बर्थडे स्पेशल: ये हैं भारत के ऐसे दूसरे पीएम, जिनके परिवार का नहीं है राजनीतिक नाता!

Update:2018-09-26 12:29 IST

नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री और दुनिया के जाने-माने अर्थशास्त्री डॉक्टर मनमोहन सिंह का आज जन्मदिन है। इनका जन्म 26 सितम्बर 1932 को हुआ था। वे देश के 14 वें प्रधानमंत्री रहे। मौजूदा राजनीति में वंशवाद बड़ा मुद्दा बन चुका है। लोकतांत्रिक देश में यह एक ऐसी बीमारी है जिससे कोई भी राजनीतिक दल अछूता नहीं है।

ऐसे दौर में अगर देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने वाले राजनेताओं में वंशवाद का सही मायने में विरोधी रहे राजनेताओं को गिनाएं तो दो नाम जेहन में आते हैं। पहले वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इनसे ठीक पहले 10 साल पीएम रहे डॉक्टर मनमोहन सिंह। ये दोनों देश के ऐसे राजनेता हैं, जिनके कोई भी करीबी रिश्तेदार राजनीति में नहीं आए।

जन्म और शिक्षा

पाकिस्तान के पंजाब स्थित गाह में जन्मे सिंह का परिवार विभाजन के बाद भारत आ गया। सिंह ने आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से इकोनोमिक्स में डाक्टरेट की डिग्री ली। उसके बाद वर्ष 1966-69 तक यूनाइटेड नेशंस में काम किया।

भारतीय राजनीति में इंट्री

भारतीय राजनीति में उनकी इंट्री तब हुई। जब ललित नारायण मिश्रा ने उन्हें मिनिस्ट्री ऑफ़ फारेन ट्रेड में बतौर एडवाइजर नियुक्त किया। इसके बाद सिंह चीफ इकोनामिक एडवाइजर (1972-76) रिजर्व बैंक गवर्नर (1982-85) और प्लानिंग कमिशन के हैड(1985-87) तक रहे।

देश की अर्थव्यवस्था को सुधारा

वर्ष 1991 में भारत में भयंकर इकोनामिक क्राइसिस आई। उस समय प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव ने सभी को चौंकाते हुए सिंह को अपने कैबिनेट में बतौर वित्त मंत्री शामिल किया। अगले कुछ सालों तक विपक्ष के विरोध के बावजूद सी सिंह के स्ट्रक्चरल रिफार्म किया। जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था उदार बनी। इससे देश में अर्थव्यवस्था संभली और सिंह का कद और बढ़ गया।

बने देश के प्रधानमंत्री

वर्ष 2004 में जब यूपीए सरकार सत्ता में आई तो सोनिया गांधी ने पीएम के लिए मनमोहन सिंह का नाम आगे कर दिया। इसके बाद वर्ष 2009 के चुनाव में भी कांग्रेस की ही जीत हुई और मनमोहन सिंह पीएम बने रहे। इस दौरान यूपीए गवर्नमेंट की करप्शन के कई आरोप भी लगे। जिसमें कोल आवंटन, 2 जी स्पेक्ट्रम, कामनवेल्थ गेम्स प्रमुख है। यही आरोप 2014 में हार का कारण बने।

वंशवाद को बढ़ावा देने वाले पीएम

पंडित जवाहर लाल नेहरू: पंडित नेहरू देश के पहले और सबसे ज्यादा समय तक प्रधानमंत्री रहे। उनके परिवार से इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, संजय गांधी, मेनका गांधी, वरुण गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी मुख्यधारा की राजनीति में रहे।

लाल बहादुर शास्त्री: उत्तर प्रदेश के बेहद मामूली परिवार में जन्म लेकर देश के प्रधानमंत्री बनने वाले लाल बहादुर शास्त्री लोकतांत्रिक देश की खूबसूरती बयां करते हैं। शास्त्री के दो बेटे अनिज और सुनील कांग्रेस पार्टी में रहे और चुनाव भी लड़े। लाल बहादुर शास्त्री के पोते आदर्श शास्त्री आम आदमी पार्टी में हैं।

मोरारजी देसाई: मोरारजी देसाई के बेटे कांति सक्रिय राजनीति का हिस्सा रहे। कुलदीप नैयर ने अपनी किताब में जिक्र किया है कि जब पंडित नेहरू की मौत हो गई थी तब कांति देसाई ने कांग्रेस के सांसदों को अपने घर पर बुलाकर पिता के लिए समर्थन जुटा रहे थे। हालांकि कांग्रेस पार्टी में इसके खराब संकेत गए और लाल बहादुर शास्त्री पीएम बनाए गए। इसके बाद भी कांति देसाई पिता मोरारजी देसाई के लिए चुनाव की प्लानिंग करते रहे।

चौधरी चरण सिंह: किसानों की राजनीति करने वाले चौधरी चरण सिंह के बेटे अजित सिंह और पोते जयंत चौधरी सक्रिय राजनीति में हैं।

विश्वनाथ प्रताप सिंह: इनके बेटे अजय प्रताप सिंह जनमोर्चा पार्टी के अध्यक्ष रहे और बाद में कांग्रेस में चले गए।

चंद्रशेखर: उत्तर प्रदेश के बलिया से निकलकर देश के प्रधानमंत्री बनने वाले चंद्रशेखर के बेटे नीरज चौधरी भी समाजवादी पार्टी के टिकट पर सांसद बने। इसके अलावा चंद्रशेखर के परिवार के कई और सदस्य एमएलसी और पार्षद का चुनाव जीत चुके हैं।

पीवी नरसिम्हा राव: इनके बेटे राजेश कांग्रेस पार्टी के टिकट पर विधायक और सांसद रहे।

एचडी देवेगौड़ा: इनके दोनों बेटे एचडी कुमारस्वामी और एचडी रेवेणा सक्रिय राजनीति में हैं। कुमारस्वामी अभी भी कर्नाटक के मुख्यमंत्री हैं।

इंद्र कुमार गुजराल: इनके बेटे नरेश गुजराल अकाली दल से राज्यसभा सांसद रहे।

अटल बिहारी वाजपेयी: अटल बिहारी ने शादी नहीं की थी, लेकिन इनके भांजे अनूप मिश्रा मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री रह चुके हैं। इसके अलावा भांजी करुणा शुक्ला बीजेपी से सांसद रह चुकी हैं। करुणा फिलहाल कांग्रेस में हैं।

नरेंद्र मोदी: वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को परिवार यूं तो बहुत बड़ा है, लेकिन उनमें से कोई भी किसी भी स्तर पर सक्रिय राजनीति में नहीं हैं।

मनमोहन सिंह: इनकी तीन बेटियां हैं उपिंदर सिंह, दामन सिंह और अमृत सिंह. ये तीनों शिक्षक हैं। अब तक इन्होंने राजनीति में कोई रूचि नहीं दिखाई है।

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