Punjab Politics: राजनीतिक युद्ध हार गए, लेकिन वोट कटवा बन सकते हैं अमरिंदर

कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए अब कांग्रेस में कोई विशेष जगह बची नहीं है। अमरिंदर की करीब पांच दशक लंबी राजनीतिक यात्रा के लिए यह निर्णायक मोड़ है। लेकिन इसे उस यात्रा का अंत नहीं माना जा रहा है।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Ashiki
Update: 2021-09-21 08:46 GMT

कैप्टन अमरिंदर (Photo- Social Media) 

Punjab Politics: पंजाब विधान सभा का कार्यकाल मार्च 2022 में खत्म होना है। यानी राज्य में चुनाव (Punjab Election) होने से पहले मुश्किल से छह महीनों का समय बचा है। चुनाव के इतने नजदीक सत्तारूढ़ पार्टी का मुख्यमंत्री को बदल देना अक्सर एक चुनौतीपूर्ण कदम होता है। लेकिन कांग्रेस (Congress) खासकर राहुल गाँधी (Rahul Gandhi) ने जातीय समीकरण के जरिये इस चुनौती का सामना करने की कोशिश की है।

जहाँ तक कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) की बात है तो उनके लिए अब कांग्रेस में कोई विशेष जगह बची नहीं है। अमरिंदर की करीब पांच दशक लंबी राजनीतिक यात्रा के लिए यह निर्णायक मोड़ है। लेकिन इसे उस यात्रा का अंत नहीं माना जा रहा है। अपने इस्तीफे से पहले 79 वर्षीय सिंह भले ही भारत के सबसे उम्रदराज मुख्यमंत्री थे। लेकिन फिलहाल वह राजनीति से रिटायरमेंट के मूड में नहीं हैं। उन्होंने खुद कहा है कि कांग्रेस पार्टी में वह अब अपमानित महसूस कर रहे थे और इस्तीफे के बाद अब उनके सामने सभी विकल्प खुले हैं। अटकलें लग रही हैं कि अमरिंदर अब अपनी नई पार्टी शुरू कर सकते हैं। वह ऐसा पहले भी कर चुके हैं। अमरिंदर चुपचाप नेपथ्य में चले जायेंगे, ऐसा शायद ही हो। वह कुछ न कुछ गुल जरूर खिलाएंगे।

अपनी पार्टी बना चुके हैं अमरिंदर

1984 में ऑपरेशन ब्लूस्टार के विरोध में अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस से इस्तीफा दे कर शिरोमणि अकाली दल का दामन थाम लिया था । लेकिन 1992 में उन्होंने अकाली दल भी छोड़ दिया और शिरोमणि अकाली दल (पंथिक) नाम से एक नई पार्टी की शुरुआत की। हालांकि 1998 के विधान सभा चुनावों में अमरिंदर के साथ उनकी पार्टी को भी बड़ी हार का सामना करना पड़ा। उसके बाद कैप्टेन फिर कांग्रेस में लौट आए। अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया।


अब जिस हालत में अमरिंदर हैं, उसमें दोबारा एक नई पार्टी खड़ी कर सकते हैं। अमरिंदर न सिर्फ अभी भी एक सक्रिय नेता हैं, बल्कि राज्य के सबसे कद्दावर नेताओं में से हैं। इसके बावजूद प्रदेश की राजनीति में एक और पार्टी की जगह है या नहीं, यह एक बड़ा सवाल है। क्योंकि पंजाब में कांग्रेस और अकाली दल – यही दो प्रमुख पार्टियाँ रहीं है। राज्य की राजनीति कई दशकों तक इनके इर्दगिर्द घूमती रही है। लेकिन 2014 में आम आदमी पार्टी के पंजाब में पदार्पण के बाद से स्थिति कुछ बदली है। 2017 के विधान सभा चुनावों में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहा।वह विधान सभा में मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई। पार्टी अगले चुनावों में और बेहतर प्रदर्शन कर सत्ता हासिल करने की तैयारी कर रही है। ऐसे में एक नई पार्टी के लिए इतने कम समय में अपने लिए जमीन तैयार करना एक मुश्किल काम होगा। हां, अमरिंदर चुनावों में कांग्रेस को मिलने वाले कुछ वोट काटने का काम जरूर कर सकते हैं। ऐसे में उनके इस्तीफे से कांग्रेस को नुकसान हो सकता है।


इसी बीच चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री बन गए हैं इसलिए कहा जा रहा है कि उन्हें चुनकर कांग्रेस ने प्रदेश के करीब 31 प्रतिशत दलित मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की है। हालांकि सच्चाई यह है कि पंजाब के दलित मतदाताओं ने पहले कभी भी एक धड़े के रूप में मतदान नहीं किया है। ऐसे में देखना होगा कि चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने का कांग्रेस को कितना लाभ मिल पाता है। कांग्रेस को भी यह पता है इसीलिए एक सिख और एक हिन्दू को डिप्टी सीएम बना दिया है। इसके जरिये कांग्रेस अब पूरी तरह धर्म-जाति समीकरण को देख कर चल रही है। इस समीकरण में अमरिंदर सिंह वर्ग विशेष यानी सामान्य सिख समुदाय के वोट काटने की उम्मीद रख सकते हैं। लेकिन वहां भी उनको नवजोत सिंह सिद्धू की चुनौती मिलेगी।

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