मुंह पर मास्क बचाएगा इस बीमारी से, जानिए कैसे करेगा आपको सिक्योर
ट्यूबरक्युलोसिस बैक्टीरिया का शॉर्ट फॉर्म टीवी है |इसे क्षय रोग या तपेदिक रोग भी कहते हैं ।यह ट्यूबरक्युलोसिस बैक्टीरिया से होने वाली संक्रामक बीमारी है| जोकि फेफड़ों को संक्रमित कर देती है |
राजीव गुप्ता जनस्नेही
नई दिल्ली: आज हम एक ऐसी बीमारी की बात कर रहे हैं जो एक-दूसरे से फैलती है। जब भी कोई कमजोर इंसान खाँसते हुए नजर आता है तो जेहन में टीवी जैसी खतरनाक बीमारी कोंधती है। हालांकि यह बीमारी लाइलाज बीमारी नहीं है। अगर इसकी सही देखभाल शुरुआती दौर पर ही हो जाए तो बहुत जल्दी इस बीमारी से छुटकारा पाया जा सकता है। आज हम ‘24 मार्च 2021’ को टीवी जैसी बीमारी पर चर्चा कर रहे हैं।
क्या है टीवी
ट्यूबरक्युलोसिस बैक्टीरिया का शॉर्ट फॉर्म टीवी है। इसे क्षय रोग या तपेदिक रोग भी कहते हैं ।यह ट्यूबरक्युलोसिस बैक्टीरिया से होने वाली संक्रामक बीमारी है। जोकि फेफड़ों को संक्रमित कर देती है। यह टीवी मरीज के बाल ,बलगम और उसके संपर्क में रहने से होती है। फेफड़ों के अलावा टीवी (तपेदिक ) यूट्रस ,हड्डियों , मस्तिष्क,लीवर, किडनी और गले में भी हो सकती है। फेफड़े की टीबी के अलावा अन्य अंगों की टीबी संक्रामक नहीं होती है।
क्या है इसके लक्षण
हम आपको बताते है कि आप इस बीमारी क्या लक्षण होते है। वजन कम होना भूख कम लगना, 3 हफ्ते से ज्यादा खांसी रहना, खांसी के साथ बलगम होना और बलगम में कभी-कभी खून का आना। इसके साथ ही अगर आपको शाम या रात को बुखार आए, सांस लेते में सीने में दर्द हो, यह कुछ लक्षण है जिन पर हमें ध्यान देते रहना चाहिए ताकि हम इस रोग का इलाज कर सकें।
टीवी के खतरनाक प्रभाव
जैसा अभी हमने जाना यह एक संक्रामक रोग है जो एक रोगी के खांसने से या छींकते समय उसके बलगम और राल अन्य व्यक्ति को जब प्रभावित करते हैं, तो प्रभावित होने वाले व्यक्ति को टीबी (तपेदिक या छह रोग) होने की संभावना होती है। क्योंकि किसी व्यक्ति के छींकते समय 10,000 बूंदे मुंह से निकलती हैं, खांसते समय 3000 बूंदे निकलती है| इनसे संक्रमण काफी तेजी से फैलता है।
इसीलिए मरीज को खाँसते वक्त या छींकते वक्त विशेष सावधानी बरतते हुए रुमाल का इस्तेमाल करना चाहिए। शरीर के जिस हिस्से को टीवी अपना शिकार बनाती है और सही समय पर सही इलाज ना मिलने पर वह अंग पूरी तरह बेकार हो जाता है। बता दें कि यूट्रस की टीवी के कारण बांझपन होता है| फेफड़ों में टीवी होने पर कमजोर और बेकार हो जाते हैं इसी तरह ब्रेन की टीवी होने पर मरीज को दौरे पड़ते हैं और हड्डियों की टीवी में हड्डियां गलने लगती है। इसीलिए टीवी को एक बहुत खतरनाक बीमारी माना गया है।
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विश्व टीवी दिवस 24 मार्च को ही क्यों
विश्व टीवी (तपेदिक ) दिवस 24 मार्च को मनाने के पीछे कारण है ट्यूबरक्युलोसिस बैक्टीरिया की पहचान आज के दिन ही हुई थी। इसलिए इतिहास में इस दिन का विशेष महत्व होने के साथ विश्व टीवी दिवस के रूप में भी मान्यता मिली। 24 मार्च को पूरी दुनिया में टीवी के बारे में लोगों को जागरूक किया जाने लगा।
टीवी का आज का अस्तित्व
