Indian Media: कब प्रौढ़ होंगे हमारे मीडियाकर्मी ?

Indian Media: आजादी के साढ़े सात दशक बाद भारतीय मीडिया आज भी अंग्रेजी औपनिवेशिक प्रवृत्ति से ग्रस्त है, गाफिल है। विदेश के समाचार-प्रकाशन में राष्ट्रीय भावना को अपने मन में बैठाने और पाठकों को समझाने में विफल रहा है।

Update:2023-04-09 02:25 IST
कब प्रौढ़ होंगे हमारे मीडियाकर्मी?-Photo- Social Media

Indian Media: आजादी के साढ़े सात दशक बाद भारतीय मीडिया आज भी अंग्रेजी औपनिवेशिक प्रवृत्ति से ग्रस्त है, गाफिल है। विदेश के समाचार-प्रकाशन में राष्ट्रीय भावना को अपने मन में बैठाने और पाठकों को समझाने में विफल रहा है। उदाहरण हैं आज (8 अप्रैल 2023) के अखबार। मसलन बलूचिस्तान की खबर आई कि पाकिस्तान के नवउपनिवेशवाद के विरुद्ध स्वतंत्रता-सेनानी गुलजार इमाम को पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था आईएसआई ने पकड़ लिया। उन्हें मौत दे दी जाएगी। मगर भारतीय दैनिकों ने इस स्वतंत्रता-सेनानी गुलजार को “आतंकी”, “खूंख्वार” आदि विश्लेषणों से विभूषित किया है।

पाकिस्तानी मीडिया में भी ऐसा ही छपता है। हमारे मीडियाकर्मियों को जानना होगा कि लाहौर में मकबूजा (अधिकृत) कश्मीर कहते हैं श्रीनगर, गुलमर्ग, पहलगाम को। कभी एक दौर था जब भारतीय मीडिया भी मुजफ्फराबाद को “आजाद” कश्मीर की राजधानी लिखा करता था। बाद में सुधरे। बलूच मुजाहिद्दीन-ए-आजादी गुलजार इमाम की गिरफ्तारी अकस्मात नहीं हुई जैसी पीटीआई (भाषा) ने इस्लामाबाद समाचार प्रेषित किया।

इन शाब्दिक अर्थों के अक्षरों और ध्वनि के विभिन्न आयाम हैं। उन पर गौर करना होगा। भारत हित में इन देसी पत्रकारों को अध्यन-केंद्रशाला में ले जाकर बताना होगा कि बलूचिस्तान को पाकिस्तानी वायुसेना 1947 ने विलय कराया है। रायशुमारी द्वारा कभी नहीं, कतई नहीं। कश्मीर के तो शासक ने भारत से संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद विलय किया था। स्पष्ट अंतर है इन दो हिमालयी भूभागों में। केवल मूर्ख या हठी ही नहीं समझेगा। आक्रोशित बलोचराष्ट्रवादी ने गत 26 सितंबर मे सागर तटीय ग्वादर में मोहम्मद अली जिन्ना की मूर्ति बम से उड़ा दिया था। क्योंकि जिन्ना ने जबरन उनके देश को इस्लामी पाकिस्तान का गुलाम बना डाला था। कराची में जिन्ना के दैनिक “दि डान” में इसका सचित्र समाचार छपा था।

