सपा - बसपा गठबंधन में ये है दो कदम पीछे हटना

अगले लोकसभा चुनाव के लिए सपा और बसपा के बीच 38-38 सीटों का बंटवारा भले ही हो गया हो। परन्तु सच यह भी है कि सपा बसपा गठबंधन छोटे और इलाकाई दलों को नजरअंदाज करने की स्थिति में नहीं है। 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी अपने उत्कर्ष काल में थी तब भी उसने अपना दल और भारतीय समाज पार्टी जैसे दलों के साथ चुनावी मैदान में उतरने से कोई गुरेज नहीं किया था।

Update: 2019-01-16 14:58 GMT

योगेश मिश्र

अगले लोकसभा चुनाव के लिए सपा और बसपा के बीच 38-38 सीटों का बंटवारा भले ही हो गया हो। परन्तु सच यह भी है कि सपा बसपा गठबंधन छोटे और इलाकाई दलों को नजरअंदाज करने की स्थिति में नहीं है। 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी अपने उत्कर्ष काल में थी तब भी उसने अपना दल और भारतीय समाज पार्टी जैसे दलों के साथ चुनावी मैदान में उतरने से कोई गुरेज नहीं किया था।

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मायावती और अखिलेश यादव यह ठीक से जानते हैं कि इन छोटे दलों का अपने इलाके में क्या और कितना प्रभाव है। इसे भाजपा से लिया गया सबक कहें या फिर भाजपा को पराजित करने के लिए रणनीति गठबंधन के नेताओं ने भी छोटे दलों को साथ लेने का फैसला कर लिया है पर छोटे दलों का हिस्सा अखिलेश को अपने हिस्से से देना होगा।

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मायावती के साथ गठबंधन का सूत्रधार चाहे जो भी हो पर जनता के बीच यह संदेश साफ है कि यह गठबंधन करके अखिलेश यादव ने दूर की कौड़ी चली है। अखिलेश यादव का खुद मायावती के घर जाना हो या फिर ये कहना कि मै जरूरत पड़ी तो दो कदम पीछे हटने को भी तैयार हूं। इसे अखिलेश की दूरदर्शिता का परिचायक माना जा रहा है। अभी तक गठबंधन में दो सीट पाए राष्ट्रीय लोकदल के शिकवे शिकायत दूर करने का जिम्मा भी अखिलेश यादव के हिस्से ही है। यही वजह है कि रालोद के जयंत चौधरी ने अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए अखिलेश यादव और मायावती दोनो से मुलाकात की है।

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सूत्रों की मानें तो रालोद के सामने कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के भी प्रस्ताव गठबंधन के लिए विचाराधीन हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा अथवा सपा बसपा का गठबंधन ही उनकी नैया पार लगाने में पार हो सकता है। कांग्रेस और भाजपा में रालोद को पांच सीटें भी मिल सकती हैं हालांकि सपा बसपा गठबंधन में रालोद चार सीटों पर समझौता करने को तैयार है हालांकि मांग तो छह सीटों की है लेकिन हकीकत यह है कि रालोद के पास छह मजबूत उम्मीदवार ही नहीं हैं। रालोद की अपनी मजबूती मुजफ्फरनगर, बागपत, हाथरस और मथुरा में है। इस बार अजीत सिंह खुद मुजफ्फरनगर से उतरना चाहते हैं और उनके बेटे जयंत चौधरी अपनी पारंपरिक बागपत सीट से किस्मत आजमाएंगे। 2017 की विधानसभा लहर में भी अजीत सिंह का उम्मीदवार बागपत से जीतने में कामयाब हो गया था।

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सब कुछ ठीक ठाक रहा तो रालोद इस बार मथुरा से श्याम सुंदर शर्मा को उम्मीदवार बना सकता है हाथरस से समाजवादी पार्टी का कोई नेता अजीत सिंह के चुनाव चिह्न पर मैदान में उतर सकता है। पीस पार्टी, भारतीय समाज पार्टी, भारतीय निषाद पार्टी और अपना दल के कृष्णा पटेल गुट से भी गठबंधन के नेता बात कर रहे हैं। इनको भी एकोमडेट करने का जिम्मा सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का ही होगा।

 

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