उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नेकनीयति के बारे में किसी को शक नहीं है। विकास के बारे में उनकी पहल भी चहुँ ओर प्रशंसा पा रही है लेकिन फील्ड में भ्रष्टाचार - तौबा तौबा। यह कौन सा मैकेनिज्म है कि ग्राउंड स्तर पर भ्रष्टाचार रोकने में असफल नजर आता है?
विकास प्राधिकरणों, नगर निगमों और बिजली विभाग में रिश्वतखोरी में क्या कमी आयी है, इसका कोई संतोषजनक उत्तर प्रदेश सरकार के पास शायद नहीं होगा। सरकार के प्रदर्शन में सिर्फ सरकारी दावे और ट्विटर की गतिविधियों पर निर्भर न रहते हुए अगर जनसाधारण के व्यक्तिगत अनुभवों को रिकॉर्ड पर लिया जाये तो यह समझने में देर नहीं लगेगी कि जन सुनवाई की क्या स्थिति है।
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पुलिस की बात की जाए तो लोग कहते हैं कि थाना स्तर पर उगाही पिछली सरकार से बीस ही पड़ रही है। उदाहरणस्वरूप, बताया जाता है कि नोएडा के एक थाना प्रभारी ने एक भुक्तभोगी को बुला कर धमका कर होली की ‘मिठाई’ की मांग इस अंदाज में की जो विशुद्ध रूप से ब्लैकमेलिंग की श्रेणी में आती है। न केवल धमकाया बल्कि कहा कि विपक्षी पार्टी का ऑफर उसके पास है और वरिष्ठ अधिकारियों से फोन करवाने की जुर्रत की कोई जरूरत नहीं है। अब यह कहने की और आवश्यकता नहीं है कि इंस्पेक्टर महोदय की शक्ति का प्रवाह कहाँ से है। कहने का तात्पर्य यह है कि ट्विटर पर पुलिस की कार्यप्रणाली की गुलाबी तस्वीर पेश होती है लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है। यह मात्र एक उदाहरण है।
हाल ही में इन्वेस्टर्स समिट हुई जहाँ मुख्यमंत्री समेत तमाम लोगों ने भ्रष्टाचारमुक्त माहौल के दावे किये। यह नहीं भूला जाए कि नोएडा देश की राजधानी के लिए उत्तर प्रदेश का ‘गेटवे’ है। वहां की बानगी सामने है और मैं फिर कहूंगा कि यह सिर्फ एक उदाहरण है। प्रदेश में 74 जिले और भी हैं और आम आदमी अगर यह कह दे कि आज उनके ‘वैध’ काम पैसा दिए बगैर हो जाते हैं तो लाख लाख बधाई - योगी सरकार को रामराज्य लाने के लिए। लेकिन अफसोस, ऐसा है नहीं और इस सिस्टम में ऐसा होगा निकट भविष्य में, ऐसा लगता भी नहीं है।
योगी जी की नेकनीयति के बारे में किसी को वाकई कोई शक नहीं है लेकिन यह नामुराद ‘सिस्टम’ उनको भी फेल करने में जुटा हुआ है। मुझको लगता है कि मेट्रो से ज़्यादा , उद्योगों से इतर रोजमर्रा की जिन्दगी से करप्शन हटाने की जरूरत पहले है और अधिक जरूरी है। समिट तो कभी कभी आती हैं लेकिन रोज का सरकारी भ्रष्टाचार शाश्वत है, सत्य है।
योगीजी, कृपया इसकी ओर भी नजर डालें। अगर इसमें सुधार भी हो गया तो आप इतिहासपुरुष की संज्ञा पाएंगे -निस्संदेह। उम्मीदें भी बस आपसे ही हैं। सिर्फ आपसे।
(लेखक न्यूजट्रैक/अपना भारत के कार्यकारी संपादक हैं)