महिला दिवस स्पेशल: मैं दिये की रोशनी सी.....

मैं   धरा  का पर्व हूँ ,और उत्सवी उल्लास हूँ मै,प्राण मे बसते प्रणय का,इक मधुर मधुमास हूँ मैं,गूँजता शैशव जहाँ वह,मैं   धरा  का पर्व हूँ ,और उत्सवी उल्लास हूँ मै,प्राण मे बसते प्रणय का,इक मधुर मधुमास हूँ मैं,गूँजता शैशव जहाँ वह,

Update:2021-03-08 16:44 IST
सोशल मीडिया से फोटो

अंजना मिश्रा

महिला दिवस पर मेरी लिखी इस कविता के द्वारा सभी महिलाओं को अनेकानेक शुभकामनायें

 

मै दिये की रोशनी सी

हर तमस मे जल रही हूँ

दे रही जीवन सभी को

श्वांस मे हर ढल रही हूँ

 

दान की सी वस्तु हूँ मैं,

अंक मे जिसके पली मैं,

जिसने पल पल था सँवारा,

जिसके नस नस मे ढली मैं,

होम कर अस्तित्व अपना,

सात पग जिसके चली मैं,

छोड़ कर पितु गेह अपना,

अंजानी डगर पर चल रही हूँ ।

मैं दिये की रोशनी हूँ,

हर तमस मे जल रही हूँ।

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मैं धरा का पर्व हूँ ,

और उत्सवी उल्लास हूँ मै,

प्राण में बसते प्रणय का,

इक मधुर मधुमास हूँ मैं,

गूँजता शैशव जहाँ वह,

वात्सल्य का मृदु हास हूँ मैं,

इक श्रमित हारे पथिक,

मुरझाये मन कीआस हूँ मै,

डगमगाते हर क़दम की,

मै सदा संबल रही हूँ।

मै दिये की रोशनी सी,

हर तमस में जल रही हूँ।

 

साँस की इक डोर में,

बँध गये अनुबंध सारे,

नेह निधि का संचयन कर,

जी लिये संबंध सारे,

प्रिय न जाने क्यों लगे,

मुझ पर लगे प्रतिबंध सारे,

बंधनों से मुक्ति पाकर,

खुल गये तटबंध सारे

डोर सी बन कर सभी ,

रिश्ते सम्हाले चल रही हूँ।

मै दिये की रोशनी हूँ ,

हर तमस में जल रही हूँ।

 

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विष दिया मुझको अगर,

मैंने मगर अमृत संजोया,

संस्कृति का बीज मैंने ,

पीढ़ी दर पीढ़ी है बोया,

मै सृजन सुरसरि सदृश हूँ ,

मलिनता जिसने है धोया,

था तिरस्कृत जो भी जग मे,

वो भी मेरे अंक सोया,

मै विधाता की क्रिया बन

सृष्टि मे नित पल रही हूँ।

 

गर्व कीजिये कि विधाता ने आपको स्त्री बना कर सृष्टि की रचयिता होने का अधिकार दिया। बहुत बहुत मंगल कामनायें

 

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