Earth Day 2021: पृथ्वी दिवस का समझो महत्व

जब बात पृथ्वी की आती है तो भारत में धरती मां को नमन करने का ,स्पर्श करके माथे से चूमने का एक वैज्ञानिक और आध्यात्मिक और धार्मिक कारण है। भारत में धरती को पौराणिक काल से मां का दर्जा है ।

Written By :  rajeev gupta janasnehi
Published By :  Monika
Update:2021-04-22 19:34 IST

पृथ्वी दिवस (सांकेतिक) फोटो : सोशल मीडिया 

जब बात पृथ्वी की आती है तो भारत में धरती मां को नमन करने का ,स्पर्श करके माथे से चूमने का एक वैज्ञानिक और आध्यात्मिक और धार्मिक कारण है। भारत में धरती को पौराणिक काल से मां का दर्जा है । धरती मां ही पूरे सौरमंडल में अकेली ताकत रखती है । जहां नदियां , झरने ,पहाड़ ,वन ,अनेक प्रकार के जीव जंतु ,पेड़ पौधे और बेशुमार खनिज व संसाधन धरती की कोख में छुपे हुए । अनेक प्रकार से सम्पन्न धरती पर मानव जाति भी रहती है , लेकिन इन सब में मानव प्रजाति जो निहायती,मतलबी ,लालची ,लापरवाह है जिसने ना केवल दूसरे जीव जंतु की प्रजातियों के लिए बल्कि खुद अपने लिए संकट खड़ा कर लिया,जबकि मनुष्य जानता है प्राकृतिक संपदा पैदा नहीं कर सकता है अपने प्रयास से सहेज सकता है । अनावश्यक दुर्गति से प्राकृतिक संपदाओं का दोहन का नतीजा ऐसे हुआ विश्व के सामने पर्यावरण की विकराल समस्या खड़ी हो गई और पूरा विश्व पर्यावरण के बिगड़ते हुए हालात का दंश झेल रहा है। मानव जीवन को बचाने के लिए और पर्यावरण को सुरक्षित करने के लिए पृथ्वी दिवस जैसे आयोजन की बहुत बड़ी आवश्यकता और महत्व है ।

पृथ्वी दिवस आरंभ का इतिहास

पहला पृथ्वी दिवस वर्ष 1970 में जब यूनाइटेड स्टेट के 2,000 से अधिक कॉलेज, यूनिवर्सिटी और हजारों प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल के अनेक समुदाय ने भाग लेकर पहला पृथ्वी दिवस मनाया और शांतिपूर्ण ढंग से पर्यावरण के गिरते हुए स्तर पर अनावश्यक दोहन के विरोध में प्रदर्शन किया था।तब से प्रतिवर्ष 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा । इस दिवस की परिकल्पना अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन ने की थी। पृथ्वी दिवस एक बहुत ही सफल अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक पहल योजना साबित हुआ है, जिसे भरपूर समर्थन मिला है। इसके साथ ही स्वच्छ वायु, स्वच्छ पानी और लुप्त हो रही प्रजातियों को संरक्षित करने का अधिनियम पारित किया गया। पृथ्वी दिवस वैसे वर्ष में दो बार मनाया जाता है। एक 21 मार्च और दूसरा 22 अप्रैल 21 मार्च को मनाए जाने वाला इंटरनेशनल अर्थ डे (फ़ॉरेस्ट डे ) को संयुक्त राष्ट्र का समर्थन हासिल है लेकिन इसका वैज्ञानिक तथा पर्यावरण संबंधी महत्व है । इसे उत्तरी गोलार्ध के बसंत तथा दक्षिण गोलार्ध के पतझड़ के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है लेकिन दुनिया में अधिकांश देशों में 22 अप्रैल को इंटरनेशनल अर्थ डे मनाया जाता है । जो कई वर्षों से पर्यावरण को सभी के लिए एक रहा खोजने में लगे थे इसको मनाने के लिए 193 देशों द्वारा विशुद्ध अपना समर्थन प्रदान किया है।

