Women Safety in India: महिलाओं को सबल होने की ज़्यादा ज़रूरत, ‘मिनुमा बोड़ो - साहस का नया नाम'
Women Safety in India: महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर महिला पुलिस थानों को खोल देना ही काफी नहीं होता है हमारे देश में यौन हिंसा आज भी बेहद आम बात है क्योंकि आज भी पुरुषों का एक बड़ा तबका अपनी श्रेष्ठता और महिलाओं की सामाजिक और सांस्कृतिक हीनता की धारणा पर ही अटका हुआ है...
Women Safety in India: 'महिलाओं को अपनी ताकत का एहसास होना चाहिए और उन्हें अपना लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए' -एक प्रतिष्ठित भारतीय लेखिका, समाजसेवी, वक्ता और इन्फोसिस फाउंडेशन की अध्यक्ष सुधा मूर्ति द्वारा कही गई यह पंक्ति न केवल उनके अपने व्यक्तित्व को परिभाषित करती है बल्कि हर महिला को प्रेरित और प्रोत्साहित करती है कि महिलाओं को अपनी ताकत का एहसास होना चाहिए। एक तरफ महिलाएं ओलंपिक में तथा अन्य विश्वस्तरीय प्रतिस्पर्धाओं शतरंज, क्रिकेट आदि में, व्यवसायिक जगत में, शिक्षा के क्षेत्र में, कैरियर के सभी क्षेत्रों में अपना और अपने देश, समाज और राज्य का नाम रोशन कर रही हैं वहीं दूसरी ओर पारंपरिक रूप से महिलाओं के प्रति सामाजिक बेड़ियां और लिंगानुपात में विषमता जैसे मुद्दे हमारे देश को पिछड़ा घोषित करते हैं।
सरकारें दावा करती हैं कि हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी और सुरक्षा दोनों बढी हैं। पर आंकड़े इससे कहीं उलट यह बताते हैं कि महिलाओं की भागीदारी विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ने के साथ-साथ ही महिलाओं के प्रति विशेषकर नाबालिग बच्चियों के प्रति यौन अपराधों, यौन उत्पीड़न की घटनाओं में तेजी से बढ़ोतरी हुई है, पोक्सो में दर्ज होने वाले मामलों में बढ़ोतरी हुई है। महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर महिला पुलिस थानों को खोल देना ही काफी नहीं होता है हमारे देश में यौन हिंसा आज भी बेहद आम बात है क्योंकि आज भी पुरुषों का एक बड़ा तबका अपनी श्रेष्ठता और महिलाओं की सामाजिक और सांस्कृतिक हीनता की धारणा पर ही अटका हुआ है, जो कि यह मानता है कि महिलाएं आज भी पुरुषों से माधवीलता की भांति लिपटी रहें, पुष्पों की भांति अपने सुंदरता को बरकरार रखते हुए भौंरें रूपी पुरुषों को अपनी और सिर्फ आकर्षित करतीं रहें। और जब महिलाएं इन सबको अस्वीकार कर देतीं हैं तो कहा जाता है कि पुरुषवादी सोच और मानसिकता का निर्वाह कर लेने से उनका स्त्रैण गुण खत्म हो जाता है। आश्चर्य होता है इस तरह की बातों पर।
