बुरे फंसे सिंधिया, अब क्या करेंगे और कैसे समझाएंगे अपने विधायकों को

भोपाल। मध्यप्रदेश की राजनीतिक उठापटक के हर क्षण बदलते घटनाक्रम में ज्योतिरादित्य की गति बहुत बुरी होने जा रही है, उनकी स्थिति माया मिली न राम वाली हो रही है अगर वह कोई चमत्कार न दिखा पाए तो भाजपा की राजनीति में उनका हाशिये पर जाना तय है। उनकी स्थिति गैस निकले गुब्बारे जैसी हो जाएगी।

Update:2020-03-16 15:27 IST

भोपाल। मध्यप्रदेश की राजनीतिक उठापटक के हर क्षण बदलते घटनाक्रम में ज्योतिरादित्य की गति बहुत बुरी होने जा रही है, उनकी स्थिति माया मिली न राम वाली हो रही है अगर वह कोई चमत्कार न दिखा पाए तो भाजपा की राजनीति में उनका हाशिये पर जाना तय है। उनकी स्थिति गैस निकले गुब्बारे जैसी हो जाएगी।

निसंदेह ज्योतिरादित्य ने काफी गुणा भाग करके, लाभ हानि को देख कर ही भाजपा के पाले में कूदने का मन बनाया है लेकिन उनकी बनाई लंका ताश के महल की तरह है जिसे एक हवा का झोंका धराशायी कर सकता है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अब तक ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार किये जाते थे जो मध्यप्रदेश की राजनीतिक नब्ज को समझते थे। उनके समर्थकों और समर्थक विधायकों की संख्या इतनी थी कि मध्यप्रदेश के किसी भी मुख्यमंत्री को नाकों चने चबवा सकें।

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लेकिन अब स्थिति इतर है। जो विधायक कांग्रेस के दिग्गज नेता और आलाकमान से उनकी नजदीकी के कारण उनके पीछे खड़े हुआ करते थे वह पहली बार तो नेता के पीछे आ खड़े हुए लेकिन मूलतः वह कांग्रेस के अपने बड़े नेता के साथ थे।

पाला बदल सकते हैं विधायक

मध्यप्रदेश की राजनीति में जिस तरह से ग्राफ चढ़ और उतर रहा है उसमें जनता का रुख देखकर इन विधायकों को अपना भविष्य डावांडोल दिखायी दे रहा है। इन विधायकों को यह लग रहा है कि ज्योतिरादित्य का कद अगर बनता है तो इस धुर विरोधी पार्टी में उनका भविष्य क्या होगा। क्या भाजपा अपने मजबूत दावेदारों को छोड़कर इन विधायकों को मौका देगी।

ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस नेता के रूप में अपनी जमी जमायी छवि को मिटाकर मध्यप्रदेश की राजनीति में भाजपा के कद्दावर नेता के रूप में कितनी मजबूती से लिख पाएंगे जबकि शिवराज सिंह चौहान उन्हें विभीषण बताकर अपनी मंशा का इजहार कर चुके हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार समय जितना अधिक बीतेगी ज्योतिरादित्य की चुनौती उतनी अधिक बढ़ती जाएगी। वजह इन विधायकों की अपनी निष्ठा को लेकर उठ रहे सवाल हैं जिन्हें सुलझाना ज्योतिरादित्य के लिए कठिन होता जाएगा।

 

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