ऐसा रोग जिसमें रोगियों की जिंदगी रक्त दाताओं पर निर्भर करती है

8 मई को वर्ल्ड थैलेसीमिया डे रोगियों को प्रोत्साहित व नागरिकों को बीमारी के बारे में जागरूक करने के लिए मनाया जाता है।

Written By :  rajeev gupta janasnehi
Published By :  Shreya
Update: 2021-05-07 15:24 GMT

वर्ल्ड थैलेसीमिया डे (डिजाइन फोटो साभार- सोशल मीडिया)

लखनऊ: दुनिया भर में हर साल 8 मई को वर्ल्ड थैलेसीमिया डे (World Thalassaemia Day) उन रोगियों को प्रोत्साहित व नागरिकों को बीमारी के बारे में जागरूक करने हेतु मनाया जाता है।

थैलेसीमिया इंटरनेशनल फेडरेशन (TIF) एक नॉन-प्रॉफिट और गैर-सरकारी रोगी-संचालित संगठन है, जो कई देशों के सदस्यों के साथ समारोह के आयोजन को सक्रिय रूप से करती है। इतना ही नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन और अन्य स्वास्थ्य संस्थाएं भी थैलेसीमिया रोग से पीड़ित रोगियों के मूल अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करती हैं ।लोगों को जागरूक करने के लिए पोस्टर और बैनर भी तैयार किए जाते हैं। स्वास्थ्य संबंधी विषयों पर डिबेट्स, रोगी के जीवन की गुणवत्ता के बारे में थैलेसीमिया (Thalassaemia) रोग के बारे में चर्चा इत्यादि जैसी कई गतिविधियां भी आयोजित की जाती हैं।

थैलेसीमिया क्या है?

यह एक ऐसा रोग है जो बच्चे में जन्म से ही मौजूद रहता है। 3 महीने की उम्र के बाद उसकी पहचान होती है। विशेषक बताते हैं, उसमें बच्चे के शरीर में खून की भारी कमी होने लगती है, जिसके कारण उसे बार-बार भारी खून की जरूरत होती है। खून की कमी से हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता है एवं बार-बार खून चढ़ाने के कारण मरीज के शरीर में अतिरिक्त लौह तत्व जमा होने लगता है जो हृदय में पहुंचकर प्राणघातक साबित होता है।

थैलेसीमिया रोग कई प्रकार का

थैलेसीमिया रोग कई प्रकार के होते हैं और इसका उपचार इसके प्रकार और गंभीरता पर निर्भर करता है। इस बीमारी में शरीर में हीमोग्लोबिन और लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण की क्षमता प्रभावित हो जाती है या हम यह कह सकते हैं कि थैलेसीमिया रोग से पीड़ित व्यक्ति में कुछ ही लाल रक्त कोशिकाएं और बहुत कम हीमोग्लोबिन रहता है। इसका असर हल्के से लेकर गंभीर और जानलेवा भी हो सकता है। यह बीमारी भूमध्यसागरीय, दक्षिण एशियाई और अफ्रीका में सबसे आम है।

थैलेसीमिया रोग बच्चों में ज़्यादा होता है

थैलेसीमिया बच्चों को उनके माता-पिता से मिलने वाला अनुवांशिक रक्त रोग है। इसकी पहचान बच्चे में जन्म के 3 महीने बाद हो पाती है। इसको माता-पिता से अनुवांशिकता के तौर पर मिलने वाली इस बीमारी की बड़ी विडंबना यह है कि इसके कारणों का पता लगाकर भी इससे बचा नहीं जा सकता है। हंसने खेलने और मस्ती करने की उम्र में बच्चों को लगातार अस्पतालों में ब्लड बैंक के चक्कर काटने पढ़ते हैं। कल्पना करके ही शरीर में सिरहन पैदा हो जाती है कि उनका और उनके परिवार जनों का क्या हाल होता होगा।

