Article 370: इतना बवाल 370 पर क्यों, विलय तो सहमति से हुआ था
Article 370: कल यानी 11 दिसम्बर 2023 से कश्मीर तथा भारत के मुसलमानों के बीच में सारे फर्क और दूरियां समाप्त हो गई हैं। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इन दोनों को अलग रखने वाली धारा 370 को निरस्त करने से अब सारे भारतवासी और कश्मीरी जनता एक ही नागरिक समाज के सदस्य बन गए हैं।
Article 370: कल यानी 11 दिसम्बर 2023 से कश्मीर तथा भारत के मुसलमानों के बीच में सारे फर्क और दूरियां समाप्त हो गई हैं। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इन दोनों को अलग रखने वाली धारा 370 को निरस्त करने से अब सारे भारतवासी और कश्मीरी जनता एक ही नागरिक समाज के सदस्य बन गए हैं। इसी महत्वपूर्ण पहलू को सौ साल पुराने और बहुत महत्वपूर्ण राष्ट्रवादी मुस्लिम संगठन जमायते उलेमाये हिंद ने उजागर किया था। उसने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा धारा 370 को खत्म करने का स्वागत किया। इसके तहत कश्मीरी मुसलमानों को भारत से अलग रखा जाता था। अब नहीं। सबसे बड़ी उपलब्धि यही रही कि कश्मीर के चंद अवसरवादी, ढोंगी और सत्तालोलुप नेता अब कश्मीरियों को बरगला नहीं पाएंगे। जमायेते उलेमाये हिंद शुरू से ही ब्रिटिश और जिन्ना की साजिशभरी हरकतों का कड़ा विरोध करता रहा। वह तो मुस्लिम लीग की कड़ी विरोधी रही।
मगर इसी परिवेश में उन कश्मीरी राजनेताओं की भर्त्सना करनी होगी जो सात दशकों से कश्मीर में सत्ता सुख भोगते रहे, सरकार चलाते रहे, राजकोष को निजी तौर पर खर्च करते रहे। यही लोग बड़े तीव्र शैली से इस कानूनी फैसले का विरोध करते रहे हैं। गिने एक एक कर उन्हें सिलसिलेवार। सबसे अव्वल रहे थे शेख मोहम्मद अब्दुला। मोहम्मद अली जिन्ना भांप गए थे कि अब्दुल्ला खुद कश्मीर घाटी के शेख बनकर रहना चाहते हैं। दोनों मुसलमान नेताओं में दृष्टि के अंतर का आधार केवल सत्ता पाने पर ही था। जिन्ना को याद रहा कि जब वे श्रीनगर गए थे तो उनके गले में जूतों की माला पहनाने वालों में शेख अब्दुल्ला के समर्थक ही थे। तब तक शेख तो जवाहरलाल नेहरू की ओर से आश्वस्त थे कि समूची घाटी के अकेले सुल्तान वे ही रहेंगे। इस विश्वास की नेहरू ने पुष्टि भी कर दी थी धारा 370 को शामिल कर। वर्ना ब्रिटिश संसद के सत्ता का हस्तांतरण करनेवाले नियमों के अनुसार हैदराबाद, जूनागढ़, जोधपुर तथा अन्य देशी रियासतों की तरह कश्मीर रियासत भी महाराजा की अनुमति के मुताबिक ही पाकिस्तान अथवा भारत से संबद्ध होती। अंततः महाराजा ने भारत से विलय को स्वीकारा।
370 के फैसले का विरोध क्यों?
