राजकुमार उपाध्याय
लखनऊ। शहरी सरकार यानी नगर निगमों के मेयरों के पास न तो अधिकार हैं और न योजनाओं को स्वीकृत करने की शक्तियां। नगर विकास, विकास प्राधिकरण, पानी, बिजली, पब्लिक ट्रांसपोर्ट वगैरह पर मेयर का कोई अधिकार या नियंत्रण नहीं है। मेयर को यह शक्तियां देने के लिए संविधान का ७४वां संशोधन किया गया लेकिन हैरत और दुर्भाग्य की बात है कि यह कानून आज तक उत्तर प्रदेश में लागू नहीं किया गया है। इस बार के चुनाव में सियासी दल इस मुद्दे पर अपना नजरिया पेश करने से कतरा रहे हैं। सिर्फ कांग्रेस ने ही नगर निगम चुनाव के लिए अपने 'हक पूर्ति' पत्र में साफ कहा है कि यूपी में ७४वां संविधान संशोधन विधेयक लागू कराने का प्रयास करेंगे। वैसे, सपा, बसपा और भाजपा ने इस मुद्दे को चुनावी मुद्दा नहीं बनाया है।
अर्दली भी नहीं हटा सकता मेयर
आल इंडिया मेयर काउंसिल के सचिव और जनसंपर्क अधिकारी मनोज गुप्ता कहते हैं कि संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के जरिए मेयर को प्रशासनिक और वित्तीय अधिकार दिए गए थे। पर इस संशोधन में एक वाक्य दर्ज है, इसमें कहा गया है कि राज्य सरकारे चाहें तो अपने तरीके से इसे लागू कर सकती हैं। बस सरकारों ने इसी का फायदा उठाया। वर्तमान में मेयर को न ही कोई प्रशासनिक अधिकार हैं और न ही वित्तीय। यदि मेयर चाहे तो किसी ड्राइवर या अर्दली को भी नहीं हटा सकता। मेयर को पांच लाख तक के काम कराने का अधिकार है। वह काम से जुड़े पत्र मंडलायुक्त को लिखेगा। अब यह कमिश्नर के विवेक पर निर्भर करता है कि वह इस पर अमल करे या नहीं।
गाजियाबाद, इलाहाबाद, लखनऊ में काउंसिल ने पिछले सात-आठ सालों में कई बैठकें की। इस दौरान कभी सपा की सरकार रही कभी बसपा की। उनसे अधिकार देने की मांग की गई पर सरकारें मेयर को अधिकार देने से पीछे हट जाती हैं। उन्हें लगता है कि इससे उनका महत्व कम हो जाएगा। किसी राज्य में मेयर सीधे जनता के बीच चुनाव से चुने जाते हैं तो कहीं पार्षद ही मेयर चुनते हैं। मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार है, यहाँ मेयर को संशोधन के मुताबिक करीबन 70 फीसदी अधिकार प्राप्त हैं। यह संशोधन पंजाब और हरियाणा में भी लागू है।
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केंद्र सरकार ने निकायों की आवाज मजबूत करने के लिए सन 1992 में 74वां संविधान संशोधन किया। इसमें निकायों को 18 विशेष अधिकार दिए गए थे। जनता से जुड़े मामले का प्रबंधन निकायों के हाथों में देने की घोषणा हुई थी। इसका मकसद निकायों को सशक्त व आत्मनिर्भर बनाना था। पर निर्धारित अधिकार मिलना दूर की कौड़ी बन गई, बीते वर्षों में महापौर अपने मूल अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे हैं। पूर्व में प्रदेश सरकार ने यह संशोधन लागू करने का दावा तो किया, पर अब भी जनप्रतिनिधियों को मिलने वाली सभी शक्तियों को अपने हाथ में ही ले रखा है।
याद रहे कि अप्रैल 2015 में राजधानी के तत्कालीन महापौर और यूपी मेयर काउंसिल के अध्यक्ष डॉ. दिनेश शर्मा ने एक बैठक में आदर्श नगर पालिका अधिनियम (मॉडल म्यूनिसिपल एक्ट) को राज्य में लागू करने की वकालत की थी। अब वही दिनेश शर्मा वर्तमान सरकार में उप मुख्यमंत्री हैं। निकाय चुनावों की बेला भी है और ने पहली बार नगर निकाय चुनाव का संकल्प पत्र भी जारी किया है। लेकिन इसमें ७४वें संशोधन विधेयक का जिक्र तक नहीं है। पूर्व की समाजवादी सरकार में भी इसे लागू नहीं किया गया था। बल्कि इसके उलट तत्कालीन नगर विकास मंत्री आजम खां ने उत्तर प्रदेश नगर निगम संशोधन विधेयक आगे बढ़ाया था। इसकी धारा 16- ए पर भाजपा ने आपत्ति दर्ज करायी थी, खूब हंगामा भी मचा था। तब राज्य के 12 नगर निगमों में से 10 में भाजपा के मेयर थे।
पार्टियों की जुबानी
कांग्रेस ने ही निकायों को अधिकार दिए। लेकिन संघीय व्यवस्था में निकायों को कुछ अधिकार राज्य सरकार को देने होते हैं। वह अपने अधिकार छोडऩा नहीं चाहती है। निकाय चुनाव में हम यह मुद्दा बार-बार उठाते हैं। प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर ने 'हक पूॢत पत्र' जारी कर उम्मीद जताई है कि जनता पार्टी को 74वें संविधान संशोधन को पूरी तरह से लागू करने का अवसर देगी। -दिवेजेन्द्र त्रिपाठी (उप्र कांग्रेस कमेटी के महामंत्री व प्रवक्ता)
निकायों को सशक्तिकरण और अधिकार 74वें संविधान संशोधन के तहत ही प्राप्त होंगे।
हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव (भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता)
बसपा के प्रदेश अध्यक्ष राम अचल राजभर और सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने ७४वें संशोधन विधेयक पर अनभिज्ञता जाहिर की। इन्होंने कहा कि और जानकारी हासिल करने के बाद कुछ बता पाएंगे।
74वें संविधान संशोधन से मिलने वाले अधिकार
- नगरीय योजना।
- भूमि उपयोग का विनियमन और भवन निर्माण।
- आॢथक और सामाजिक विकास योजना।
- सड़कें और पुल।
- घरेलू, औद्योगिक और वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए जल प्रदाय।
- लोक स्वास्थ्य, स्वच्छता, सफाई और कूड़ा प्रबंधन।
- अग्निशमन सेवाएं।
- नगरीय वानिकी, पर्यावरण संरक्षण और पारिस्थितिकी आयाम की अभिवृद्धि।
- दुर्बल वर्ग, विकलांग, मानसिक मंद व्यक्ति के हितों की रक्षा।
- मलिन बस्ती सुधार।
- नगरीय निर्धनता उन्मूलन।
- पार्क, उद्यान, खेल के मैदान व नगरीय सुख सुविधाओं की व्यवस्था।
- सांस्कृतिक, शैक्षणिक और सौंदर्यपरक आयाम की अभिवृद्धि।
- शव दफनाना, कब्रिस्तान, शवदाह और श्मशान, विद्युत शवदाह गृह।
- कंजी हाउस, पशु क्रूरता निवारण।
- जन्म मृत्यु सांख्यिकी, पंजीकरण।
- मार्ग प्रकाश, पाॢकगस्थल, बस स्टॉप और जन सुविधाएं।
- वधशाला और चर्मशोधनशालाओं का विनियमीकरण।