थैलेसीमिया रोग के लक्षण

बार बार बीमार होना, सर्दी जुखाम बने रहना, कमजोरी और उदासी रहना, आयु के अनुसार शारीरिक विकास ना होना, शरीर में पीलापन बना रहना, दांत बाहर की ओर निकलना, सांस लेने में तकलीफ होना, कई तरह के संक्रमण होना ऐसे कई तरह की लक्षण दिखाई देते हैं तो परिजनों को बच्चों को तुरंत ही अपने पारिवारिक डॉक्टरों को दिखाना चाहिए और उनकी सलाह लेनी चाहिए।

थैलेसीमिया से कैसे करें बचाव

विवाह से पहले महिला पुरुष की रक्त की जांच कराएं। गर्भावस्था के दौरान इसकी जांच कराएं। मरीज का हीमोग्लोबिन 11 या 12 बनाए रखने की कोशिश करें। समय पर दवाइयां लें और इलाज पूरा करें।

थैलेसीमिया बीमारी का उपचार

थैलेसीमिया पीड़ित के इलाज में काफी खून और दवाइयों की जरूरत होती है इस कारण सभी इसका इलाज नहीं करा पाते हैं। जिसमें 12 से 15 वर्ष की आयु में बच्चों की मौत हो जाती है। सही इलाज करने पर 25 वर्ष या इससे अधिक जीने की उम्मीद होती है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है। खून की जरूरत भी बढ़ती जाती है। अतः सही समय पर ध्यान रखकर बीमारी की पहचान कर लेना उचित होता है। अस्थि मंच ट्रांसलेशन, एक किसम का ऑपरेशन, इसमें काफी हद तक फायदेमंद होता है, लेकिन इसका खर्चा काफी अधिक होता है। देशभर में थैलेसीमिया सिकल सेल हीमोफीलिया आदि से पीड़ित अधिकांश गरीब बच्चे 8 से 10 वर्ष से ज्यादा नहीं जी पाते हैं।

थैलेसीमिया रोगियों के लिए कोरोना जानलेवा

जैसा आप सबको विदित है और ऊपर भी पता चला है कि रक्त दाताओं द्वारा दिया गया रक्तदान ही इनको जिंदगी देता है। इसलिए थैलेसीमिया से पीड़ित के लिए कोरोना काल कठिन समय है। जिस तरीके से पिछले 1 वर्ष से कोरोना महामारी से पूरा विश्व जूझ रहा है रक्तदाता भी चाह कर रक्तदान नहीं कर पा रहे हैं। चारों तरफ महामारी का आलम है और कोरोना पीड़ितों को प्लाज्मा भी चढ़ाया जा रहा है।

ऐसे समय में रक्त दाताओं की काफी कमी हो गई है। सभी समाजसेवी ब्लड बैंक द्वारा अनेकों बार निवेदन करके ब्लड को प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। इससे थैलेसीमिया से पीड़ित लोगों की जिंदगी बचाने में परिवार और डॉक्टरों को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है।

थैलेसीमिया से पीड़ित द्वारा रक्त दाताओं का आभार

वैसे तो एक स्वस्थ मानव को जीवन में उसे साल में दो पेड़ और दो बार रक्तदान अवश्य करना चाहिए। क्योंकि पेड़ से हम स्वस्थ पर्यावरण व ऑक्सिजन प्राप्त करते हैं और एक व्यक्ति के रक्तदान से हम 4 लोगों की जिंदगी बचाते हैं। इसलिए थैलेसीमिया जिसका जीवन रक्त दाताओं के रक्तदान से ही चलता है। आज पूरे विश्व के लोगों को रक्त दाताओं का बहुत ही आभार प्रकट करना चाहिए और उन्हें और समाज के सभी स्वस्थ लोग जो रक्तदान के लिए सक्षम हैं, उन्हें सवेक्षा से आगे आकर रक्तदान करके ना केवल लोगों का जीवन बचाना चाहिए बल्कि थैलेसीमिया लोगों को जीवन दान देना चाहिए।

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