समझ आज भी अधिकांश लोगों में नहीं है | जिस दिन कार्य प्रणाली की समझ और स्वयं के अधिकार और दायित्व की जानकारी आम आदमी में हो जाएगी न कोई राजनीतिक दल गुमराह कर पायेगा और न ही वोट बैंक के लिए विभाजित कर पायेगा। 2011 की जनगणना कहती है की 74.04 फ़ीसदी लोग शिक्षित हैं। पर समझ लोगों में कितनी है यह चारों तरफ की घटना से समझा जा सकता है।

आज शिक्षा निजी हाथों में उपहार स्वरुप सौप दी गयी है, जिससे लागत इतनी बढी है कि अधिकांश आबादी उसे वहन नहीं कर पा रही है। कहने को सरकारी शिक्षा की उपलब्धता है । पर रेस में बने रहने के लिए और सफलता प्राप्त करने के लिए अब निजी क्षेत्र से शिक्षा बाध्यता बनती चली जा रही है । जिनके पास पैसा है उनके लिए लगभग सभी तरह की शिक्षा संभव है और जिनके पास नहीं उनके लिए ? वर्तमान शिक्षा व्यवस्था देश में लोगों को ठीक उसी तरह अलग कर रही । जैसे कभी अंग्रेज लोग अपने शासन के समय करते रहे थे ।आखिर कब मिलेगी अशिक्षा से आजादी ?

गरीबी, महंगाई और बेरोजगारी

ग्लोबल एमपीआई 2021 के अनुसार, 109 देशों में से भारत की रैंक 66 है।इसके तीन समान महत्व वाले आयाम हैं - स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर । यानि की अभी भी देश को बहुत कुछ करने की जरूरत है । नीति आयोग

बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2023 से पता चलता है कि भारत की गरीबी दर 15 फ़ीसदी से नीचे है देश की कुल आबादी के अनुपात में यदि इसे देखा जाए तो यह चिंता का विषय है । दुनियां में अपना इकलौता देश है जो सबसे अधिक लोगों को फ्री में राशन बाटता है । जबकि गरीबी के पीछे बरोजगारी का भी हाथ है, आज लोगों के पास फुलटाइम काम नहीं है । आपको प्रत्येक घर में एक व्यक्ति पर कई आश्रित आसानी से दिख जायेगे।

सार्वजानिक क्षेत्र के रोजगार धीरे-धीरे समाप्त हो रहें है । वही निजी क्षेत्र में रोजगार में कर्मचारियों के हित असुरक्षित है । जहाँ मनमाने ढंग से हजारों लोगों को कम्पनियाँ एक पल में ही बाहर कर देती हैं। महंगाई के आकड़ों की तुलना के बजाय सिर्फ इस बात को समझना जरुरी है कि “देश का प्रत्येक नागरिक आज भी स्वास्थ्य पूरक भोजन से वंचित है।” इन मुद्दों से कब मिलेगी आजादी ?

स्वास्थ्य सुरक्षा

शिक्षा के साथ – साथ स्वास्थ्य सुविधाएँ भी अब निजी क्षेत्र के हाथों में है । कोरोनाकाल में इसकी सारी कमियां सभी के सामने थी।आज भी इससे सम्बंधित जमीनी आवश्यकताओं की पूर्ति होती नहीं दिख रही है। निजी क्षेत्र में इलाज का भारी शुल्क अधिकांश आबादी के जद में नहीं है वही सार्वजानिक क्षेत्र में लोगों के पास एक्सपर्ट द्वारा इलाज के सीमित विकल्प उपलब्ध है । भारत में 36 फ़ीसदी आबादी के पास शौचालयों की पहुंच नहीं है, शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 34 है, सभी नवजात शिशुओं में से 50फीसदी का कुपोषण के कारण उनका विकास रूक जाता है और अभी भी गांवों में से 50 फ़ीसदी लोगों तक पेशेवरों द्वारा स्वास्थ्य देखभाल की पहुंच नहीं है। कब मिलेगी आजादी स्वास्थ्य सुरक्षा की ?

