Politician Sunil Shastri Biography: कुशल राजनीतिज्ञ के साथ श्रेष्ठ लेखक भी हैं सुनील शास्‍‍त्री, सत्यनिष्‍ठा, शुचिता और ईमानदारी जिनकी है पहचान

Politician Sunil Shastri Biography in Hindi: आज हम आपको भारत के द्वितीय प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री के पुत्र सुनील शास्त्री के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी छवि एक समर्पित और निष्ठावान नेता की रही है आइये विस्तार से जानते हैं उनके बारे में।;

Report :  Jyotsna Singh
Update:2025-02-11 14:53 IST

Politician Sunil Shastri Biography (Image Credit-Social Media)

Politician Sunil Shastri Biography: सुनील शास्त्री भारत के द्वितीय प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री के पुत्र हैं। उनकी छवि एक समर्पित और निष्ठावान नेता की रही है, जिन्होंने विभिन्न महत्वपूर्ण विभागों में कार्य किया है। सुनील शास्त्री एक ऐसे राजनेता हैं, जिन्होंने अपने पिता के सिद्धांतों और मूल्यों को अपनाते हुए राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बनाई। उनकी राजनीतिक यात्रा, विचारधारा और उपलब्धियां उनके सार्वजनिक जीवन के महत्वपूर्ण पहलू रहे हैं। वे सादगी, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के लिए जाने जाते हैं, जो उन्हें भारतीय राजनीति में एक विशिष्ट स्थान दिलाते हैं।उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में विभिन्न दलों के साथ काम किया है, जिसमें कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) प्रमुख हैं। उन्होंने अभी हाल में ही नरेन्द्र मोदी से प्रभावित होकर भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण की है। जिन दिनों वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के थे, उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार में एक लम्बे समय तक मन्त्री पद का दायित्व दिया गया। बाद में कांग्रेस पार्टी से उनका मोहभंग हुआ और उन्होंने भाजपा ज्वाइन कर ली। अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमन्त्रित्व काल में भाजपा की केन्द्रीय कार्यकारिणी में राष्ट्रीय सचिव रह चुके सुनील शास्त्री एक राजनेता के अलावा कवि और लेखक भी हैं। उन्होंने अपने पिता के जीवन पर आधारित एक पुस्तक हिन्दी में लिखी है जिसका अंग्रेजी अनुवाद भी प्रकाशित हो चुका है।

सुनील शास्त्री का व्यक्तिगत्व जीवन

13 फरबरी, 1950 को जन्मे सुनील शास्त्री श्रीमती ललिता शास्त्री और लालबहादुर शास्त्री के तीसरे पुत्र हैं। सेण्ट कोलम्बस स्कूल दिल्ली से प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात् उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया। 1980 में सक्रिय राजनीति में आने से पूर्व वे बैंक ऑफ इण्डिया में प्रबन्धक थे। उत्तर प्रदेश सरकार में मन्त्री भी रहे। उनका विवाह जयपुर निवासी मीरा शास्त्री से हुआ। उन दोनों के तीन बेटे हैं - विनम्र, वैभव और विभोर।

राजनैतिक सफर

एक प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार से नाता रखने वाले सुनील शास्त्री के पिता, लाल बहादुर शास्त्री, भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे और 'जय जवान, जय किसान' का नारा देकर देश को नई दिशा दी थी। अपने पिता के नक्शे-कदम पर चलते हुए, सुनील शास्त्री ने भी राजनीति में कदम रखा। 1980 में एक भारतीय राजनीतिज्ञ के तौर पर अपने करियर की शुरुआत करने वाले सुनील शास्त्री उत्तर प्रदेश की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं। इस कैरियर के शुरुआती दिनों से ही इनकी सामाजिक कार्यों में रुचि रही है। खासतौर पर ग़रीब एवं पिछड़े समुदाय के लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए हमेशा तत्पर रहे हैं।हालांकि, उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत किसी बड़े पद से नहीं की, बल्कि उन्होंने जनता की सेवा करने का संकल्प लेते हुए एक आम कार्यकर्ता के रूप में काम करना शुरू किया।

