सोनिया-माया-ममता को भाये महिला अत्याचारी, सबको दिलाई कुर्सी

नेशनल इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स ने इस सर्वेक्षण के लिए 4896 में से 4822 सांसदों और विधायकों के शपथपत्रों का विश्लेषण किया। जिसमें पिछले 5 वर्षों (2014-2019) में भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदशों के 776 में से 759 सांसदों और 4120 में से 4063 विधायकों के शपथपत्र शामिल हैं।

Update:2019-12-10 21:08 IST

लखनऊ: महिलाओं के ऊपर अत्याचार के मुद्दे पर ढोल नगाड़े लेकर रोना पीटना और स्यापा करने वाले राजनीतिक दल वास्तव में इस मामले में कत्तई चिंतित नहीं हैं। औरों की तो बात छोड़िए महिलाओं के नेतृत्व वाले राजनीतिक दलों में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती और तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी भी महिलाओं पर अत्याचार करने वाले उम्मीदवारों को टिकट देने में किसी से पीछे नहीं रही हैं।

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यह खुलासा नेशनल इलेक्शन वाच की एक रिपोर्ट में हुआ। जिसमें कहा गया है कि 2009 से 2019 तक, लोक सभा चुनाव में महिलाओं के ऊपर अत्याचार से सम्बन्धित मामले घोषित करने वाले उम्मीदवारों की संख्या में 231 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 2009 से 2019 तक, लोक सभा चुनाव में महिलाओं के ऊपर अत्याचार से सम्बन्धित मामले घोषित करने वाले सांसदों की संख्या में 850 प्रतिशत की वृद्धि हुई हैं।

रिपोर्ट में बताया गया कि

रिपोर्ट में बताया गया कि 756 सांसदों और 4063 विधायकों ने अपने ऊपर आपराधिक मामले घोषित किये है, 76 सांसदों और विधायकों ने महिलाओं के ऊपर अत्याचार से सम्बन्धित मामले घोषित किये हैं। इन 76 सांसदों और विधायकों ने महिलाओं के ऊपर अत्याचार से सम्बन्धित मामले घोषित किये हैं, जिसमें 58 विधायक और 18 सांसद हैं।

पिछले 5 वर्षों में, महिलाओं के ऊपर अत्याचार से सम्बन्धित मामले घोषित करने वाले कुल 572 उम्मीदवारों ने लोकसभा/राज्यसभा और विधानसभा चुनाव लड़ा है। इनमें से किसी भी उम्मीदवार पर अरोप दोषसिद्ध नहीं हुआ हैं। मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों ने ऐसे 410 उम्मीदवारों को टिकट दिए जिन पर महिलाओं के ऊपर अत्याचार से सम्बन्धित मामले घोषित थे। इन उम्मीदवारों में से 89 उम्मीदवारों को लोकसभा/राज्यसभा चुनाव के लिए और 321 उम्मीदवारों को राज्य विधानसभा चुनाव के लिए दलों द्वारा टिकट दिए गए।

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पिछले 5 वर्षो में महिलाओं के ऊपर अत्याचार से सम्बन्धित मामले घोषित करने वाले 162 निर्दलीय उम्मीदवारों ने लोकसभा/राज्यसभा और राज्य विधानसभा के लिए चुनाव लड़ा था। पिछले 5 वर्षों में महिलाओं के ऊपर अत्याचार से सम्बन्धित मामले घोषित करने वाले 35 निर्दलीय उम्मीदवारों ने लोकसभा/राज्यसभा चुनाव और 127 निर्दलीय उम्मीदवारों ने राज्य विधानसभा चुनाव लड़ा है।

पिछले 5 वर्षों में राज्यों में महाराष्ट्र से सबसे अधिकतम 84 उम्मीदवार

राज्यों में पश्चिम बंगाल के सबसे अधिकतम 16 सांसद/विधायक, इस के बाद ओडिशा और महाराष्ट्र प्रत्येक से 12 ऐसे सांसद/विधायक हैं, जिन्होंने महिलाओं के ऊपर अत्याचार से सम्बन्धित मामले घोषित किये हैं। पिछले 5 वर्षों में राज्यों में महाराष्ट्र से सबसे अधिकतम 84 उम्मीदवार, इस के बाद बिहार से 75 और पश्चिम बंगाल से 69 उम्मीदवारों (निर्दलीय उम्मीदवारों सहित) को राजनीतिक दलों द्वारा टिकट दिए गए, जबकि उन्होंने अपने शपथपत्रों में महिलाओं के ऊपर अत्याचार से सम्बन्धित मामले घोषित किए हैं।

