K Vikram Rao: पारसी जन क्यों बड़े अच्छे लगते हैं !!

K Vikram Rao: आज नवरोज है। पारसी मतावलंबियों का नया साल। बेस्ता बरस! भारत की 130 करोड़ आबादी में केवल सत्तावन हजार पारसियों की तादाद है।

Written By :  K Vikram Rao
Update:2022-08-16 17:53 IST

K Vikram Rao: पारसी जन क्यों बड़े अच्छे लगते हैं !!

K Vikram Rao: आज नवरोज (16 अगस्त 2022) है। पारसी मतावलंबियों का नया साल। बेस्ता बरस! भारत की 130 करोड़ आबादी में केवल सत्तावन हजार पारसियों की तादाद है। राई से भी छोटी। अल्पसंख्यकों में अल्पतम। अग्नि और सूर्य की वे आराधना करते हैं। आर्यो की तरह। पारसी जन्मतः होता है। मतांतरण द्वारा नहीं। वे शव को न दफनाते है, न दहन करते है। गिद्धों के सामने लाश डाल देते है। भावना यही कि किसी प्राणी का भोजन ही हो जाये। उत्सर्ग की पराकाष्ठा है। उनकी भाषा अवेस्ता के व्याकरण और शब्द संस्कृत से मिलते हैं। दंगे नहीं कराते पारसी जन (Parsi people)। वे अहिंसक और शांत प्रवृत्ति के होते हैं। रचतात्मक और सर्जनात्मक। मगर अचरज होता है कि वे खोरासान के थे। खोरासान मतलब ''जहां से सूरज उगता है।'' पूरब दिशा। किन्तु इस्लाम में खोरासान (Khorasan) का अलग महत्व और पहचान है। अलकायदा और ओसामा बिन लादेन (Osama bin Laden) का मनपसंद स्थल है। भविष्यवाणी है कि गजवाये-हिन्द की शुरूआत यहीं से होगी। ख्याल है कि चांद सितारे वाला हरा परचम लहराते मुसलमान लोग यहीं से भारत पर कूच करेंगे। समूचा भारत तब दारूल इस्लाम हो जायेगा।

पारसी जन एकदम भिन्न

मगर ये पारसी जन एकदम भिन्न हैं। जब रशीदुद्दीन खलीफा (Rashiduddin Khalifa) राज कायम हो गया था और प्रथम खलीफा अबु बकर (First Caliph Abu Bakr) ने ईरान में पारसियों को शमशीरे इस्लाम के तहत मारना शुरू किया तो ये लोग भागकर भात के पश्चिमी सागरतट गुजरात में आये। नवसारी, वलसाड आदि क्षेत्रों में बसे। अपनी आस्था बचाने उन्होंने स्वदेश तज दिया। तेरह सदियों पूर्व इस्लामी आतंक के मारे ये पारसी दक्षिण गुजरात में पनाह पाये थे। वहां का शासक सोलंकी राजा विजयादित्य चालुक्य था। उसने इस्लाम के सताये इन शरणार्थियों के समक्ष साधारण शर्तें रखी थी। वे गुजराती बोलेंगे। महिलाओं का परिधान साड़ी होगा। उनके इतिहास ''किस्सा संजान'' के अनुसार उन पर हिन्दुओं द्वारा मजहब के आधार पर जुल्म नहीं ढाया जायेगा। मगर जनसंख्या बढ़ाने से भूमि कम पड़ेगी। तो ? तब उनके प्रधान पुजारी ने एक लोटे में दूध लिया। शक्कर मंगाई। सोलंकी राजा को समझाया कि पारसी शक्कर की भांति घुलमिल जायेंगे। अतिरिक्त जगह कतई नहीं मांगेंगे। उनका ज्योतिषी ''दस्तूर'' कहलाता है। उसने आसमानी तारों का हवाला देकर वादा किया था कि सब माकूल होगा। राजा मान गये।

पारसियों ने भारतीय समाज को मधुमय बना दिया: प्रणव मुखर्जी

गमनीय है कि आज तक पारसियों ने न कभी दंगा किया अथवा कराया, न हिंसक वारदातों को अंजाम दिया। आतंक? तौबा-तौबा। पारसियों के इसी तरह द्रवीभूत होने, घुलमिल जाने की प्रवृत्ति का ही नतीजा है कि भारत में इन पारसियों का योगदान महान रहा। तब राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी (Former President Pranab Mukherjee) ने (28 दिसम्बर 2013) मुम्बई में विश्व जोरास्ट्रियन (पारसी) अधिवेशन (World Zoroastrian (Parsi) Convention) में कहा था कि : ''इन पारसियों ने भारतीय समाज को मधुमय बना दिया है।'' माना भी जाता है कि ''पारसी, तुम्हारे नाम का पर्याय है : परोपकार।'' इसीलिये भारत की उन्नति में इन लोगों के योगदान पर गौर कर लें। ब्रिटिश साम्राज्य को लंदन में ही चुनौती देनेवाले सांसद दादाभाई नवरोजी पारसी थे। भारतीय तिरंगा बनाने वाली भीकाजी कामा, विधिवेत्ता फिरोजशाह मेहता, इस्पात उत्पादक जमशेद टाटा सभी पारसी रहे।

पाकिस्तान (Pakistan) को पराजित कर बांग्लादेश (Bangladesh) को मुक्त कराने वाले मार्शल सैम मानेकशा (Marshal Sam Manekshaw), वैज्ञानिक डा. होमी भाभा, फिल्म के बोमन ईरानी आदि। सोली सोराबजी, फाली नारीमन, नानी पालकीवाला, रतनजी पेस्टोनजी आदि कानून के नभ के सितारे पारसी थे। मीडिया जगत में एनजे नानपोरिया, आरके करंजिया के अलावा टाइम्स आफ इंडिया, मुम्बई में मेरे साथी रहे बहराम कन्ट्रेक्टर ''बिजी बी'' थे। बहराम का व्यंगलेखन में कोई सानी नहीं था। मगर एक नाम अतिविशिष्ट है जिसके नातेदारों के नाम से अक्सर नरेन्द्र दामोदरदास मोदी (Narendra Damodardas Modi) आक्रोशित रहते हैं। एक थे प्रयागराज के युवा। नाम था फिरोज जहांगीर गांधी। प्रमुख पारसी राजनेता रहे। इनकी पत्नी थी इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू। इस कश्मीरी ब्राह्मणी से इस पारसी का विवाह हुआ।

इंदिरा गांधी ने अंग्रेजी की वर्तनी में किया बदलाव

इंदिरा गांधी (Indira Gadhi) ने अंग्रेजी की वर्तनी बदल कर घाण्डी (Ghandi) का गांधी (Gandhi) कर दिया। मांसाहारी पारसी का कठियावाडी संत (वैश्य) महात्मा गांधी से कहीं भी कभी भी कोई भी वास्ता नहीं रहा। रिश्ता तो हो ही नहीं सकता था। मगर इस फर्जी उपनाम रा राजनीति में का खूब इस्तेमाल किया इतालियन मूल की सोनिया ने भी। लाभ उठाया राजीव तथा राहुल ने। और अब सोनिया ने। इन्हीं लोगों के परिवारवाद के विरूद्ध मोदी का अभियान चल रहा है। मगर इस पारसी ने राष्ट्र की राजनीति को ही विकृत कर दिया। अतः फिरोज घाण्डी को प्रसिद्ध पारसी की श्रेणी में नही रखा जा सकता है। इनका परिवार ने नवरोज नहीं मनाता है।

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