शिक्षा पूरी करने के बाद, वे विभिन्न संगठनों में सक्रिय रूप से कार्यरत रहे और धीरे-धीरे राजनीतिक दलों से जुड़े। उन्होंने अपने पिता के सिद्धांतों को अपनाते हुए जनता के हित में कार्य करने को अपनी प्राथमिकता बनाया।एक सादगीपूर्ण और ईमानदार राजनेता के रूप में जाने वाले सुनील शास्त्री सदैव सत्ता सुख से दूर रहते हुए कहीं ज्यादा महत्व समाज से जुड़े मुद्दों को दिया है। जब केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी तो सुनील शास्त्री कांग्रेस से त्याग पत्र देकर भारतीय जनता पार्टी में आ गये। वाजपेयी ने उन्हें केन्द्रीय कार्यकारिणी में संगठन का कार्य दिया। जिन दिनों नरेन्द्र मोदी भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव थे शास्त्री भी उनके साथ थे। बाद में जब अटलजी की सरकार चुनाव हार गयी और अटलजी का राजनीति में हस्तक्षेप कम हो गया सुनील शास्त्री ने भाजपा में उपेक्षित अनुभव करते हुए लालकृष्ण अडवाणी को अपना इस्तीफा सौंप दिया और कांग्रेस में चले गये। वहां भी उन्हें कोई खास जिम्मेदारी नहीं दी गयी। वे अपने स्वभाव के कारण परिस्थितियो से समझौता न कर सके। उसके उपरांत जब भारतीय जनता पार्टी ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमन्त्री पद का प्रत्याशी घोषित किया सुनील शास्त्री फिर से भाजपा में वापस आ गये। उनकी राजनीतिक यात्रा के 25 वर्ष पूरे होने के अवसर पर उन्होंने अपने परिवार के साथ जश्न मनाया था। उनकी राजनैतिक यात्रा के दौरान उन्होंने अपने पिता लाल बहादुर शास्त्री के आदर्शों को अपनाया और उन्हें आगे बढ़ाया।

सुनील शास्त्री ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कांग्रेस पार्टी से की। कांग्रेस में रहते हुए, उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया और संगठन को मजबूत करने में योगदान दिया। वे पार्टी के एक महत्वपूर्ण रणनीतिकार रहे और संगठनात्मक कार्यों में भी उन्होंने अपनी छाप छोड़ी। कांग्रेस में उनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही। लेकिन समय के साथ राजनीतिक परिस्थितियां बदलीं और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होने का फैसला किया। भाजपा में शामिल होने के बाद भी उन्होंने अपने मूल सिद्धांतों को नहीं छोड़ा और पार्टी के प्रति समर्पित भाव से काम करते रहे।

उन्होंने विभिन्न सरकारों के दौरान महत्वपूर्ण नीतिगत फैसलों में भाग लिया। वे कई बार सरकार में सक्रिय भूमिका निभा चुके हैं।उन्होंने हमेशा राजनीतिक स्थिरता को प्राथमिकता दी और दलगत राजनीति से ऊपर उठकर जनता के हित में कार्य किया।

किसानों की समस्याओं को हल करने के लिए उन्होंने कई बार सरकार से बातचीत की।

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड की महोबा हमीरपुर संसदीय सीट पर सन् 1996 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बेटे सुनील शास्त्री को प्रत्याशी बना कर मैदान में उतारा था। बुंदेलखंड के पिछड़े जिलों में शुमार महोबा हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से पहली बार किसी प्रधानमंत्री के पुत्र के चुनाव लड़ने से सियासी हलचल जरूर तेज हुई लेकिन नतीजे बिल्कुल इसके उलट रहे। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रत्याशी रहे गंगा चरण राजपूत ने 34.66 फीसदी वोट पाकर विजयश्री हासिल की थी।सुनील शास्त्री अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए थे और चौथे स्थान पर रहे। जिन्हें कुल पड़े वोटों से सिर्फ 6.21 फीसदी मत ही प्राप्त हुए थे।

