जानिए आखिर क्या है 'हार्स ट्रेडिंग', राजनीति में खूब होती है चर्चा

राजस्थान विधानसभा में चल रही उठापटक के बीच 'हार्स ट्रेडिंग' की बात खूब हो रही है। राजनीति और मीडिया के क्षेत्र में अक्सर इस शब्द का इस्तेमाल खूब होता है।

Update: 2020-07-17 13:32 GMT

श्रीधर अग्निहोत्री

नई दिल्ली: राजस्थान विधानसभा में चल रही उठापटक के बीच 'हार्स ट्रेडिंग' की बात खूब हो रही है। राजनीति और मीडिया के क्षेत्र में अक्सर इस शब्द का इस्तेमाल खूब होता है। अब धीरे-धीरे राजनीति में दिलचस्पी रखने वाला आम आदमी भी इसका अर्थ जान जाता है। पर सवाल इस बात का है कि आखिर इस शब्द के इस्तेमाल की वजह क्या है, हार्स ट्रेडिंग क्या होता है यह शब्द कहां से आया और इसका प्रयोग कब से शुरू हुआ ?

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आइए आपको बताते हैं हार्स ट्रेडिंग के बारे में

'हार्स ट्रेडिंग' का शाब्दिक अर्थ होता है घोड़ो की खरीद। जिसे व्यापारी बोली लगाकर खरीदते हैं। यह शब्द कैम्ब्रिज अंग्रेजी शब्दकोश से लिया गया है। अक्सर इसका इस्तेमाल राजनीतिक खरीद फरोख्त के दौरान होती है। यह शब्द अठारहवी शताब्दी के आसपास प्रचलन में आया जब घोडो की व्यापारी इनकी खरीद फरोख्त किया करते थें। साथ ही अच्छे घोडो की नस्ल पाने के लिए कई तरह की कूटनीति का भी इस्तेमाल किया करते थें। यहां तक कि घोडों के व्यापारी अपने घोडों को कई बार छिपा भी देते थें फिर अपने मनचाहे दामों पर व्यक्तिगत तौर पर खरीद फरोख्त करते थें।

राजनीति में ही अधिकतर इसका इस्तेमाल

अक्सर हार्स ट्रेडिंग शब्द का इस्तेमाल राजनीति में तभी किया जाता है जब विधायकों की खरीद फरोख्त होनी हो और राज्यसभा विधानपरिषद के चुनाव हो अथवा सरकार अल्पमत में हो। जब राजनीति में नेता दल बदलते हैं, या फिर किसी चालाकी के कारण कुछ ऐसा खेल रचते हैं अथवा दल बदलने का काम करते हे तब इसे 'हार्स ट्रेडिंग' कहा जाता है। यह शब्द मीडिया की तरफ से उपजा हुआ शब्द है। हांलाकि देश में दल बदल को लेकर पहले से कानून बना हुआ है। बावजूद इसके जब भी कोई सरकार अल्पमत के कारण संकट में होती है तब तब विधायकों की खरीद फरोख्त को लेकर इस शब्द का प्रयोग खूब किया जाता है।

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पहली बार इसका प्रयोग कब शुरू हुआ

भारत में इस विदेशी शब्द का इस्तेमाल दबे स्वर में हुआ करता था। जानकार बतातें है कि 1967 के चुनावों में हरियाणा के एक विधायक ने 15 दिनों के अन्दर ही तीन बार पार्टी बदली थी। जब तीसरी बार में वो लौट कर कांग्रेस में आए तब उनके बारे में कहा गया कि यह विधायक हार्स ट्रेडिंग का शिकार हो गए है। इसके बाद सत्तर से लेकर अस्सी तक देश मे संसद और विधायकों की खरीद फरोख्त चलती रही। लेकिन जब देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी बने तो उन्होंने अगले साल ही 1985 में संविधान के 52वें संशोधन में दल-बदल विरोधी कानून पारित करवाया। किसी भी पार्टी के लोगों की संख्या उनकी पार्टी की कुल संख्या के दो-तिहाई से अधिक नहीं हो सकते, ऐसा होने पर सभी को अयोग्य ठहराया जा सकता है।

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