Rajasthan Election 2023: जातीय समीकरण साधने वाले दल को ही मिलेगी गद्दी,सत्ता का फैसला करने में पांच जातियां होंगी निर्णायक

Rajasthan Election 2023: पिछले चुनाव की तरह इस बार भी जाट,गुर्जर, राजपूत, आदिवासी और दलित राज्य की सत्ता का फैसला करने में निर्णायक भूमिका निभाएंगे। यही कारण है कि इन पांचों जातियों का समीकरण साधने के लिए इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों की ओर से जीतोड़ कोशिश की गई है।

Report :  Anshuman Tiwari
Update:2023-11-24 19:23 IST

Rajasthan Assembly Election 2023 (Pic: Newstrack)

Rajasthan Election 2023: राजस्थान के विधानसभा चुनाव के लिए शनिवार को होने वाली वोटिंग में सबकी निगाहें जातीय समीकरण साधने पर लगी हुई हैं। चुनावी शोर थमने के बाद जातीय समीकरण साधने के लिए बंद कमरों में बैठकों का दौर जारी है। कांग्रेस ने राज्य में हर पांच साल पर सत्ता बदलने के रिवाज को बदलने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है तो दूसरी ओर भाजपा ने भी सत्ता पर काबिज होने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रखा है।

दोनों दलों की ओर से इस बार बहुमत मिलने का दावा किया जा रहा है। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि ऊंट किस करवट बैठता है। चुनाव प्रचार के आखिरी दिन भाजपा की ओर से गृह मंत्री अमित शाह और कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बहुमत मिलने का दावा किया मगर सियासी जानकारों का कहना है कि जयपुर की गद्दी का फैसला करने में राज्य की पांच जातियों की निर्णायक भूमिका होगी। इन पांच जातियों का समीकरण साधने वाले के सिर पर ही ताज सजेगा।

इन पांच जातियों की भूमिका होगी अहम

राजस्थान के चुनावी जानकारों का मानना है कि पिछले चुनाव की तरह इस बार भी जाट,गुर्जर, राजपूत, आदिवासी और दलित राज्य की सत्ता का फैसला करने में निर्णायक भूमिका निभाएंगे। यही कारण है कि इन पांचों जातियों का समीकरण साधने के लिए इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों की ओर से जीतोड़ कोशिश की गई है।

प्रत्याशियों का चयन करने में भी दोनों दलों ने काफी सतर्कता बरती है और इन पांच जातियों के प्रत्याशियों को ज्यादा से ज्यादा संख्या में उतार कर इन जातियों का समर्थन हासिल करने की कोशिश की है।

गुर्जर वोटों के लिए कांग्रेस-बीजेपी में जंग

पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस गुर्जर समुदाय का समर्थन हासिल करने में कामयाब हुई थी जिससे भाजपा को बड़ा झटका लगा था। इसके पीछे सचिन पायलट की बड़ी भूमिका मानी गई थी और इसी कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार राज्य के गुर्जरों को कांग्रेस में राजेश पायलट और सचिन पायलट की उपेक्षा की याद दिलाई है।

उन्होंने याद दिलाया कि कांग्रेस में हमेशा इन दोनों नेताओं के साथ अन्याय किया गया। इसके जरिए उन्होंने भाजपा के लिए गुर्जरों का समर्थन हासिल करने की कोशिश की है मगर यह देखने वाली बात होगी कि उनका यह सियासी दांव कहां तक कामयाब हो पाता है।

राजस्थान का जातीय समीकरण

राजस्थान के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में करीब 89 फ़ीसदी हिंदू और 11 फ़ीसदी मुसलमानों की आबादी है। जातीय लिहाज से देखा जाए तो राज्य में दलितों की आबादी 18 फ़ीसदी है और वे राज्य की सत्ता का फैसला करने में प्रमुख भूमिका निभाते रहे हैं। गुर्जर और राजपूत बिरादरी की संख्या बराबर करीब 9-9 फ़ीसदी है।

राजस्थान में आदिवासी समुदाय भी बड़ी ताकत रखता है और इस समुदाय की आबादी करीब 13 फीसदी है जबकि राज्य की सत्ता का फैसला करने में 12 फीसदी जाट भी प्रमुख भूमिका निभाते रहे हैं। राजस्थान के जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए सभी दलों ने इन पांचों जातियों पर पूरी मजबूती के साथ फोकस कर रखा है। राजस्थान में ब्राह्मण और मीणा समुदाय की आबादी भी बराबर करीब सात-सात फ़ीसदी है।

जातीय समीकरण से प्रत्याशियों का चयन

भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों की ओर से प्रत्याशियों के चयन में भी जातीय समीकरण का पूरा ध्यान रखा गया है। जाट बिरादरी का वोट हासिल करने के लिए कांग्रेस ने छत्तीस प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे हैं तो दूसरी ओर भाजपा ने भी 33 जाट प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने का मौका दिया है। भाजपा ने 25 राजपूत प्रत्याशियों को चुनावी अखाड़े में उतारा है तो कांग्रेस की ओर से 17 राजपूत प्रत्याशी चुनाव मैदान में है। गुर्जर समुदाय से कांग्रेस ने 11 तो भाजपा ने 10 प्रत्याशियों को सियासी जंग में उतारा है।

आदिवासी समुदाय का समर्थन हासिल करने के लिए भी भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों ने पूरा जोर लगाया है। कांग्रेस ने 35 तो भाजपा ने 30 आदिवासी प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतारा है। दलितों का समर्थन हासिल करने के लिए दोनों दलों ने बराबर प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे हैं। दोनों दलों की ओर से 34-34 दलित प्रत्याशी चुनावी अखाड़े में किस्मत आजमाने के लिए उतरे हैं।

दोनों दलों की मजबूत व्यूहरचना

जातीय समीकरण साधने के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों की ओर से मजबूत व्यूह रचना की गई है। दोनों दलों की ओर से राज्य की सत्ता का फैसला करने में निर्णायक भूमिका अदा करने वाली पांच जातियों के प्रत्याशियों पर विशेष फोकस किया गया है। सियासी जानकारों के मुताबिक भाजपा की ओर से जाट, गुर्जर, राजपूत, आदिवासी और दलित जातियों से जुड़े 132 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे गए हैं जबकि कांग्रेस ने इन जातियों के 131 प्रत्याशियों को चुनावी अखाड़े में उतारा है।

मतदान से पहले विभिन्न चुनाव क्षेत्रों में जातीय मठाधीशों को साधने के लिए बंद कमरों में बैठकों का दौर जारी है। ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों में से कौन सा दल जातीय समीकरण साधने में कामयाब होता है। वैसे इतना तो तय है कि जातीय समीकरण साधने वाले दल को ही जयपुर का राजसिंहासन हासिल होने वाला है। दोनों दलों के बीच कांटे की लड़ाई में सियासी जानकार भी भविष्यवाणी करने से परहेज कर रहे हैं।

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