अब देखें कि कौन हैं वे कश्मीरी मुसलमान राजनेता जो 370 के फैसले का विरोध कर रहे हैं। क्यों कर रहे हैं ? सिर्फ इसलिए कि उनकी जागीरदारी समाप्त हो गई ? एक-एक कर गौर करें। शेख मोहम्मद अब्दुल्ला को नेहरू ने निजी कारणों से घाटी का शेख बना दिया था। यदि बाराबंकी के देशभक्त सुन्नी रफी अहमद किदवाई 1953 में कश्मीर न जाते तो शेख अब्दुल्ला इस्लामी पाकिस्तान से सौदा कर कश्मीर को पाकिस्तान में विलय कर देता। रफी साहब ने गुलमर्ग में घुसकर शेख को कैद किया, जेल में डाला और बख्शी गुलाम मोहम्मद को सत्ता सौंपी।
यहां खासकर उन तीन राजनेताओं की चर्चा हो जो कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे, सत्ता सुख भोगा, खजाने को बेतहाशा लूटा, भारत सरकार में भी मंत्री रहकर सुख भोगते रहे और कल से सुप्रीम कोर्ट की लगातार आलोचना कर रहे हैं। सर्वप्रथम हैं मियां गुलाम नबी आजाद साहब। वे इंदिरा भक्त थे, सोनिया भक्त, फिर राहुल भक्त रहे। भारत के काबीना मंत्री रहे। कश्मीर के सीएम भी। क्या बोले वे ? “न्यायालय का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है, दुखद है। भारी दिल से मानना पड़ रहा है।” मगर इतने वर्षों से नबी साहब दिल्ली और श्रीनगर में राजसी ठाट मनाते रहे जो ? वे तो अन्य राज्यों से निर्वाचित होकर संसद में गए थे। कश्मीर से ही नहीं।
फारूक अब्दुल्ला भी नाराज हुए। कौन हैं वे ? अटल बिहारी वाजपेई काबीना में मंत्री रहे। वे तो भारत के उपराष्ट्रपति पद के लिए अटलजी की पसंद थे। तब कृष्ण कांत को राष्ट्रपति बनाया जा रहा था। अचानक मुलायम सिंह यादव ने अटलजी को एपीजे अब्दुल कलाम का नाम सुझाया। वे रक्षा मंत्रालय में वैज्ञानिक थे। तमिलनाडु का यह गीतापाठी, ऋषिकेश में दीक्षा पाया, तमिलभाषी सुन्नी मुसलमान तो अटलजी को भा गये। राष्ट्रपति चुने गये। तब जाकर फारूख कट गए। दोनों पदों पर मुसलमान ही कैसे होते ? वे 370 पर खामोश रहे।
उनके वली अहद उमर अब्दुल्ला को तो अटलजी ने विदेश राज्यमंत्री नियुक्त किया था। फिर कश्मीर के मुख्यमंत्री बनकर राज भोगा। तब 370 उन्हें बड़ा माफिक लग रहा था ? गौर करें महबूबा मोहम्मद मुफ्ती पर। वह भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बनीं। कोई एतराज नहीं था ? उनके पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद तो भारत के गृहमंत्री थे। विश्वनाथ प्रताप सिंह तब प्रधानमंत्री थे। उनकी बेटी रुबिया का अपहरण कराया गया। अंत में छोड़ा गया। आज किस मुंह से ये सारे राजनीति के पुराने खिलाड़ी चाल बदलते हैं ? बिल्कुल लाजो हया नहीं ?
370 पर पाकिस्तान
हां पाकिस्तान द्वारा भारत के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की आलोचना समझ में आती है। वह तो मजहब के नाम पर कश्मीर चाहता था। हालांकि मजहब के नाम पर गठित पूर्वी पाकिस्तान फिर काटकर बांग्लादेश गणराज्य बना। पाकिस्तान ने बलूचिस्तान को कैसे अपना उपनिवेश बनाया ? बलोच जनता स्वाधीनता सेनानी शहीद खान अब्दुल समद खान अचकजादी के नेतृत्व में भारत से विलय चाहती थी। बलोच गांधी कहलाने वाले समद खान को जिन्ना ने जेल में डाला। पाकिस्तानी वायु सेवा ने बलूच विद्रोहियों को कुचलकर जबरन बलूचिस्तान का विलय कराया। कोई जनमत नहीं हुआ। पाकिस्तान में तो 370 जैसे धारा बलूचिस्तान और कलाट आदि के लिए बनी ही नहीं। केवल इस्लाम के नाम पर ज़ोर जबरदस्ती हुई। जैसे आज अफगान सुन्नियों को पाकिस्तान खदेड़ रहा है।
जो भारतीय वकील लोग आज 370 के पक्ष में कोर्ट में खड़े हुए थे, वे सब भूल गए कि विश्व के किसी भी देश में उसके पड़ोसी का राज्य में संवैधानिक तरीके से विलय नहीं हुआ। न्यू मेक्सिको का अमेरिका में, कुवैत का इराक में, फाकलैंड का ब्रिटेन में ? सब सेना के बल पर किए गए थे। कश्मीर बस सहमति से।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं । E-mail: k.vikramrao@gmail.com.)