Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में एमवीए गठबंधन पर भी सवालिया निशान, शरद पवार ने कराया था तीन दलों का मिलन, अब आगे की राह हुई मुश्किल
Maharashtra Politics: पवार ने मंगलवार को अध्यक्ष पद से इस्तीफे का ऐलान करके हर किसी को चौंका दिया। पवार की ओर से अचानक की गई घोषणा के बाद पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं की ओर से पवार से फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की जा रही है।
Maharashtra Politics: एनसीपी के अध्यक्ष पद से शरद पवार के इस्तीफे का महाराष्ट्र की सियासत पर बड़ा असर पड़ना तय माना जा रहा है। पवार ने मंगलवार को अध्यक्ष पद से इस्तीफे का ऐलान करके हर किसी को चौंका दिया। पवार की ओर से अचानक की गई घोषणा के बाद पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं की ओर से पवार से फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की जा रही है। वैसे पवार के एनसीपी के मुखिया पद से इस्तीफे की घोषणा के बाद महाविकास अघाड़ी गठबंधन (एमवीए) पर भी सवालिया निशान खड़ा होता दिख रहा है।
दरअसल शरद पवार महाराष्ट्र रियासत के बड़े खिलाड़ी माने जाते रहे हैं। उनके सियासी कौशल की बदौलत ही अलग-अलग विचारधारा वाले दलों को मिलाकर एमवीए का गठन किया गया था। पवार ने इस कदम के जरिए न केवल भाजपा को सत्ता से दूर कर दिया था बल्कि उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने में भी कामयाबी हासिल की थी। हालांकि बाद में शिवसेना में बगावत के बाद उद्धव को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। अब 2024 की सियासी जंग से पहले इस गठबंधन के भविष्य को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं।
तीन दलों के गठबंधन में पवार की बड़ी भूमिका
2019 के विधानसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के बीच खींचतान शुरू हो गई थी। चुनाव के बाद शुरुआत में देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री और एनसीपी नेता अजित पवार ने डिप्टी सीएम पद की शपथ ली थी मगर बहुमत न होने के कारण देवेंद्र फडणवीस को पद से इस्तीफा देना पड़ा था। भाजपा नेताओं को अजित पवार से काफी उम्मीदें थीं मगर वह एनसीपी में तोड़फोड़ करके विधायकों का आवश्यक समर्थन नहीं जुटा सके थे। इसके बाद शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी को मिलाकर महाविकास अघाड़ी गठबंधन (एमवीए) का गठन किया गया था।
एनसीपी मुखिया शरद पवार को भी इस गठबंधन का शिल्पकार माना जाता रहा है और उन्हीं के सियासी कौशल की वजह से उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए थे। हालांकि समय-समय पर गठबंधन में आपसी विरोध और टकराव भी देखता रहा मगर उद्धव ठाकरे करीब ढाई साल तक मुख्यमंत्री पद पर रहने में कामयाब रहे। आखिरकार यह सरकार गठबंधन के आपसी टकराव के कारण नहीं बल्कि शिवसेना में बगावत के कारण गिरी थी।
एकनाथ शिंदे की अगुवाई में शिवसेना के 40 विधायकों की बगावत के बाद उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। हालांकि चर्चा किए बिना उद्धव ठाकरे की ओर से इस्तीफा दिए जाने से शरद पवार भीतर ही भीतर नाराज भी थे और इसका जिक्र वे समय-समय पर करते भी रहे हैं। अपनी आत्मकथा में भी उन्होंने इसका उल्लेख किया है।
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2024 की जंग तक गठबंधन की एकजुटता मुश्किल
देश में अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर महाराष्ट्र को सियासी नजरिया से काफी अहम माना जा रहा है। महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें हैं और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने महाराष्ट्र में बड़ी सियासी जीत हासिल की थी। भाजपा ने 25 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए 23 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि शिवसेना के खाते में 18 लोकसभा सीटें आई थीं। एनसीपी को चार सीटों पर जीत मिली थी जबकि कांग्रेस और ओवैसी की पार्टी ने एक-एक सीट पर जीत हासिल की थी।
2019 के बाद महाराष्ट्र के सियासी हालात में काफी बदलाव आ चुका है। शिवसेना में बगावत के बाद उद्धव ठाकरे काफी कमजोर हो चुके हैं। दूसरी ओर बीजेपी शिंदे गुट के साथ हाथ मिलाकर एमवीए गठबंधन को जोरदार चुनौती देने की कोशिश में जुटी हुई है। ऐसे में शरद पवार के पद छोड़ने के ऐलान के बाद एमवीए गठबंधन में भी काफी उथल-पुथल दिख रही है। वैसे गठबंधन में शामिल तीनों दलों के बीच समय-समय पर बयानबाजी होती रही है। सियासी जानकारों का मानना है कि अब अगले लोकसभा और विधानसभा चुनाव तक तीनों दलों को एकजुट रखते हुए गठबंधन को जारी रखना काफी मुश्किल नजर आ रहा है।
पवार के ऐलान के बाद सियासी हलचल तेज
शरद पवार के इस्तीफे के ऐलान के बाद एनसीपी में भी सियासी हलचल तेज हो गई है। पवार की ओर से नए अध्यक्ष के चुनाव के लिए नई कमेटी का गठन किया गया है मगर सबको यह बात अच्छी तरह मालूम है कि वही नेता पार्टी का अध्यक्ष बनने में कामयाब होगा जिसके नाम पर शरद पवार खुद मुहर लगाएंगे। ऐसे में यह देखने वाली बात हो गई कि शरद पवार अपनी राजनीतिक विरासत अपनी बेटी सुप्रिया सुले या भतीजे अजित पवार में से किसे सौंपते हैं।
हाल के दिनों में अजित पवार को लेकर सियासी अटकलें लगाई जाती रही हैं। पिछले काफी दिनों से महाराष्ट्र में ऐसी चर्चा है कि अजित पवार भाजपा से हाथ मिलाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। 2019 में भी उन्होंने महाराष्ट्र में बड़ा सियासी खेल करने की कोशिश की थी। भाजपा के साथ हाथ मिलाते हुए उन्होंने डिप्टी सीएम पद की शपथ ली थी मगर बाद में वे बहुमत के लिए जरूरी एनसीपी विधायकों का जुगाड़ नहीं कर सके थे। इस कारण उन्हें अपनी मुहिम में कामयाबी नहीं मिल सकी थी। जानकारों का कहना है कि अजित पवार समेत एनसीपी में कई नेता भाजपा के साथ हाथ मिलाने की वकालत कर रहे हैं। ऐसे में अब सबकी निगाहें शरद पवार के अगले सियासी कदम पर टिकी हुई हैं।