सोशल मीडिया और इन्टरनेट

समय के साथ साथ तकनीकी मानव पर भारी होने लगी है । आगामी कुछ वर्षो में निजी और सार्वजानिक जीवन में तकनिकी और रोबोटिक्स का दबदबा होगा।आज सोशल मीडिया पर लोग अधिकांश समय व्यतीत कर रहें है जिससे न केवल अनवांछित गतिविधियों को बढ़ावा मिल रहा है । बल्कि अपराध भी नए तरीके का जन्म ले रहा है। सामाजिक विकास के लिए निर्धारित परम्परा आधुनिकता के नाम पर ख़त्म होती जा रही है। पाश्चात्य संस्कृति का दबदबा बढ़ता जा रहा है । शहर हो या गाँव हर जगह सोशल मीडिया का जलवा है । पर क्या इसे प्रयोग करने के मानकों की समझ अधिकांश लोगों में है ?

इसका सीधा उत्तर हो सकता है नहीं। आज हम नए गुलामी की गिरप्त में समातें चले जा रहें है, जो देश की तरक्की में बड़ा बाधक है ऐसे में सरकार को चाहिए की इन विषयों पर सभी जगह प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन कर आम जन में जागरूकता लाये नहीं तो भविष्य के लिए सबसे खतरनाक यही साबित होगें जहाँ अधिकांश लोग इसके माध्यम से गुलामी कर रहे होंगे और कुछ चुनिन्दा लोग सभी पर शासन।कब मिलेगी सोशल मीडिया और इन्टरनेट के दुरूपयोग से आजादी?

आजादी के 76 वर्षो के पश्चात् देश परिवर्तन की कठिन प्रक्रिया से गुजर रहा है । जहाँ करोड़ों लोगों का हित लगातार प्रभावित हो रहा है । ऐसे में जिम्मेदारी से भी मुह नहीं मोड़ा जा सकता है। समय के चक्र में कई ऐसी बातों ने जन्म लिया जिन्हें शायद नहीं आना चाहिए था। जमीनी आवश्यकताओं पर अनेकों नियम कानून तो जरुर बनें पर शत-प्रतिशत पालन आज भी नहीं हो रहा । हमारें देश के पश्चात् आजाद हुए देशों ने अपने देश के लिए ईमानदारी दिखाकर वह मुकाम हासिल किया है। जिसकी सराहना सभी कर रहें हैं। कहने और लिखनें को अनेक मुद्दे हैं। पर महत्वपूर्ण और प्रासंगिक मुद्दों की बात की जाय तो उक्त मुद्दों पर सलीके से कार्य करने की जरूरत है।

यह आवश्यक इसलिए भी है क्योंकि आजादी के पश्चात भी हम उन्ही राहों पर दशकों पश्चात् खड़े दिख रहें है, जहाँ हमें नहीं होना चाहिए। मणिपुर की घटना यदि आप सोचे तो महज एक घटना है । पर उस पर विचार करेगे तो आप महसूस करेगे की आज भी हम गुलामी के दौर में जी रहें हैं। जिम्मेदारी सभी की सुनिश्चित की जानी चाहिए।यह सिर्फ सरकार चुनने से नहीं होगा।

बल्कि हम सभी को हर सही कार्य की न केवल प्रशंसा करनी होगी बल्कि प्रत्येक गलत कार्य पर सीधा प्रश्न जिम्मेदारी से करना होगा। आखिर आजादी के मायने तभी है जब जमीनी समस्याओं और मुद्दों से आजादी मिले । अन्यथा तो हम सभी आपस में बटें ही हैं। अब जरूरत है इन मुद्दों से आजादी की । जिससे सर्वश्रेष्ठ भारत बनाया जा सकें । सभी जन के हितों की सम्पूर्ण रक्षा की जा सकें।

( लेखक स्तंभकार हैं ।)

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