UP Politics: बसपा ने उपचुनाव से किया किनारा, सियासी धरातल बचाने को केवल गठबंधन का सहारा

UP Politics: उत्तर प्रदेश में हुए उपचुनाव के नतीजों ने बसपा को आईना दिखा दिया है। यदि भविष्य में पार्टी का अस्तित्व बचाये रखना है तो मायावती को संगठन की कार्यशैली में बदलाव करने की जरूरत है।

Update:2024-11-26 17:44 IST

राजनीतिक भविष्य बचाने के लिए बसपा को करना होगा गठबंधन (न्यूजट्रैक)

UP News: उत्तर प्रदेश विधानसभा की नौ सीटों के लिए हुए उपचुनाव के नतीजों से बहुजन समाज पार्टी का राजनीतिक भविष्य खतरे में नजर आ रहा है। उपचुनाव में बसपा का खाता खुलना तो दूर की बात है। नौ में से छह सीटों पर बसपा उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गयी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश को बसपा का गढ़ माना जाता था। लेकिन यहां बसपा से चंद्रशेखर आजाद की पार्टी के उम्मीदवारों को वोट मिला। इससे एक बात तो साफ हो गयी है कि चुनाव दर चुनाव बसपा अपना जनाधार खोती जा रही है।

अगर ऐसा ही लगातार चलता रहा तो एक दिन बसपा पार्टी इतिहास में केवल एक नाम बनकर रह जाएगा। बसपा को लगातार चुनावों में मिल रही हार और खिसकते जनाधार से उबारने के लिए मायावती का जल्द ही ठोस कदम उठाने पड़ेगें। जब उत्तर प्रदेश में भाजपा और सपा जैसे दल गठबंधन की राह पर चल रहे हैं। तो बसपा को भी अपना अस्तित्व बचाने के लिए गठबंधन के बंधन में बंधना ही होगा।

यूपी उपचुनाव में बसपा की स्थिति

उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों के उपचुनाव में जहां छह सीटें भारतीय जनता पार्टी को मिली। वहीं एक सीट भाजपा के सहयोगी दल आरएलडी के खाते में गयी है। वहीं सपा को दो सीटें मिली है। पूर्व के चुनाव परिणाम पर नजर डालें तो सपा को जहां दो सीटों का नुकसान हुआ है। वहीं भाजपा को तीन सीटों का फायदा हुआ। वहीं बसपा को हमेशा की तरह निराशा ही हाथ लगी। सीटें मिलना तो दूर 2022 के तरह बसपा वोट भी हासिल नहीं कर सकी।

बसपा को उपचुनाव में कुंदरकी सीट पर 1099 वोट, मीरापुर सीट पर 3248 वोट और सीसामऊ सीट पर 1400 वोट ही मिले। अन्य सीटों पर भी बसपा का प्रदर्शन बेहद खराब रहा। इस उपचुनाव में जिस तरह बसपा की पराजय हुई ऐसा पहले कभी भी नहीं हुआ था। कुंदरकी सीट पर बसपा का दो बार कब्जा रह चुका है। वहीं मीरापुर सीट भी बसपा के पाले में रह चुकी है। उपचुनाव के परिणाम से यह जाहिर है कि बसपा के कोर वोट भी उसका दामन छोड़ते जा रहे हैं और दूसरा विकल्प खोज रहे हैं।

संगठन की कार्यशैली में बदलाव की जरूरत

उत्तर प्रदेष में हुए उपचुनाव के नतीजों ने बसपा को आईना दिखा दिया है। यदि भविष्य में पार्टी का अस्तित्व बचाये रखना है तो मायावती को संगठन की कार्यशैली में बदलाव करने की जरूरत है। बसपा संगठन पूरे प्रदेश में कमजोर होता जा रहा है। जिसका असर चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन पर पड़ रहा है। संगठन को मजबूत करने के लिए ठोस कवायद की जरूरत है। बसपा के अधिकतर वरिष्ठ नेता सियासी धरातल पर सक्रिय नहीं है। ऐसे में संगठन में बदलाव के बिना बसपा का अस्तित्व बचाए रखना मुश्किल ही होगा।

छोड़नी होगी एकला चलो की राह

सल 2022 के चुनाव में बसपा को केवल बलिया की रसड़ा विधानसभा सीट ही मिली। वहीं साल 2024 के लोकसभा चुनाव में तो बसपा का सूपड़ा ही साफ हो गया। ऐसे में बसपा को अब यह सोचना होगा कि अकेले चलने से उसका सियासी हश्र खराब ही होगा। वहीं जब भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस जैसे दल गठबंधन की राह पर चल रहे हैं तो बसपा को आखिर इससे परहेज क्यों हैं।

घटते जनाधार से उबरने और सियासी भविष्य के लिए बसपा को किसी भी दल से गठबंधन न करने के अपने निर्णय को बदलना ही होगा। गठबंधन के बंधन पर बंध जाने से बसपा को हो सकता है कि सत्ता न मिले। लेकिन पार्टी का सियासी अस्तित्व तो बच ही जाएगा। साल 2027 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने है। इससे पहले दिल्ली और बिहार में चुनाव है। ऐसे में अगर मायावती गठबंधन की राजनीति करती हैं तो हो सकता है कि बसपा फिर से राजनीति में वापसी कर लें।

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