पृथ्वी दिवस में योगदान

जिस प्रकार से विश्व ग्लोबल वार्मिंग की मार झेल रहा है उसे देखते हुए आज अकेले और सामूहिक रूप से योगदान के बिना पूर्व में किए गए धरती के साथ अन्याय की आपूर्ति नहीं की जा सकती है। आज विश्व में प्रत्येक प्राणी को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए जल को ,हरियाली को ,वन्य प्राणी ,वेट लेंड ,प्रदूषण ,जंगल, जीव जंतु जल को बचाना होगा ।अगर हम नहीं बचाएंगे तो ऊपर वाले सभी संसाधनों का प्राकृतिक संरक्षण में कितना महत्व है यह किसी से भी छुपा नहीं है । आज धरती को बचाने के लिए हमें सरकार के साथ खुद आगे आना पड़ेगा जिस प्रकार *सुंदरलाल बहुगुणा * ने बरसों पहले इसके संरक्षण की महत्ता को समझते हुए चिपको आंदोलन चलाया था या आज *राजेंद्र प्रसाद जी * द्वारा जल संरक्षण की बात की जा रही है या इंदौर की *महापौर मालिनी लक्ष्मण जी * द्वारा जो पर्यावरण के लिए कार्य किए जा रहे हैं इसी प्रकार इंदौर के *डॉक्टर प्रकाश छजलानी * अपने हर मरीज को उसके पैसे के भुगतान के साथ एक पौधा धरती को हरा भरा बनाने हेतु देते हैं *आगरा के हरविजय वाहिया * पौधे लगाने में कीर्तिमान स्थापित किया है| वही आगरा की *डॉक्टर रंजना बंसल * आगरा को प्रदूषण मुक्त कराने में साल में तीन दिन गो ग्रीन फ़ेस्टिवल करती है ।आप उपहार में प्लांट देती है । साथ ही आगरा के अनेक सामाजिक संगठनो कार्य किसी से छुपा नहीं हैं। इस तरीके के सभी लोगों को अपने स्तर पर प्रयास करने पड़ेंगे।

भारत में पर्यावरण की स्थिति

भारत में जैव संपदा की दृष्टि से सबसे समृद्ध साली देशों में से एक है विश्व में पाई जाने वाली विभिन्न प्रजातियों में लगभग 40% जीव जंतु भारत में पाए जाते हैं लेकिन भारतीयों का लालच भी किसी से छुपा नहीं है इस लालची भारतीयों ने तमाम वन्य प्राणियों के साथ वनों को काट कर समतल कर दिए हैं उसका यह दोहन यहीं नहीं रुका है जिस तरीके से आज भी वह धरती से जल का दोहन कर रहा है और धरती मां को बंजर और शुष्क बना रहा है। वह समय दूर नहीं जब इसी धरती पर रहने वाले लोग जल और अन्न के लिए भटकते हुए मिलेंगे राष्ट्रीय प्राकृतिक संग्रहालय नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित पुस्तक वर्ल्ड ऑफ मैमल्स के आंकड़े इस बात को प्रमाणित करते हैं व आम आदमी को चौकाते हैं। इस पुस्तक के अनुसार भारत में स्तनपाई जीवों की 81 प्रजातियां संकटग्रस्त हैं , बात शेर की हो या गेंड़े की या नदियों की या प्लास्टिक के उपयोग की या कचरा फेंक कर धरती के अस्तित्वों को बहुत नुक़सान पहुँचाया हैं। भारत इसके दंश को कुपोषण ,अनेक रोग के साथ असुरक्षित जीवन जी रहा हैं।

आइए धरती को बनाए सुजलाम सुफलाम

आइए हम सब मिलकर अपनी प्यारी धरती जिसे हम मां का दर्जा दिया है । उसको सुजलाम सुफलाम बनाने के साथ ही अन्य प्रजातियों के प्राणियों को भी बचाने का संकल्प लें पृथ्वी के पर्यावरण को बचाने के लिए हम ज्यादा कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम इतना तो करें पॉलीथिन के उपयोग ना करें। कागज का इस्तेमाल कम करें| रीसाइक्लिंग प्रक्रिया को बढ़ावा दें क्योंकि जितनी ज्यादा खराब सामग्री भी रीसाइकिल होती है उतना ही पृथ्वी का कचरा कम होता है। हर वर्ष परिवार जितने सदस्य है उतने पेड़ लगाए जितना जल चाहिए उतना उपयोग करे। इस प्रकार क़रीब 50 छोटी छोटी बात है जो माँ को सम्पन्न रख सकते है। जैसे आगरा के *मेयर साहब श्री नवीन जी * द्वारा लाल बत्ती पर इंजन बंद करने का अभियान भी धरती पर प्रदूषण कर्म करने पर बहुत सहायक होगा|स्वस्थ जीवन के धरती को विश्व के समस्त मानवों को अपने प्रयास जारी रखेंगे के साथ अन्य को भी प्रहोसाहियत करना होगा।

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