साथी गुलजार इमाम पर बलूच राष्ट्रीय स्वाधीनता सेना के प्रवक्ता मुरीद बलोच ने बताया कि : “गुलज़ार उर्फ शाम्बे पाकिस्तानी गुप्तचर एजेंसियों की हिरासत में है। वह कुछ समय पहले लापता हो गया था। संगठन ने मामले की जांच की और विश्वसनीय सबूतों के माध्यम से पाया कि वह कैद में है। एक बलूच सूत्र के अनुसार इमाम को तालिबानी अफगानिस्तान में पाकिस्तानी दूतावास ने जासूसी एजेंसियों द्वारा फंसाया गया था, उनके यात्रा दस्तावेज अफगानिस्तान में तैयार किए गए थे और उन्हें तुर्की जाने के लिए कहा गया था, जहां उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और पाकिस्तान स्थानांतरित कर दिया गया। एक अन्य रिपोर्ट में दावा किया गया था कि ईरान से वहां पहुंचने के बाद उन्हें तुर्की में गिरफ्तार किया गया था। यह सब विवरण भारतीय मीडिया मे नहीं है। इस्लामी भाईचारे के नाम पर एक राष्ट्रप्रेमी बलूच योद्धा को जेल में डाला। इसे बचाना है तो स्वाधीनता-प्रेमियों को जद्दोजहद करनी होगी। भारत को खासकर। उसकी मीडिया को तो जरूर।

बलूच बागी को अपना बिरादर मानें!

एक बड़ा खास पहलू है यहां। भारत का नजरिया पहली बार बलूच आजादी के पक्ष में नरेंद्र मोदी ने अपने स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त 2016) में लाल किले से उठाया था। ठीक है एक दिन पूर्व (14 अगस्त 2016) पाकिस्तान ने कश्मीर का सवाल फिर उठाया था। मोदी का सटीक जवाब था : “भारत बलूच आजादी का पक्षधर है।” इस पर तब की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की राय थी कि भारत को बलूचिस्तान के हित में पाकिस्तान के प्रति कठोर राय अपनानी चाहिए। तब मीडिया ने इसे सचिव (स्व. अहमद पटेल) के सूत्र से लिखा था। राहुल ने भी इस पर चर्चा की थी। मगर सलमान खुर्शीद पूर्व विदेश मंत्री ने कड़ा विरोध किया था। मोदी की भर्त्सना की थी। (इंडियन एक्स्प्रेस के संवाददाता मनोज सीजी की रपट: 17 अगस्त 2016)। खुर्शीद ने इंडियन एक्स्प्रेस मे उसी दिन अपने लेख में लिखा भी था कि यह “मोदी का एडवेंचर हो गया।”

तभी अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजाई और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने मोदी का समर्थन किया था। बलूच रिपब्लिकन पार्टी के अध्यक्ष ब्रह्मदत्ता बुगती ने मोदी का आभार व्यक्त किया था। बलोच राष्ट्रीय आंदोलन के अगवा हम्माल हैदर ने लंदन में मोदी के कसीदे गाए थे। मगर तभी चीन ने (29 अगस्त 2016 : टाइम्स ऑफ इंडिया) में धमकी दी थी कि यदि मोदी ने बलूचिस्तान में तनाव उपजाया तो चीन पाकिस्तान के पक्ष में हस्तक्षेप करेगा।

हिंदुओं के लिए बलूचिस्तान प्राचीन आदि संस्कृति का केंद्र

हिंदुओं के लिए बलूचिस्तान प्राचीन आदि संस्कृति का केंद्र है। यहां 51 शक्तिपीठों में मां हिंगलाज सिद्धपीठ है यह। माँ वैष्णो देवी, मां काली तथा मां दुर्गा के समान हैं। वे रिद्धि सिद्धि देने वाली हैं। हिंदू धर्म ग्रंथोंग्नी के अनुसार भगवान परशुराम के पिता महाऋषि जमाद्ग्नी ने यहां घोर तप किया था। उनके नाम पर आसाराम नामक स्थान अभी भी यहां मौजूद है जो भगवान परशुराम के नाम से जाना जाता है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की यात्रा के लिए इस सिद्ध पीठ पर आए थे। मंदिर के साथ ही गुरु गोरखनाथ का चश्मा है। कहा जाता है कि माता हिंगलाज देवी यहां सुबह स्नान करने आती हैं। मगर अब हिंदू वहां तीर्थयात्रा पर जा नहीं सकते। अतः प्रधानमंत्री को अपना 2016 का वादा निभाना चाहिए। आस्थावानों की अर्चना है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ।)

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