इस माह में दो घटनाओं पर विशेष ध्यान गया। पहली घटना जिस पर ध्यान गया कि भुवनेश्वर ओडिशा के भरतपुर थाने में एक महिला वकील और रेस्टोरेंट के मालिक जो कि सेना के कैप्टन की मंगेतर और रिटायर्ड सेना अधिकारी की बेटी भी है, के साथ दुर्व्यवहार की घटना घटी। वह महिला अपने साथ हुए दुर्व्यवहार की रिपोर्ट लिखवाने पुलिस थाने गई थी, जहां पर उसके साथ और अधिक दुर्व्यवहार किया गया। उस दुर्व्यवहार को ढकने के लिए उस महिला के ऊपर ही झूठे -सच्चे आरोप भी लगाए गए। क्या वह यह साबित करने के लिए काफी नहीं कि आज भी हमारे इर्द- गिर्द जानवरों का वह समूह इकट्ठा है जो कि अपनी दरिंदगी, अपने घृणित सोच से लबालब है। आखिर क्यों फिर सरकारें महिला सशक्तिकरण पर हर साल लंबे -चौड़े कार्यक्रम करती हैं, उसके खोखले दावे करतीं हैं और मीडिया में बड़े-बड़े विज्ञापन देकर उसका ढोल पीटतीं हैं। जब वे अपने नागरिकों को ही सुरक्षा देने में असमर्थ हैं।
दूसरी जिस घटना ने अपना ध्यान खींचा, वह थी असम की सांस्कृतिक राजधानी तेजपुर की मिनुमा बोड़ो द्वारा 18 महिलाओं की जान बचाना। सबसे पहले मिनुमा बोड़ो का परिचय। मिनुमा बोड़ो तेजपुर की रहवासी हैं जो कि तेजपुर के आसपास के गांवों और क्षेत्रों में महिलाओं को स्वावलंबी और आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने की कोशिशों में जुटी हुईं हैं। इस काम में वह नाबार्ड की भी सहायता ले रहीं हैं। वह स्वयं एक ऐसी महिला जिन्होंने अपने अंदर से अपने डर को कहीं बाहर निकाल फेंका है। वह चाहती हैं कि महिलाएं खुद अपने बलबूते पर खड़ी हों, वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र हों, उन्हें किसी के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़े। वे अपने फैसले लेने के लिए भी खुद उत्तरदाई हों और इसी सोच के साथ वह महिलाओं के सशक्तिकरण, सबलीकरण पर जमीनी स्तर पर काम कर रहीं हैं। वह महिलाओं के सुंदर बनने से अधिक सबल बनने पर विश्वास रखती हैं। किसी भी महिला की सुंदरता या उसकी कुरूपता के होने के अपने शारीरिक पैमाने हैं। लेकिन इस तरह की सुंदर महिला अगर दूसरों पर ही आश्रित हो तो या तो उसका फायदा उठाया जाएगा या फिर उसका मखौल उड़ेगा। इसलिए महिलाओं के सुंदर होने का एक बड़ा आधार उनका सबल बनना होना चाहिए बजाय इसके कि उसकी शारीरिक रूपरेखा पर ध्यान दिया जाए।
उत्तराखंड जैसा क्षेत्र जहां पर मौसम के परिवर्तन का, भूस्खलन का कोई निश्चित अनुमान नहीं लगाया जा सकता है वहां पर तेजपुर की मिनुमा बोड़ो अपनी महिलाओं की संस्था की 18 महिलाओं के साथ बद्रीनाथ-केदारनाथ धाम की यात्रा पर जाती हैं। दिल्ली से एक ट्रैवलर बुक करती हैं और केदारनाथ धाम की सुरक्षित यात्रा करती हैं। इस यात्रा में उनके साथ पुरुष ड्राइवर के अतिरिक्त अन्य कोई और पुरुष नहीं है होता है। बाबा बद्रीनाथ के दर्शन भी कर लेती हैं और वापसी के समय भूस्खलन के कारण उस रास्ते की सभी गाड़ियों के साथ उनकी ट्रैवलर भी एक पंक्ति में लगी होती हैं। वह पूरे रास्ते भर ड्राइवर के साथ में ही आगे सीट पर बैठी होती हैं। अचानक वह देखतीं हैं कि ड्राइवर के हाथ से गाड़ी तेज हो गई है और उनका जब ध्यान जाता है तो ड्राइवर के मुंह से झाग निकल रहे हैं, उसका शरीर टेढ़ा पड़ चुका है और गाड़ी अपनी स्पीड से अधिक तेजी से चालू हो चुकी है। वह तुरंत गाड़ी को बंद करती हैं और अन्य महिलाओं की सहायता से ड्राइवर को दूसरी तरफ हटाकर उस गाड़ी की स्टेयरिंग को खुद संभालतीं हैं,30 किलोमीटर दूर तक ड्राइव करके लेकर जाती हैं।
