कैसे होती है विधानसभा भंग, क्या-क्या होती है राज्यपाल की शक्तियां
विधानसभा का सामान्य कार्यकाल पांच सालों का होता है। लेकिन इसे राज्यपाल द्वारा 5 साल से पहले भी भंग किया जा सकता है। तो आइए समझते हैं कि किन परिस्थितियों विधानसभा को भंग किया जा सकता है।
Assembly Dissolved: महाराष्ट्र (Maharashtra Political Crisis) में उपजे राजनीतिक संकट के बाद वहां के राज्यपाल की भूमिका काफी अहम हो गई है। सत्ताधारी एमवीए गठबंधन (MVA Alliance) की अगुवाई कर रही शिवसेना (Shivsena) में मचे भगदड़ के बाद से सरकार के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। उद्धव सरकार (uddhav government) अल्पमत के करीब जाते नजर आ रही है। ऐसे में विधानसभा के भंग होने की अटकलें शुरू हो गई हैं। इसी को लेकर आज हम आपको बताने जा रहे हैं राज्यपाल किसी विधानसभा को किन परिस्थितियों में भंग कर सकता है।
सबसे पहले आपको यह बता दें कि विधानसभा का सामान्य कार्यकाल पांच सालों का होता है। पांच साल बाद यह स्वतः खत्म हो जाती है और राज्य में नए चुनाव कराने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। हालांकि, इसे राज्यपाल द्वारा किसी भी समय यानि 5 साल से पहले भंग किया जा सकता है विधानसभा के भंग होने के बाद विधायकों का पद समाप्त हो जाता है। उनको मिलने वाले वेतन भत्ते बंद हो जाते हैं। हालांकि, पेंशन विधानसभा के भंग होने की तारीख से शुरू हो जाते हैं। तो आइए समझते हैं कि किन परिस्थितियों विधानसभा को भंग किया जा सकता है –
- पहला जब राज्य में किसी भी सियासी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है और नेता सरकार बनाने के लिए जादुई आंकड़े को जुटा नहीं पाते हैं तो राज्यपाल विधानसभा को भंग कर देता है।
- धारा 356 के मुताबिक, अगर एक राज्य सरकार संविधान के अनुसार बताए गए नियमों का पालन नहीं करती है या केंद्र सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुपालन में अपनी कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करने में असफल रहती है तो उस राज्य का राज्यपाल इसकी रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजता है , जो केंद्रीय कैबिनेट के परामर्श के मुताबिक, राज्य में विधानसभा सभा को भंग कर राष्ट्रपति शासन लगा सकता है।
- अगर विधानसभा चुनाव अपरिहार्य कारणों जैसे राज्य का विभाजन, बाहरी आक्रमण इत्यादि से स्थगित कर दिए गए हैं, तो भी राज्यपाल विधानसभा को भंग करने का आदेश जारी कर सकता है।
- यदि किसी सूबे में चली आ रही गठबंधन की सरकार अल्पमत में आ जाती है, अन्य दलों के पास सरकार बनाने के लिए जरूरी बहुमत नहीं है तो ऐसी स्थिति में राज्यापल नए चुनाव कराने के उद्देश्य से राज्य की विधानसभा को भंग कर सकता है।
राज्यपाल के फैसले को दी जा सकती है चुनौती
अगर सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के समक्ष विधानसभा के भंग करने के फैसले के खिलाफ अपील की जाती है और अदालत अपनी जांच में ये पता लगाते हैं कि राज्य विधानसभा को झूठे एवं अप्रासंगिक कारणों से भंग किया गया है तो अदालत विधानसभा को भंग होने से रोक सकते हैं। इस प्रकार विधानसभा भंग करने के राष्ट्रपति के फैसले को अदालत में चुनौती दी जी सकती है। राष्ट्रपति का निर्णय अंतिम निर्णय नहीं है।
राज्यपाल की शक्तियां और कार्य
जिस तरह भारत के राष्ट्रपति देश का कार्यकारी प्रमुख होते हैं, उसी तर्ज पर राज्यपाल राज्य का कार्यकारी प्रमुख होते हैं। राज्यपाल राज्य में दो भूमिकाओं को निभाता है। प्रथम भूमिका के तहत वह राज्य का प्रमुख होता है, वहीं दूसरी भूमिका में वह राज्य में केंद्र सरकार का प्रतिनिधि होता है। राज्यपाल के शक्ति कार्य एवं दायित्व को कार्यकारी, विधायी, वित्तीय एवं न्यायिक शक्ति के रूप में देखा जा सकता है। आज हम आपको राज्यपाल की कार्यकारी शक्तियां और कार्य के रूप में बताएंगे। कार्यकारी शक्तियों का तात्पर्य़ शासन – प्रशासन से है। राज्यपाल राज्य सरकार का संवैधानिक प्रमुख होता है ऐसे में वह काफी कार्यकारी शक्तियों को धारण करते हैं। राज्यपाल के प्रमुख
कार्यकारी शक्तियां इस प्रकार हैं
- राज्य सरकार के सभी कार्यकारी कार्य औपचारिक रूप से राज्यपाल के नाम पर होते हैं।
- राज्यपाल मुख्यमंत्रियों एवं अन्य मंत्रियों को नियुक्त करता है।
- कुछ राज्यों जैसे छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिसा और मध्य प्रदेश में जनजाति कल्याण मंत्री की नियुक्ति राज्यपाल ही करते हैं।
- राज्यपाल राज्य के महाधिवक्ता को नियुक्ति करते हैं और उनका वेतन भी वो ही तय करते हैं।
- लोकसेवा आय़ोग के अध्यक्ष और उनके सदस्य की नियुक्ति राज्यपाल करते हैं। इसी प्रकार राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति भी राज्यपाल करते हैं।
- राज्यपाल राज्य में संवैधानिक इमरजेंसी की सिफारिश राष्ट्रपति से कर सकता है। राष्ट्रपति शासन के दौरान उसकी कार्यकारी शक्तियां बढ़ जाती हैं।
- राज्यपाल विश्वविद्यालय के चांसलर होते हैं औऱ वह विश्वविद्यालयों में वाइस चांसलर की नियुक्ति करते हैं।
- राज्यपाल किसी मंत्री के निर्णय जिस पर कैबिनेट ने संज्ञान न लिया हो पर सूबे के मुख्यमंत्री से विचार करने के लिए कह सकता है।
- इसके अलावा राज्यपाल राज्य के मुख्यमंत्र से प्रशासनिक मामले या किसी विधाई प्रस्ताव की जानकारी मांग सकता है।