‘द ऐक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’, बहुत बेसब्री से राजनीतिक गलियारों में इंतजार

पूर्व प्रधानमंत्री रहे डाॅ. मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहाकार संजय बारू ने जब एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर नाम की अपनी किताब लिखी तब उन्हें यह अंदाजा नहीं रहा होगा कि वह इस किताब के मार्फत केवल मनमोहन सिंह के कालखंड का इतिहास नहीं बल्कि एक फिल्म की पटकथा लिख रहे हैं। इस किताब में मनमोहन सिंह को एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर बताते हुए उनके पहले कार्यकाल के ढेर सारे  रहस्योद्घाटन किये गये हैं।

Update: 2018-12-28 09:34 GMT

योगेश मिश्र

पूर्व प्रधानमंत्री रहे डाॅ. मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहाकार संजय बारू ने जब एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर नाम की अपनी किताब लिखी तब उन्हें यह अंदाजा नहीं रहा होगा कि वह इस किताब के मार्फत केवल मनमोहन सिंह के कालखंड का इतिहास नहीं बल्कि एक फिल्म की पटकथा लिख रहे हैं। इस किताब में मनमोहन सिंह को एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर बताते हुए उनके पहले कार्यकाल के ढेर सारे रहस्योद्घाटन किये गये हैं।

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लेकिन इस किताब के बाद मनमोहन सिंह ने अपने बारे में चार किताबों का एक सेट जारी करते हुए हाल फिलहाल यह स्वीकारोक्ती की है कि वे एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर ही नहीं, एक्सीडेंटल फाइनेंस मिनिस्टर भी थे। मनमोहन सिंह पर आने वाली फिल्म एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर का बीते दिनों कुछ अखबारों में एक पेज का इश्तहार भी आया है। अगले साल 11 जनवरी को रिलीज होने वाली इस फिल्म में मुख्य भूमिका अनुपम खेर ने निभाई है। इस फिल्म का बहुत बेसब्री से राजनीतिक गलियारों में इंतजार किया जा रहा है।



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भारतीय जनता पार्टी ने इस फिल्म के बाबत 27 दिसंबर को यह ट्वीट जारी किया। जो बताता है कि फिल्म का राजनीतिक गलियारे में कैसा इस्तेमाल होने वाला है। इस फिल्म में न्युक्लियर डील को पानीपत की लड़ाई से बड़ा बताया गया है। रुद्रा प्रोडक्शन की इस फिल्म ने रिलीज से पहले हंगामा मचा रखा है।

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भारतीय इतिहास को गंभीरता से देखा जाये तो एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर तो मनमोहन सिंह नहीं कहे जा सकते। एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर इस देश में सिर्फ एक शख्स रहे हैं। वह है- पीवी नरसिम्हा राव। वह इसलिए क्योंकि 1991 में नरसिम्हा राव ने अपने राजनीतिक कॅरियर का अंत मान लिख था। उन्होंने इंडिया इंटरनेशनल सेंटर की सदस्यता का आवेदन महज इसलिए किया था, ताकि दिल्ली आने पर उन्हें रुकने की जगह मिल सके। हैदराबाद उन्होंने अपनी सारी किताबें भेजवा दी थीं। दिल्ली छोड़कर हैदराबाद जाने से पहले नरसिम्हा राव ने पत्रकारों से मिलने का एक आयोजन किया था।



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उन्होंने लोकसभा चुनाव भी नहीं लड़ा था। लेकिन 21 मई, 1991 को अचानक जब राजीव गांधी की हत्या हो गई तो सोनिया गांधी ने अपनी सास और देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पूर्व प्रधान सचिव पी.एन. हक्सर से पूछा कि कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष उनकी नजर में किसे होना चाहिए। हक्सर ने डाॅ. शंकर दयाल शर्मा का नाम सुझाया वह उस समय उप-राष्ट्रपति थे। नटवर सिंह और अरुणा आसिफ अली ने सोनिया का संदेश शंकर दयाल शर्मा को सुनाया पर उन्होंने उम्र और स्वास्थ्य का हवाला देते हुए कहा कि मुझसे देश के इस सबसे बड़े पद के प्रति न्याय नहीं हो पाएगा। बाद में हक्सर ने ही नरसिम्हा राव का नाम सुझाया।



