कहां सावरकर और कहां राहुल ?

हमारे आजकल के नेताओं से यह आशा करना कि वे नेहरु, लोहिया, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, विनोबा, अटलबिहारी वाजपेयी और नरसिंहराव की तरह पढ़े-लिखे होंगे, उनके साथ अन्याय करना होगा।

Update:2019-12-17 09:42 IST

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

हमारे आजकल के नेताओं से यह आशा करना कि वे नेहरु, लोहिया, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, विनोबा, अटलबिहारी वाजपेयी और नरसिंहराव की तरह पढ़े-लिखे होंगे, उनके साथ अन्याय करना होगा। वे सत्ता में हों या विपक्ष हों, उनका बौद्धिक स्तर लगभग एक-जैसा ही होता है। सलाहकार तो उनके भी होते हैं। लेकिन वे अपने स्तर के लोगों से ही घिरे रहते हैं। इसी का नतीजा है कि कांग्रेस के राहुल गांधी ने कह दिया कि मैं सावरकर हूं क्या, जो माफी मांगूगा। मैं सावरकर नहीं, राहुल गांधी हूं। क्या पिद्दी और क्या पिद्दी का शोरबा ? आप कौनसे गांधी हैं ? आपके दादाजी, फिरोज भाई तो खुद को गांधी भी नहीं लिखते थे। उनके सरनेम की स्पेलिंग होती थी ghendy घेंडी, घंदी या गंधी ।

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राहुल ने यह नहीं बताया कि उसके माफी मांगने और सावरकर का क्या संबंध है। या तो उसे पता ही नहीं होगा कि उसने जो कहा, उसके पीछे कौनसी कहानी है। यह भी हो सकता है, जैसा कि होता हुआ अक्सर दिखाई पड़ता है कि किसी ने आकर कान में चाबी भरी और गुड्डा नाचने लगा। चाबी खतम तो नाच भी खतम। उसे आगा-पीछा कुछ पता नहीं। यह तो ठीक है कि रेप इन इंडिया (भारत में बलात्कार) कहने पर उसे माफी मांगने की कोई जरुरत नहीं थी, क्योंकि ऐसा कहकर वह बलात्कार का समर्थन नहीं कर रहा था बल्कि उसे धिक्कार रहा था लेकिन ‘मैं मर जाऊंगा लेकिन माफी नहीं मांगूंगा’, यह कहने की क्या मजबूरी थी ? जो सर्वोच्च न्यायालय से पहले ही माफी मांग चुका है, चौकीदार चोर है पर, उसे इतनी डींग मारने की क्या जरुरत है ?

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जहां तक अपने आपकी तुलना सावरकर से करने की बात है, यह तथाकथित नेता, जो पांच-सात वाक्य भी शुद्ध नहीं बोल सकता, उसकी यह हिमाकत ही है कि वह सावरकर को खुद से नीचा दिखाने की कोशिश करे। ऐसा करके अपनी भद्द पिटाने के अलावा इस घिसे-पीटे नौसिखिए ने और क्या किया ? सावरकर ने भारत की आजादी के लिए जैसी कुर्बानियां की हैं, क्या किसी कांग्रेसी नेता ने की है ? सावरकर ने जैसे मौलिक और खोजपूर्ण ग्रंथ लिखे हैं, उन्हें पढ़ने की भी क्षमता या बुद्धि आज के नेताओं में है ? सावरकर इतने बुद्धिवादी और तर्कशील थे कि उन्हें कांग्रेस तो क्या, जनसंघ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के लिए भी पचाना मुश्किल रहा है। यह ठीक है कि सावरकर और गांधी में कभी पटी नहीं लेकिन सावरकर में दम नहीं होता तो गांधी उनसे मिलने के लिए 1909 में लंदन के इंडिया हाउस और 1927 में उनके घर रत्नागिरि में क्यों गए थे ?

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