मान्यता प्राप्त दलों में भाजपा के सबसे अधिकतम 21 सांसदों/विधायकों, इसी के बाद कांग्रेस के 16 और वाईएसआरसीपी के 7 सांसदों/विधायकों ने महिलाओं के ऊपर अत्याचार से सम्बन्धित मामलें घोषित किए हैं। पिछले 5 वर्षों में मुख्य दलों में, महिलाओं के ऊपर अत्याचार से सम्बन्धित मामले घोषित करने वाले 66 उम्मीदवारों को भाजपा द्वारा, 46 उम्मीदवारों को कांग्रेस द्वारा और 40 उम्मीदवारों को बसपा द्वारा टिकट दिए गए जो पिछले 5 वर्षों से लोकसभा/राज्यसभा और राज्य विधानसभा चुनाव लड़ रहे थे।

41 उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं

9 सांसदों/विधायकों ने बलात्कार से सम्बन्धित मामले घोषित किए है, इन में से 3 सांसद और 6 विधायक हैं। पिछले 5 वर्षों में, मान्यता प्राप्त दलों ने बलात्कार से सम्बन्धित मामले घोषित करने वाले 41 उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं। पिछले 5 वर्षों में, लोकसभा/राज्यसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव लड़ने वाले 14 निर्दलीय उम्मीदवार ऐसे है, जिन्होंने अपने ऊपर बलात्कार से सम्बन्धित मामले घोषित किए हैं।

बलात्कार सम्बन्धित मामलों वाले उम्मीदवारों को टिकट देते हैं दल

रिपोर्ट के अंत में कहा गया है कि सभी प्रमुख राजनीतिक दल महिलाओं के खिलाफ अत्याचार विशेष रूप से बलात्कार सम्बन्धित मामलों वाले उम्मीदवारों को टिकट देते हैं, और इसलिए नागरिकों के रूप में महिलाओं की सुरक्षा और गरिमा में बाधा डालते हैं। ये गंभीर मामले हैं जिन पर अदालतों द्वारा या तो आरोप तय किये गए है या फिर संज्ञान लिया गया हैं।

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इन आंकड़ों से हमारी राजनीतिक प्रणाली में गंभीर खराबी और आघात का पता चलता है, जहां महिलाओं के ऊपर अत्याचार से सम्बन्धित मामलों वाले धनबली और बाहुबली सांसद/विधायक प्रणाली को वश में करने में सक्षम हैं, अपने प्रभाव का उपयोग करके पुलिस जांच में हस्तक्षेप करते हैं, अपने लाभ के लिए न्यायिक देरी का उपयोग करते है और कुछ मामलों में लगातार पीडि़तों और उनके परिवार वालों को परेशान करते हैं।

सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों को फास्ट ट्रैक किया जाना चाहिए

एडीआर और नेशनल इलेक्शन वॉच की रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने पर रोक लगनी चाहिए। राजनीतिक दलों को उन मानदंडों का खुलासा करना चाहिए जिन पर उम्मीदवारों को टिकट दिए जाते हैं। सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों को फास्ट ट्रैक किया जाना चाहिए और समयबद्ध तरीके से फैसला किया जाना चाहिए। मतदाताओं को महिलाओं के ऊपर अत्याचार और अन्य जघन्य अपराधों से सम्बन्धित मामले घोषित करने वाले उम्मीदवारों का चुनाव करने से बचना चाहिए।

नेशनल इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स ने इस सर्वेक्षण के लिए 4896 में से 4822 सांसदों और विधायकों के शपथपत्रों का विश्लेषण किया। जिसमें पिछले 5 वर्षों (2014-2019) में भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदशों के 776 में से 759 सांसदों और 4120 में से 4063 विधायकों के शपथपत्र शामिल हैं। इस रिपोर्ट में 5 साल की अवधि के दौरान इस्तीफे के कारण, मृत्यु या किसी और कारण से हुए उप-चुनावों का विश्लेषण भी शामिल हैं।

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