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नरसिम्हा राव शिक्षा, स्वास्थ्य और विदेश मंत्रालयों में काम कर चुके थे। वित्त मंत्रालय से उनका साबका नहीं पड़ा था। उस समय के कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा ने नरसिम्हा राव को एक नोट दिया जिसके हिसाब से भारत की आर्थिक स्थिति बेहद थी। उसे ठीक करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष से धन लाने और भारतीय अर्थनीति का आर्थिक चेहरा बदलने वाले आदमी की जरूरत थी।

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पी.सी. अलेक्जेंडर ने इसके लिए रिजर्ब बैंक के गवर्नर और लंदन स्कूल आॅफ इकोनाॅमिक्स के निदेशक रहे आई.जी. पटेल का नाम सुझाया। पटेल की मां की तबीयत खराब थी इसलिए वे बड़ोदरा से दिल्ली नहीं आ सकते थे। नतीजतन, अलेक्जेंडर ने ही मनमोहन सिंह का नाम सुझाया। नरसिंम्हा राव ने मनमोहन सिंह को यूजीसी में फोन करके अपना वित्त मंत्री बनाने का प्रस्ताव दिया।



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वह एक्सीडेंटल नहीं था। बल्कि जब उन्हें नरसिम्हा राव वित्तमंत्री बनाने का प्रस्ताव दे रहे थे तो उससे पहले मनमोहन सिंह सत्ता के गलियारों के लिए बेहद परिचित नाम था। वे 1990-91 में प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहाकार थे। 1985-87 में योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे। 1982 और 85 में रिजर्ब बैंक के गवर्नर रहे। 1972 में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया था। 1987-90 के बीच वे जनेवा में साऊथ कमीशन के सचिव रहे। 1971 में डाॅ. सिंह भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार नियुक्त किये गये।

पंजाब विश्वविद्यालय से बी.ए. और एम.ए. करने के बाद कैब्रिज से पी.एचडी. और ऑक्सफोर्ड से उन्होंने डी.फिल. किया। उनकी इंडियाज एक्सपोर्ट ट्रेंडस एंड प्राॅस्पेक्ट फाॅर सेल्फ सस्टेंड ग्रोथ भारत के अंतरमुखी व्यापार नीति पर पहली सटीक किताब मानी जाती है। 1957 से 65 तक वह पंजाब विश्वविद्यालय और 1969 से 71 तक दिल्ली स्कूल आफ इकोनाॅमिक्स में टीचर रहे। संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन सचिवालय में सलाहकार के पद पर भी उन्होंने काम किया। कांग्रेस का वित्तमंत्री होने के साथ ही उन्होंने आर्थिक उदारीकरण की राह पकड़ी। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और नेहरू की आर्थिक नीति को पलट कर रख दिया। गौरतलब है कि सत्ता के गलियारों में सबसे पहले डाॅ. मनमोहन सिंह की उपस्थिति बिहार के नेता रहे ललित नारायन मिश्र के मार्फत दर्ज हुई थी।



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फिल्म ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर‘ ब्रिटेन के रुद्रा प्रोडक्शन ने तैयार की है। बोहरा ब्रद्र्स और डाॅ. जयंतिलाल गड्डा ने मिलकर इस फिल्म को प्रस्तुत किया है। फिल्म का टेलर विवादों में है। महाराष्ट्र यूथ कांग्रेस ने टेलर जारी होने के बाद फिल्म निर्माताओं को नोटिस दिया है कि बिना उसको दिखाए फिल्म रिलीज न की जाए। फिल्म यह दर्शाती है कि मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान सरकार का कंट्रोल उनके हाथ में नहीं था। मनमोहन सिंह ने फिल्म पर कोई प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया है।

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