Cheetah in Jaipur: 'पिंक सिटी' का भी है चीतों से पुराना नाता, शाही खर्चे पर होता था उनका देखभाल

Cheetah in Jaipur: राजस्थान की राजधानी जयपुर में चीतों को पालने वालों का एक पूरी फैमिली मौजूद है। यहां साल 1940 तक चीते मौजूद थे।

Written By :  Krishna Chaudhary
Update: 2022-09-22 09:48 GMT

Cheetah in Jaipur (image social media)

Cheetah in Jaipur: 17 सितंबर 2022 को भारत की धरती उस वन्यजीव का आगमन हुआ, जो दशकों पहले यहां के जंगलों से विलुप्त हो चुका था। भारतीय चीते किताब के पन्नों तक महदूद रह गए थे। अगर अफ्रीकी चीतों (Africa Cheetah) का भारत में बसाने का प्रयोग सफल रहा तो एकबार फिर देश की जंगलों में 'चीते की चाल' लोगों को देखने को मिल सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जन्मदिन पर नामीबिया से लाए गए 8 चीतों को मध्य प्रदेश के श्योपुर जिला स्थित कूनो नेशनल पार्क (Kuno National Park in Sheopur District) में छोड़ा था।

तब से चीते खबरों में बने हुए हैं। उनसे जुड़ी हर प्रकार की खबरों को मीडिया में काफी जगह मिल रही है। धरती पर सबसे तेज गति से दौड़ने वाले इस वन्यप्राणी के बारे में भारत में कई कहानियां है। आज हम भी आपको चीते के बारे में एक ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं, जिस पर शायद आपको यकीन न हो। लेकिन ये पूरी तरह सच है।

जयपुर में पाले जाते थे चीते

भारत में एक समय ऐसा भी था जब चीते पाले जाते थे। राजस्थान की राजधानी जयपुर में चीतों को पालने वालों का एक पूरी फैमिली मौजूद है। यहां साल 1940 तक चीते मौजूद थे। उसके बाद देश के अन्य हिस्सों की तरह यहां से भी चीते खत्म हो गए।

जयपुर राजघराने ने नियुक्त कर रखा था चीतेदार

मुगल शासन के दौरान जयपुर राजघराने की ठसक कायम थी। बताया जाता है कि यह राजघराना चीते पालने का विशेष शौक भी रखता है। इसके लिए उसने अफगानिस्तान के चीतेदार को नियुक्त कर रखा था। ये चीतेदार पहले मुगल दरबार में रहा करते थे। लेकिन दिल्ली में मुगल सल्तनत के खराब दिन शुरू होने के बाद इन्होंने राजस्थान के राजपूत राजाओं की ओर रूख किया। अफगान चीतेदार पहले अलवर राजघराना गए, जहां से जयपुर राजघराने के महाराज इन्हें जयपुर ले आए।

चीतेदार की जरूरतों का पूरा ख्याल रखा जाता था। जयपुर में चीतेदार निजामुद्दीन के लिए खासतौर पर निजाम महल बनाया गया था। वे चीतों के साथ बाज भी पाला करते थे। चीतों की देखभाली में कोई आर्थिक अड़चन न आए इसके लिए राजघराने की तरफ वर्ष 1880 में उनका प्रतिमाह सौ रुपये वजिफा भी तय किया था। बताया जाता है कि जयपुर के इन चीतों को महाराज का खास दुलार मिलता था।

चीतों को डाइट

जयपुर में चीतों के रहने के लिए महलनुमा घर बनावाया गया था, जिसमें बड़ी – बड़ी अलमारियां होती थीं। इन्हीं अलमारियों में चीते को सुलाया जाता था। घरों में हमेशा बंद रहने वाले चीते शांत रहें, इसके लिए उन्हें मीट की डाइट के साथ - साथ गुलकंद और पनीर खिलाया जाता था। जयपुर में किसी शाही मेहमान के आगमन पर चितों के शिकार करने का खास डेमो दिया जाता था।

जयपुर में बचा चीतेदारों का आखिरी परिवार

जयपुर में पाले जाने वाले चीते अन्य राज्यों से खरीदकर लाए जाते थे। इतिहासकारों की मानें तो आखिरी बार एक जोड़ी चीते बंगाल से 640 रूपये में खरीद कर लाए गए थे। चीतेदार निजामुद्दीन के पौते जहीरउद्दीन ने बताया कि उसके पिता अजीजुद्दीन ने अपने बचपन तक चीते देखे थे। उसके बाद देश का कानून बदल गया और चीते भी जंगलों से विलुप्त हो गए। अफगानिस्तान से भारत आया चीतेदार निजामुद्दीन का परिवार जयपुर में बचा चीतेदारों का आखिरी परिवार है।

जहीरउद्दीन बताते हैं कि उनके पिता अजीजुद्दीन ने जयपुर में फिर से चीते लाने की काफी कोशिश की थी, मगर सफल नहीं हो पाए। उन्होंने देश में एकबार फिर चीते की वापसी पर प्रसन्नता जाहिर की है। उन्होंने प्रधानमंत्री से जयपुर में एकबार फिर चीते लाने की उनकी इच्छा को पूरा करने की भावुक अपील की है। 

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