Ambedkar Nagar News : विधानसभा चुनाव 2022 के लिए राजनीति हुई तेज, जानें सपा व बसपा के बाद अगला दल कौन ?

Ambedkar Nagar News : उत्तर प्रदेश में 2022 में विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) का आगाज होने जा रहा है।

Report :  Manish Mishra
Published By :  Shraddha
Update:2021-07-27 13:30 IST

अखिलेश - मायावती (फाइल फोटो -सोशल मीडिया)

Ambedkar Nagar News : उत्तर प्रदेश में 2022 में विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) का आगाज होने जा रहा है। इसके पूर्व ही राजनीतिक दलों द्वारा जातिगत सम्मेलनों को आयोजित किए जाने का सिलसिला शुरू कर दिया गया है । उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने वैसे तो जातिगत सम्मेलनों के आयोजनों पर रोक लगा रखी है लेकिन राजनीतिक दल इसके लिए भी कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेते हैं।

जातिगत सम्मेलनों में जो जातियां सबसे पहले राजनीति के केंद्र में आ रही है तथा जिसे अपने पाले में लाने के लिए हर राजनीतिक दल बेचैन दिख रहा है वह है तिलक व जनेऊ धारण करने वाला समाज। ऐसा लगता है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में तिलक व जनेऊ ही एक बार फिर सत्ता को स्थिर रखने अथवा सत्ता को बदलने का केंद्र बिंदु बनने जा रहा है। प्रदेश में जनेऊ धारण करने वालों की जनसंख्या बहुत ज्यादा नहीं है लेकिन इसके बावजूद राजनीतिक दल उसे अपने पाले में लाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं।

अखिलेश - मायावती (फाइल फोटो -सोशल मीडिया)

इसके पीछे कारण यह है कि यह वर्ग अन्य वर्ग के मतदाताओं को भी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता चला आ रहा है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में एक बार फिर तिलक व जनेऊ धारी राजनीति का केंद्र बिंदु बनते जा रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी ने तो प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन के नाम से इस वर्ग को अपने पाले में लाने का प्रयास करने की मुहिम छेड़ रखी है।

पार्टी ने राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा को यह जिम्मेदारी सौंपी है। वह 2007 के तर्ज पर एक बार फिर इस प्रयोग को आजमाने का प्रयास कर रहे हैं । बहुजन समाज पार्टी के इस प्रयोग को देख समाजवादी पार्टी भी ब्राह्मण सम्मेलन के प्रति लालायित हो उठी है। इसके लिए समाजवादी पार्टी ने पांच ब्राह्मण नेताओं की एक समिति बनाई है जो प्रदेश में ब्राह्मण वर्ग को समाजवादी पार्टी के पाले में लाने के लिए कार्य करेगी।

सवाल यह उठता है कि चुनाव आने के पूर्व ही राजनीतिक दल क्यों जातिवाद सम्मेलनों के आयोजन के प्रति गंभीर होते हैं। देखना यह है कि बसपा व सपा के बाद और कोई राजनीतिक दल भी इस प्रकार के आयोजनों को लेकर कदम बढ़ाता है या नहीं। आने वाले दिनों में और भी जातियों के सम्मेलन आयोजित होने में कोई संदेह नहीं है लेकिन विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने के पूर्व जनेऊ व तिलक को महत्व देते हुए राजनीतिक दल जिस प्रकार से अपनी चाल चल रहे हैं, वह निःसन्देह इस बात का संकेत करता है कि एक बार फिर प्रदेश में सत्ता के केंद्र में तिलक व जनेऊ की भूमिका ही अहम साबित हो सकती है।

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