बिहार राजनीति में शाहनवाज BJP के तुरुप का इक्का, बदलेंगे राजनीतिक समीकरण
बिहार की लगातार ख़राब हो रही स्थिति में शाहनवाज़ हुसैन के लिए हाई कमान ने हाई प्रोफ़ाइल भूमिका तलाश रखी है। सूत्रों की मानें तो जिस तरह नीतीश कुमार की पकड़ बिहार में लगातार ढीली पढ़ रही है। उससे भाजपा को वहाँ अपने किसी बड़े नेता की ज़रूरत महसूस हो रही है।
योगेश मिश्र
लखनऊ । शहनवाज़ हुसैन को भाजपा बिहार में किसी बड़ी ज़िम्मेदारी के लिए तैयार कर रही है। उत्तर प्रदेश और बिहार के विधान परिषद उम्मीदवारों की सूची पर नज़र दौड़ायें तो इस हक़ीक़त का पता चलता है। उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसेमंद पूर्व आईएएस अफ़सर अरविंद शर्मा को प्रदेश की लगातार बिगड़ रही स्थिति को सँभालने के लिए जहां भेजा गया है। वहीं बिहार की लगातार ख़राब हो रही स्थिति में शाहनवाज़ हुसैन के लिए हाई कमान ने हाई प्रोफ़ाइल भूमिका तलाश रखी है।
बिहार में शहनवाज़ हुसैन को भाजपा बड़ी ज़िम्मेदारी देने की तैयारी में
सूत्रों की मानें तो जिस तरह नीतीश कुमार की पकड़ बिहार में लगातार ढीली पढ़ रही है। उससे भाजपा को वहाँ अपने किसी बड़े नेता की ज़रूरत महसूस हो रही है। यही नहीं, भाजपा नेता भूपेन्द्र यादव ने अभी हाल में कहा कि राजद विधायक टूट के किनारे हैं। जब पार्टी ने शहनवाज़ को विधानपरिषद का उम्मीदवार बनाया है। ऐसे में तब भूपेन्द्र यादव के दावों की हक़ीक़त पकड़ी जाये तो यह तथ्य हाथ लगता है कि सचमुच राजद के चालीस विधायक अलग होने को तैयार बैठे हैं।
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बिहार विधानसभा में जद यू के 43 विधायक और भाजपा के 74 विधायक
बिहार विधानसभा में राजद के कुल 75 विधायक हैं। जबकि नीतीश कुमार के जद यू के पास 43 विधायक हैं। भाजपा के पास 74 विधायक है। नीतीश कुमार ने सरकार बनाने के लिए हम पार्टी और वीआईपी पार्टी के 4-4 विधायकों का साथ लिया है। इस तरह 243 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार के पास 135 विधायक हैं।
भाजपा को अपने बलबूते बिहार में सरकार बनाने के लिए इन विधायकों की जरुरत
अगर बिहार विधानसभा में भाजपा अपने बलबूते पर सरकार बनाने की सोच रही है तो उसके पास लोकजनशक्ति पार्टी के एक विधायक के साथ ही साथ कांग्रेस के दस विधायकों पर सीधी नज़र है। इस एक चाल से जहां एक ओर भाजपा राज्य में किसी वैकल्पिक सरकार बनने के रास्ते बंद करने में कामयाब हो जायेगी। वहीं दूसरी तरफ़ नीतीश कुमार के सामने भी भाजपा का कहा मानने या बाहर जाने के सिवाय कोई रास्ता नहीं होगा।अभी तक तय रणनीति के मुताबिक़ भाजपा ने इस बदलाव के लिए पश्चिम बंगाल के आसपास का समय चुना है।
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शाहनवाज़ का राजनीतिक करियर
शाहनवाज़ को बिहार भेजकर इसी रणनीति की चौसर बिछाई गयी है। शाहनवाज हुसैन 1998 में लोकसभा का चुनाव हार गये थे। वह किशननगंज सीट से मैदान में उतरे थे। शाहनवाज़ तेरहवीं लोकसभा के लिए 1999 में किशनगंज से जीतें। वह अटल बिहारी सरकार में राज्य मंत्री बनाये गये। 2001में उन्हें कोयला मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार दिया गया। वह सबसे कम उम्र के मंत्री रहे। 2003 में उन्हें टेक्सटाइल मंत्रालय की ज़िम्मेदारी कैबिनेट मंत्री के रूप में दी गयी। वह 2004 में चुनाव हार गये । पर 2006 में हुए एक उप चुनाव में भागलपुर लोकसभा सीट से निर्वाचित होने में कामयाब हो गये। 2009 में भागलपुर से दोबारा पंद्रहवीं लोकसभा के लिए जीतने में कामयाब हो गये।
सुशील मोदी को बुलाया दिल्ली, शहनवाज़ हुसैन की बिहार में एंट्री
जब भाजपा ने बिहार से अपने सबसे क़द्दावर नेता सुशील मोदी को राज्य सभा के मार्फ़त दिल्ली बुला लिया है। गुजरात में राज्य सभा की दो सीटें ख़ाली हैं। फिर शहनवाज़ हुसैन सरीखे नेता को बिहार में वापस भेजना कोई दूर की कौड़ी तो कही ही जायेगी। जबकि शहनवाज़ बिहार की राज्य की राजनीति में कभी सक्रिय नहीं रहे। सूत्रों की मानें तो भाजपा अपने नारे- सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास को बिहार में ज़मीन पर उतारना चाहती है।बिहार में 18 फ़ीसदी तादाद मुसलमानों की बैठती हैं।
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