कहते हैं जिस तेजी से टीवी एक वैश्विक महामारी और रोग बन रही थी उसे देखते हुए विश्व के सभी चिकित्सक जगत ने इसको खत्म करने का बीड़ा उठाया। जिसमें काफी हद तक उन्हें सफलता भी मिली वर्ष 2018 के आंकड़ों के मुताबिक 10 मिलियन लोग टीवी से बीमार पड़े और डेढ़ मिलियन लोग बीमारी से मर गए ज्यादातर यह मध्यम और कम आय वाले देशों की स्थिति थी।
हमारा देश भारत में भी चुनौती कब नहीं थी वर्ष 2019 सितंबर माह में प्रकाशित एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में टीवी के करीब 2700000 मरीज थे हमारे देश में टीवी से मरने वालों की संख्या आज भी इतनी अधिक है कि पूरी दुनिया में टीवी कारण से होने वाली मौतों के आंकड़ों के आधार पर हमारा देश दूसरे नंबर पर आता है।
आपको पता होगा कि आगरा में एसएन हॉस्पिटल द्वारा पूरा का पूरा 1 वार्ड टीवी वार्ड के रूप में ना केवल स्थापित किया गया बल्कि वह अपनी चिकित्सक बौद्धिकता से मेहनत से गंभीर से गंभीर टीवी वाले मरीजों को ठीक करके एक सामान्य जिंदगी जीने का हक दिलाया है आज भी पिछले अनेक वर्षों से अनेक मरीजों को यह अपनी चिकित्सा कौशल और सुविधा से दिन प्रतिदिन सेवा में कार्यरत है ।
सबसे अधिक चिंता का विषय हैं मल्टीपल ड्रग रजिस्टेंट (MDR)टीबी के रोगी बढ़ रहे हैं| इसका अर्थ यह हुआ कि सामान्य तौर पर टीवी के इलाज में दी जाने वाली दवाइयां इस स्थिति में पेशेंट पर काम करना बंद कर देती है| सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में करीब 27000 मरीज ऐसे हैं जिन्हें एमडीआर टीबी है ।
कौन रहे सावधान
डायबिटीज के मरीजों को बहुत ही अहितयात बरतना चाहिए क्योंकि सामान्य लोगों की तुलना में डायबिटीज से ग्रसित लोगों को टीवी की बीमारी होने का खतरा दो से तीन प्रतिशत तक अधिक होता है| टीवी के साथ अगर डायबिटीज भी होती है तो ऐसे मरीजों को दोबारा टीवी होने का खतरा बढ़ जाता है साथ ही दोनों बीमारी से जूझने वालों के मरीजों की मृत्यु दर भी अधिक होती है।
अगर डायबिटीज वालों को टीवी होती है तो डायबिटीज की शुगर को कंट्रोल करना काफी मुश्किल होता है। एचआईवी रोगियों में टीवी होने के चांसेस 21 गुना अधिक होते हैं। एक रिसर्च के मुताबिक हमारे देश में एचआईवी मरीजों में से 25% की मृत्यु टीवी के कारण होती है।
बच्चों में टीवी
हमारे देश में हमारे देश में बच्चों की एक बड़ी संख्या टीवी की बीमारी का शिकार है| पीडियाट्रिक ट्यूबरक्लॉसिसजो 15 साल से कम उम्र के बच्चों में होती है। इनके केस भी पहले की तुलना में काफी अधिक बढ़ गए ताजा आंकड़ों के मुताबिक हमारे देश में इस वक्त 133000 से अधिक पेशेंट ऐसे हैं जिनमें मरीज की उम्र हां 15 साल से कम है यह आंकड़ा टीवी के मरीजों की कुल संख्या का 6.17 % है।
कैसे बचे टीवी से
धूल-धक्कड का काम हो या अधिक धूल वाले इलाक़े से लोगों को टीवी होने का ख़तरा अधिक होता है| आगरा में मार्बल का काम करने वाले अधिक है यहाँ धूल भी अत्यधिक उड़ती है, इसलिए आगरा में टीवी मरीज़ों की संख्या अधिक है|
इन लोगों को इस से बचने के लिए मुँह पर मास्क लगाना चाहिये, समय-समय पर हेल्थ कैम्प में जाँच कराते रहना चाहिये, खाँसते व छींकते समय रूमाल इस्तेमाल करे और सिगरेट सिगार से बचे, स्वस्थ रहे मस्त रहे टीवी के रोग से बचे रहे|
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