कठिन है डगर पनघट की: नेताओं को तो हरा दिया, अब भ्रष्ट अफसरों को कैसे हराओगे ?
मायावती के भ्रष्टाचार की कोई जांच नहीं करवाई गयी बल्कि कुछ भ्रष्ट अधिकारियों को अखिलेश ने ‘एडजस्ट’ कर लिया। स्थिति अब फिर वही है, ब्यूरोक्रेसी भी वही है, भ्रष्ट अधिकारियों का गिरोह भी वही है;
लखनऊ: ‘‘यूपी के चुनाव में भाजपा ने प्रचार के दौरान किसी मूवी के प्रोमो और ट्रेलर सरीखे वादे और आश्वासन तो प्रचुर मात्रा में झोंक दिए। अब असली मूवी चलनी है। चुनौती बहुत बड़ी है, खास कर ऐसे राज्य में जहां सिस्टम जैसी कोई चीज बची ही नहीं है। जहां भ्रष्ट अधिकारियों का गिरोह शिकंजा कसे हुए है वहां साख मोदी की दांव पर लगी है।
ढाई साल बाद लोकसभा का चुनाव होना है। बचे हुए इसी समय में भ्रष्टों के गिरोह का तानाबाना खत्म कर देने की चुनौती है। जिस तरह बेईमानी के संग-संग ब्यूरोक्रेसी में राजनीति पैठ कर गयी है उसमें सबसे बड़ा सस्पेंस यही है कि क्या होगा अब, कुछ बदलेगा भी कि नहीं?’’
सफलता का दबाव
फॉलोआन देने के बाद भी कोई टीम इतने दबाव में खेले, ऐसा होता तो नहीं है लेकिन हुआ जरूर है। जी हां, यह टीम है भाजपा की जिसने उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत तो पा लिया लेकिन प्रदर्शन का दबाव भी इसी टीम पर है। इतनी अपेक्षाएं, इतनी उम्मीदें, इतना काम..... उफ्फ।
इसमें कोई शक की गुंजाइश नहीं कि पिछले दस साल में बसपा और सपा की सरकारों ने सिस्टम का सत्यानाश कर दिया और आज यह स्थिति है कि यह मैच भाजपा की नयी सरकार को नए सिरे से खेलना है।
भाजपा के संकल्प पत्र में किये गए बड़े वायदे-किसानों की कर्ज माफी, युवाओं को रोजगार, कॉलेज और विश्वविद्यालयों में वाई-फाई, ग्रामीण इलाकों में 24 घंटे बिजली, पुलिस विभाग में डेढ़ लाख नियुक्तियां जैसे तमाम आश्वासनों के अलावा सिस्टम के शुद्धिकरण की जो महती जिम्मेदारी है, वही सबसे बड़ी चुनौती होगी भाजपा सरकार के पास।
नौकरशाहों का गिरोह
सच्चाई तो ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दम पर 15 वर्षों के बाद उत्तर प्रदेश को भारतीय जनता पार्टी की सरकार तो दे दी और साथ ही एक चैलेंज भी फेंक दिया कि अब हमें 2019 लोकसभा में जीत दो। ये संभव है तभी जब भाजपा सरकार उत्तर प्रदेश में अच्छा शासन दे और जनता की कसौटी पर खरी उतरे।
अब नजर डालते हैं उत्तर प्रदेश सरकार के सामने मुख्य समस्याओं पर जो एक निगाह में तो सामान्य लगती हैं लेकिन सच यह है कि प्रदेश की अनेक बड़ी समस्याएं इनकी देन रही हैं और इनको डील करना 325 के बहुमत वाली सरकार के सामने भी हंसी खेल नहीं होगा। दोनों समस्याएं आपस में जुड़ी हैं और एक दूसरे को पोषित करती हैं। यह हैं - भ्रष्टाचार और नौकरशाही का राजनीतिकरण।
