अमा मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को कोई समझाए, भला ऐसे खफा होते हैं। जरा सी बात पर इतना गुस्सा...अरे भई, विधानमंडल का बजट सत्र था, राज्यपाल का अभिभाषण था, अब ऐसे में विपक्ष ने राज्यपाल राम नाईक पर कागज के गोले फेंक ही दिए तो कौन सा गुनाह कर दिया। सरकार विरोधी तख्तियां ही तो लहराई थीं। नारेबाजी और हंगामा ही तो किया था। अब इतनी क्या नाराजगी कि मुख्यमंत्री ने विपक्ष पर गुंडागर्दी का आरोप लगा दिया। फिर विपक्ष का हक बनता है, सपा विधायक उदयवीर सिंह की ओर से सीएम को लोकल डॉन के विशेषण के साथ कांग्रेस के दीपक सिंह ने उवाचा कि मुख्यमंत्री ही तो ठोकने-पीटने जैसी बात करते हैं। वैसे भी इस हंगामे में विपक्ष का ही नुकसान हुआ। सपा विधायक सुभाष पासी बेहोश हो गए, ब्रेन अटैक पड़ गया।
मेरा तो कहना है कि रजत जयंती वर्ष में पक्ष-विपक्ष किसी को खफा नहीं होना चाहिए। अब आप कहेंगे कि कौन सा रजत जयंती वर्ष, तो याद दिला दें वो गरिमामयी परम्परा जो 16 दिसंबर 1993 को स्थापित हुई थी। हां-हां, 16 दिसंबर 1993...विधानसभा में सपा-बसपा की मुलायम सिंह यादव की अगुवाई वाली सरकार को बहुमत हासिल करना था। इसमें बहुमत को लेकर भाजपा ने खखेड़ की, अब कितना बर्दाश्त किया जाता। सपाइयों-बसपाइयों ने भाजपाइयों पर हमला बोल दिया। मजबूत स्टील के माइक निशाना तान-तान कर फेंके गए। माइक निपटे तो पेपरवेट चले। केशरीनाथ त्रिपाठी, हरिकिशन श्रीवास्तव सहित 33 विधायक ठुके। नतीजा निकला कि सदन में हल्के माइक फिक्स कर दिए गए और पेपरवेट को विदा कर दिया गया।
फिर 21 अक्टूबर 1997 को क्यों भुला दें हम... इस बार भाजपा की ओर से कल्याण सिंह बहुमत साबित कर रहे थे और पक्ष-विपक्ष भिड़ गए। अब माइक, पेपरवेट तो थे नहीं, लिहाजा सिर्फ लात-घूंसों और चप्पलों से काम चलाना पड़ा। इस बार कलराज मिश्र बिना हेलमेट, पैड के सदन की क्रीज पर आ गए थे, अब घायल हो गए तो कोई क्या करे। वैसे इस घटना की जांच के लिए रिटायर्ड जज अचल बिहारी श्रीवास्तव की अध्यक्षता में कमेटी बनी, उसने रिपोर्ट भी दी। अब उस रिपोर्ट का क्या हुआ, मुझे नहीं पता। और पता करके भी क्या फायदा। ये क्या कम है कि सपा और बसपा के जो विधायक 2004 और 2011 में मजबूत तरीके से सदन में भिड़ चुके हों, वो इस बार प्यार-मुहब्बत के साथ मिल-जुलकर सरकार की फजीहत करने पर उतारू थे।
वैसे सोचने वाली बात तो ये भी है कि राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान उनके पास यूनिफार्म पहने खड़े लोग कितना बोर होते होंगे। अब ऐसे में सामने से कागज के गोलों की बॉलिंग हो और वो फाइल से स्ट्रोक मारे, ये भी एक आनंद है। मैं तो कहता हूं कि सदन के माननीय सदस्यों को साधुवाद देना चाहिए कि वो अधिकतम नियमों का पालन करते हैं। जैसे कि ‘असंसदीय भाषा’ की मनाही है तो कोई भी सदन में मां-बहन नहीं करता। अब ‘असंसदीय कृत्य’ के नियम भी स्पष्ट होने चाहिए। मसलन पेपरवेट, माइक फेंकने पर रोक है या नहीं। जूता-चप्पल, कागज के गोल फेंकने पर रोक है या नहीं। सदन में मिर्ची पाउडर उड़ाने पर रोक है या नहीं। सदन में कुर्सी चलाने पर रोक है या नहीं।