आजम खान की नाराजगी भारी पड़ सकती है अखिलेश को, 12 साल पहले छोड़ चुके हैं सपा

Up News: आजम खां सपा छोड़कर अलग दल बनाने का काम करते हैं, तो अखिलेश कमजोर हो जाएंगे।

Published By :  Ragini Sinha
Update: 2022-04-15 03:43 GMT

अखिलेश यादव और आजम खान (Social media)

UP political News: समाजवादी पार्टी में इन दिनों आजम खां की नाराजगी को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में बेचैनी देखने को मिल रही है। कहा जा रहा है कि यदि आजम खां समाजवादी पार्टी छोडकर अलग दल बनाने का काम करते हैं तो फिर अखिलेश यादव बेहद कमजोर साबित होंगे।  हांलाकि, आजम खां की तरफ से इस बारे में अब तक कुछ भी नहीं कहा गया है पर उनकी अखिलेश के प्रति नाराजगी जगजाहिर हो चुकी है।

वहीं, दूसरी तरफ रामपुर से लेकर लखनऊ तक पार्टी के मुस्लिम नेताओं में अकुलाहट दिख रही है। इसके पहले सपा सांसद डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क भी कुछ समय पहले यह खुलकर कह चुके हैं कि सपा ने मुसलमानों के लिए कुछ नहीं किया।  जबकि पार्टी को मजबूती ही मुसलमानों के वोट से मिली है।।

आजम खान कल्याण- मुलायम गठबन्धन के बाद पार्टी से नाराज थें

इससे पहले भी आजम खां  कल्याण- मुलायम गठबन्धन के बाद पार्टी से नाराज हो गए थें। जिसके कारण उन्हे पार्टी से बाहर होना पडा था। 2009 के लोकसभा चुनाव के पहले मुलायम- कल्याण दोस्ती के कारण मो. आजम खां समाजवादी पार्टी से नाराज हो गयें थें। उन्होने इस बेमेल दोस्ती के लिए तत्कालीन पार्टी रणनीतिकार अमर सिंह को दोषी मानते हुए अनाप-शनाप बयानबाजी की थी।

आजम खां को पार्टी से निकाल दिया

यही नहीं अमर सिंह के कहने पर मुलायम सिंह ने जया प्रदा को लोकसभा चुनाव में रामपुर से टिकट दे दिया था। इसके बाद जयाप्रदा की अश्लील सीडी आदि बांटने का आरोप आजम खां पर लगा था।  इस बात पर आजम को इतना गुस्सा आया कि सपा से नाता तोड़ दिय। तब मुलायम सिंह पर अमर सिंह का जादू सिर चढकर बोल रहा था। उन्होने बगैर भूत भविष्य की चिन्ता किये आजम खां को पार्टी से निकाल दिया। लेकिन इसका समाजवादी पार्टी को बडा नुकसान हुआ 2009 के लोकसभा चुनाव में  सपा का परम्परागत मुस्लिम वोट उससे खिसक गया।

इस चुनाव में सपा के सभी मुस्लिम प्रत्याशी रशीद मसूद,शादाब मसूद, हाजी रिजवान, नवाब इरफान, महबूब अली, शाहिद मंजूर, जफर आलम, नफीसा अली, शब्बीर अहमद, रुआबा सईद तथा अरशद जमाल अपनी- अपनी लोकसभा सीटे हार गयें।  और 2004  में 35 लोकसभा सीटे पाने वाली सपा 23  सीटों पर ही सिमट कर रह गयी। इसके बाद उसी साल हुए 11  विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों में सपा के तीन मुस्लिम उम्मीदवार पडरौना में शाकिर अली लखनऊ पश्चिम में बुक्कल नवाब तथा झांसी में असफाक सिद्दीकी भी चुनाव हार गयें।

यही नही बसपा सरकार के दौरान उत्तर प्रदेश में हुए २४ विधानसभा उपचुनावों में सपा का खाता तक नही खुल पाया।  यहां तक कि फिरोजाबाद लोकसभा उपचुनाव में मुलायम की बहू डिम्पल यादव को फिरोजाबाद की मुस्लिम बाहुल्य विधानसभा वाली सीट 70  हजार मतों से पिछडना पडा था ।

2012 में समाजवादी पार्टी को फिर से सत्ता हासिल हुई थी

लोध वोट बैक की लालच में बनी कल्याण-मुलायम की दोस्ती से  समाजवादी पार्टी को बडा नुकसान हुआ था। उनकी पार्टी को लोधियों का वोट भले न मिला हो, लेकिन मुस्लिम वोट बैठ जरूर उनसे खिसक गया था। बाद में अपनी इस गलती के लिए तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष  अध्यक्ष मुलायम सिंह को माफी भी मांगनी पडी थी। इसका नतीजा यह रहा कि  2012 में समाजवादी पार्टी को फिर से प्रदेश में सत्ता हासिल हुई थी। 

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