प्रधानमंत्री और भाजपा प्रमुख अमित शाह ने चुनाव के दौरान अपने भाषणों में बार-बार जिक्र किया कि किस तरह मायावती के भ्रष्टाचार की कोई जांच नहीं करवाई गयी बल्कि कुछ भ्रष्ट अधिकारियों को अखिलेश ने ‘एडजस्ट’ कर लिया। स्थिति अब फिर वही है, ब्यूरोक्रेसी भी वही है, भ्रष्ट अधिकारियों का गिरोह भी वही है।
प्रलोभन तो मानवीय कमजोरी है लेकिन इस बार मुश्किल यह है कि शीर्ष पर मोदी हैं। सच है कि अखिलेश ने करप्शन के खिलाफ कुछ नहीं किया। कुछ भी नहीं किया, बल्कि जिक्र तक नहीं किया। अपने घोषणा पत्र के वायदों पर भी अमल नहीं किया, कारण रहा भ्रष्टाचार और ‘अपने’ अधिकारियों के माध्यम से भ्रष्टाचार।
बड़ा है मायाजाल
समस्या इतनी आसान भी नहीं है क्योंकि ऐसे अधिकारियों का मायाजाल लंबा है- दिल्ली से नागपुर तक के दावे हैं, किसी के ससुर आरएसएस से हैं तो कोई बचपन से शाखाएं अटेंड करने का दावा करता नजर आता है।
भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में एंटी-करप्शन टास्क फोर्स बनाने की बात कही है लेकिन क्या अखिलेश सरकार के भ्रष्टाचार की जांच हो सकेगी, कम से कम पिछली सरकारों ने तो पूर्ववर्ती सरकारों के कारनामों से अपने को हमेशा दूर रखा है।
जनता भ्रष्टाचार से त्रस्त रही, चौकीदार लुटेरे बने रहे, शिकायत कहां की जाये। पब्लिक मनी का इतना दुरुपयोग शायद ही कभी हुआ हो। जरा सरकार की उपलब्धियों के बखान पर किये खर्च की जांच ही हो जाये तो आंखें फट जाएं। लेकिन क्या इस पर नजर डाली जाएगी? क्या भाजपा यूपी में अपने आपको ‘पार्टी विद ए डिफरेंस’ साबित कर सकेगी।
चुनौती है बड़ी
प्रदेश के भूतपूर्व आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह की फेसबुक वाल पर अगर नजर डाली जाये तो काफी संशय दूर होते दिखाई पड़ेंगे क्योंकि उनकी टिप्पणी सिस्टम के अंदर रहते हुए उनके अनुभवों पर आधारित है। वे कहते हैं: ‘‘उत्तर प्रदेश के आने वाले मुख्यमंत्री के लिए यहां की भ्रष्ट, कामचोर व राजनीति में लिप्त नौकरशाही से काम लेना सबसे बड़ी चुनौती होगी!
बड़े जनादेश से उपजी आसमान छूती जनाकांक्षाओं की पूर्ति में सबसे बड़ी बाधक उत्तर प्रदेश में पिछले 15 सालों से विकृत हुई नौकरशाही बनेगी...यदि कोई सीधा, सरल, अनुभवहीन मुख्यमंत्री आ गया तो उसके लिए यहां की नौकरशाही पर लगाम लगाना असम्भव होगा ...... इस प्रदेश को सख्त व पारदर्शी प्रशासन चाहिए जो मोदी जी के ‘त्वरित विकास’ व ‘सरकार गरीब के द्वार’ के ऐजेंडे को लागू करने में समय खराब न करे।
यदि गत सरकारों की ‘भ्रष्ट नौकरशाहों की टोली’ से आने वाली सरकार का मुखिया भी घिर गया तो बंटाधार होने में देर नहीं लगेगी ....उत्तर प्रदेश की एक ‘भ्रष्ट नौकरशाहों’ की टोली मुख्यमंत्रियों को अपनी घोर चाटुकारिता से ‘चाशनी चटाने’ में बड़ी निपुण है....इनके लुभावने भ्रष्ट मायाजाल से ‘आने वाले मुख्यमंत्री’ को सावधान रहना होगा ....इसी के चलते मायावती के प्रिय सभी ‘माल-काटू’ नौकरशाह अखिलेश को भी प्रिय लगने लगे थे ...हरियाणा में यही हो रहा है और वहां आज प्रशासन का खस्ता हाल है... ’