जिसमें उन्हें रास्ते में अन्य पुरुष ड्राइवरों द्वारा मना भी किया जाता है कि उत्तराखंड के इस पहाड़ी इलाके में आप एकदम अपरिचित हैं, आपको गाड़ी नहीं चलानी चाहिए। इस बारे में जब उनसे पूछा तो गजब के आत्मविश्वास से भरपूर उस महिला का उत्तर था कि उस डर को मैंने अपने अंदर से खींचकर बाहर निकाल दिया उस समय क्योंकि मुझे अब अपनी 18 महिला साथियों की जान की भी परवाह थी और ड्राइवर को भी जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाना था। सुरक्षित 30 किलोमीटर गाड़ी चलाकर अस्पताल तक पहुंचती हैं कि उस ड्राइवर को तुरंत आपातकालीन चिकित्सा सुविधा मिल जाए। हालांकि रास्ते में ड्राइवर की मौत हो जाती है और उसे कोई भी चिकित्सा नहीं बचा पाती लेकिन यह इस महिला का गजब का धैर्य, गजब का आत्मविश्वास और निर्णय लेने की तात्कालिक क्षमता ही थी जो 18 महिलाओं के साथ उस ट्रैवलर को वहां से सुरक्षित निकाल कर ले गईं। अन्यथा किसी भी तरह के हादसे में उनकी जान बचाना बहुत ही मुश्किल काम था। उसके साथ ही आगे -पीछे वाली गाड़ियों के साथ भी क्या हादसा होता यह सोच पाना भी मुश्किल नहीं है।
क्यों नहीं हम आज भी इस विषय से बाहर निकल पाते हैं कि लड़कियों को, महिलाओं को सिर्फ आर्थिक रूप से ही नहीं बल्कि शारीरिक और मानसिक रूप से भी सशक्त होना बहुत ज्यादा जरूरी है। हम उन्हें अपने निर्णय लेने के लिए कभी स्वतंत्र नहीं छोड़ते हैं, इसीलिए वे आगे के समय में भी पुरुषों पर इतनी अधिक आश्रित हो जाती हैं कि वे स्वयं का अस्तित्व खो चुकी होती हैं और जब बोलना भी चाहती हैं या अपने निर्णय खुद लेना भी चाहती हैं तो पुरुषों द्वारा उन्हें दबा दिया जाता है। यह ठीक है कि आज भी पुरुषों ने महिलाओं से ज्यादा दुनिया देखी है लेकिन जब आप पानी में तैरने ही नहीं उतरेंगे तब सिर्फ तैरना सीखने का ज्ञान देने से क्या फायदा और उसके बाद जब उनसे गलती हो जाती है तो उन्हें पता नहीं किन-किन अशोभनीय उपमानों से सुशोभित किया जाता है।
आवश्यकता है आज मिनुमा बोड़ो जैसी सशक्त महिलाओं की जो वाकई महिला सशक्तिकरण का, महिला सबलता का, महिला सुंदरता का एक बेहतरीन उदाहरण है। ऐसी वीर, साहसी , सशक्त महिला के बारे में अगर हम देशवासी ही नहीं जानेंगे तो हम अपनी बेटियों और महिलाओं को उनका उदाहरण कैसे देंगे। अब आवश्यकता है कि महिलाएं के भी बेल या लता बनने की जगह विशाल बरगद के पेड़ की तरह बनने की, जो स्वयं भी खड़ी रहे और दूसरों को भी छांव दे, सुरक्षित महसूस कराएं। आपकी वीरता को सलाम है मिनुमा बोड़ो, आपने साहस को एक नया नाम दिया है। उम्मीद करती हूं कि राज्य सरकार अवश्य ही इस नाम को वीरता के लिए पुरस्कृत करने पर विचार करेगी।
( लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं।)