CM उद्धव का बड़ा ऐलान, नागरिकता को लेकर महाराष्ट्र की जनता को दिया ये संदेश

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) कानून को लेकर बड़ा ऐलान किया है।  

Update: 2020-02-02 07:13 GMT

मुंबई: नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के विरोध में भले ही कई विपक्षी दलों ने भाजपा और केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ हल्ला-बोल दिया है लेकिन इस कानून को लेकर महाराष्ट्र की उद्धव सरकार ने अब तक कोई बयानबाजी नहीं की थी। हालांकि अब मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने इसे लेकर बड़ा ऐलान किया है।

उद्धव ठाकरे ने नागरिकता कानून लागू करने से किया इनकार:

दरअसल, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को राज्य में न लागू करने का ऐलान किया है। ये घोषणा शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' के जरिये की गयी। सीएम ठाकरे ने 'सामना' में अपने साक्षात्कार में कहा, 'नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) नागरिकता को छीनने के बारे में नहीं है, यह देने के बारे में है। हिंदुओं और मुसलमानों दोनों के लिए नागरिकता साबित करना मुश्किल होगा। मैं ऐसा नहीं होने दूंगा।'

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लोकसभा में किया था बिल का समर्थन:

गौरतलब है कि शिवसेना ने लोकसभा में सीएए को लेकर मोदी सरकार का समर्थन किया था। वहीं बाद में जब सीएए बिल लोकसभा से पारित होकर राज्यसभा पहुंचा तो शिवसेना ने सदन से वाक आउट कर दिया था। हालाँकि ये बिल संसद के दोनों सदनों से पास हो गया और बाद में राष्ट्रपति की मंजूरी से कानून बन कर लागू भी हो गया।

देश भर में एनआरसी और सीएए का विरोध:

बता दें कि दिल्ली के शाहीनबाग़ में सीएए के विरोध में लगभग 45 दिनों से लोग धरने पर बैठीं हैं, वहीं यूपी के लखनऊ में स्थित घंटाघर में भी इस कानून का विरोध हो रहा है। इतना ही नही देश के कई अलग अलग हिस्सों में नागरिकता कानून को लेकर हिंसा हो चुकी है। संगठनों ने भारत बंद तक बुलाया। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम मुसलमानों के खिलाफ है और धर्म के आधार पर भेदभाव करता है।

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इन राज्य सरकारों ने किया सीएए का विरोध:

केरल, पंजाब, पश्चिम बंगाल समेत कई राज्य नागरिकता कानून का विरोध कर रहे हैं। वहीं इन राज्यों की सरकारों ने कानून के खिलाफ प्रस्ताव भी पेश किया है।

क्या है सीएए :

नागरिकता संशोधन अधिनियम को पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में उत्पीड़न के शिकार अल्पसंख्यकों यानी हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी समुदाय के लोगों को नागरिकता देने के लिए लाया गया है। इसका हिंदुस्तान के मुसलमानों से कोई लेना देना नहीं हैं। वहीं एनआरसी को लेकर अभी तक मोदी सरकार की कोई योजना नहीं है।

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