कुशल राजनीतिज्ञ के साथ एक श्रेष्ठ लेखक भी हैं सुनील शास्त्री

सत्यनिष्‍ठा, शुचिता और ईमानदारी जैसे मूल्यों का पालन करने वाले सुनील शास्त्री न केवल एक लेखक हैं, बल्कि उनमें एक संवेदनशील कवि भी छिपा हुआ है। संगीत के प्रति भी उनका खासा लगाव है। एक ओर वे बच्चों के लिए लिखते हैं, तो दूसरी ओर विभिन्न मुद‍्दों पर गंभीर चिंतन आधारित लेख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते हैं। उन्हें कविता, संगीत और सामाजिक कार्यों से विशेष लगाव है। सामाजिक-आर्थिक बदलाव पर अपने विचारों को वे पत्र-पत्रिकाओं में व्यक्त करते रहते हैं। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए भी काम किया।

उन्हें कविता, संगीत और सामाजिक कार्यों से विशेष लगाव है। सुनील शास्त्री समय-समय पर सामाजिक-आर्थिक बदलाव पर अपने विचारों को पत्र-पत्रिकाओं में व्यक्त करते रहते हैं। खासतौर पर ग़रीब एवं पिछड़े समुदाय के लोगों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के लिए हमेशा तत्पर रहे हैं। ग़रीबों एवं हाशिए पर पड़े वंचितों को स्वर देने के लिए ही इन्होंने जनवरी 2011 में ‘लीगेसी इंडिया’ नामक पत्रिका शुरू की।

प्रकाशित पुस्तकें

  • लालबहादुर शास्त्रीः मेरे बाबूजी
  • लाल बहादुर शास्त्री, एवं उपरोक्त पुस्तक का अंग्रेजी में अनूदित संस्करण
  • अपने प्रयासों से फैला रहे शिक्षा का उजियारा

लाल बहादुर शास्त्री सेवा निकेतन के अध्यक्ष, प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री व पूर्व सांसद सुनील शास्त्री को पद्मपत सिंघानिया विश्वविद्यालय, उदयपुर-राजस्थान से डाक्टर आफ लिट्रेचर की मानद उपाधि प्रदान की गई। भारतीय राजनीति व समाजसेवा सहित विभिन्न क्षेत्रों में इनके योगदान के लिए इनको सम्मानित किया गया। मांडा क्षेत्र में भी सुनील शास्त्री शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए लाल बहादुर शास्त्री इंटर कॉलेज, लाल बहादुर शास्त्री पालीटेक्निक कॉलेज, ललिता शास्त्री पब्लिक हाईस्कूल, ललिता शास्त्री शिशु बिहार, लाल बहादुर शास्त्री खादी ग्रामोद्योग सहित तमाम संस्थान चलवा रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री व उनकी धर्मपत्नी ललिता शास्त्री का मांडा क्षेत्र से बेहद लगाव रहा है। सुनील शास्त्री भारतीय राजनीति के उन नेताओं में से एक हैं, जिन्होंने सत्ता से ज्यादा सेवा को प्राथमिकता दी। उनकी सादगी, ईमानदारी और जनता के प्रति उनकी निष्ठा उन्हें एक अलग पहचान दिलाती है।

उनकी राजनीतिक यात्रा उतार-चढ़ाव से भरी रही है। लेकिन उन्होंने हमेशा नैतिक मूल्यों को प्राथमिकता दी है। उन्होंने कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों में काम किया, लेकिन उनकी विचारधारा हमेशा जनता की सेवा पर केंद्रित रही।

आज भी वे राजनीति में सक्रिय हैं और देश के विकास में अपना योगदान दे रहे हैं। उनकी राजनीतिक यात्रा, उनके विचार और उनकी कार्यशैली आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे।

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