Rajasthan: मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर बढ़ी अटकलें, कांग्रेस से सचिन और भाजपा से वसुंधरा को माना जा रहा तय

Rajasthan Assembly Election 2023: राजस्थान में दिसम्बर 2023 में चुनाव होना तय माना जा रहा है। कांग्रेस के साथ साथ भाजपा भी गुटबाजी के आरोपों से बची नहीं है। कांग्रेस में गहलोत – पायलट तो भाजपा में पुनिया – राजे के गुट के बारे में सभी जगह चर्चा है।

Written By :  Bodhayan Sharma
Update: 2022-12-28 12:07 GMT

Rajasthan Assembly Election 2023

Rajasthan Assembly Election 2023: राजस्थान में दिसम्बर 2023 में चुनाव होना तय माना जा रहा है। चुनाव से पहले सभी राजनैतिक दल अपनी अपनी तैयारियां कर रहे हैं। पर जनता के मन में दोनों ही बड़े दलों को लेकर एक ही सवाल खड़ा हो रहा है कि मुख्यमंत्री की रेस में कौन जीतेगा। कांग्रेस के साथ साथ भाजपा भी गुटबाजी के आरोपों से बची नहीं है। कांग्रेस में गहलोत-पायलट तो भाजपा में पुनिया-राजे के गुट के बारे में सभी जगह चर्चा है।

राजस्थान में सियासत अपने सारे रंग दिखा रही है। फिर सियासत का भारत जोड़ो यात्रा वाला रंग हो या जन आक्रोश वाला। इसके साथ ही लगातार आ रहे बयान भी इन सब में नई चर्चाओं को जन्म दे रहे हैं। सौ बात की एक बात, राजस्थान में अभी सबसे बड़ी लड़ाई है वर्चस्व की। फिर वो चाहे भारतीय जनता पार्टी हो या कांग्रेस हो। कांग्रेस के पिछले 4 सालों की राजस्थान सरकार के सारे काण्ड देखे या गिने जाएं तो कम नहीं होंगे। वहीं भाजपा में भी ऐसे ही विवाद रोज खड़े होते जा रहे हैं।

भाजपा में किसका होगा राजतिलक?

राजस्थान में भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री पद की दावेदारी देखी जाए, तो मोटे तौर पर कुछ बड़े नाम सामने आते हैं। जिनमें सबसे बड़ा नाम है राजस्थान की सत्ता का अनुभव लिए पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का। वसुंधरा राजे के नाम से आम जनता सहमत नज़र आती है। जब भाजपा की वसुंधरा राजे सरकार राजस्थान में थी, तब 3 जुमले राजस्थान में मशहूर हुए थे। पहला जुमला जो राजे सरकार को सकारात्मक लाभ देता नज़र आया, वो था "राजस्थान में सुशासन और राम राज्य"। इस जुमले से भाजपा की छवि काफी हद तक साफ़ हो गयी थी। दूसरा जुमला था, "नो सीएम आफ्टर एट पीएम", इस जुमले ने वसुंधरा की छवि को काफी नुकसान पहुँचाया था। इससे सीधे सीधे वसुंधरा की व्यक्तिगत जीवन शैली पर तंज कसा जाता था। इसके बाद आया 2018 का चुनावी दौर, इस दौर में राजस्थान की जनता का दिया ये जुमला राष्ट्रीय स्तर पर मशहूर हुआ था, वो जुमला था, "भाजपा तुझसे बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं"। इस जुमले ने वसुंधरा के प्रति जनता की मनसा को साफ़ किया था और शायद जनता ने वैसा कर के भी दिखाया।

वसुंधरा नहीं तो कौन?

इतना सब होने के बाद भी भाजपा में वसुंधरा का नाम कायम है और कायम भी ऐसा की राजस्थान की आम जनता को पहला नाम वसुंधरा राजे ही सूझता है। इसके अलावा एक नाम है भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पुनिया का। जो (सक्रीय ) राजनेता की छवि पूरे राजस्थान में बनाने में कामयाब नज़र आ रहे हैं। राजनैतिक हलकों में इनके नाम पर भी जोरदार चर्चा चल रही है। फिर नाम आता है, जन नेता की छवि वाले ओम माथुर का। ओम माथुर के लिए कहा जाता है कि वसुंधरा का नाम बाद में मुख्यमंत्री के लिए सामने आया था, नहीं तो 2018 से पहले वाली भाजपा की बागडोर पहले ओम माथुर को ही सौंपी जानी थी। इसके बाद नाम आता है, केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत का। इस नाम की वजह सीधे तौर पर केंद्र सरकार से शेखावत का सीधा सम्पर्क देखा जा रहा है। अभी पिछले कुछ समय से शेखावत राजस्थान में एक्टिव भी नज़र आ रहे हैं। एक और नाम पर बातचीत होती है। जो नाम है लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का। इस नाम को भी इस फेहरिश्त से बाहर तो नहीं देखा जा सकता।

अब बात कांग्रेस की

कांग्रेस में 2018 की राजस्थानी चुनावी जीत के बाद से ही दो नाम दिखाई दिए। पहला अशोक गहलोत का और दूसरा सचिन पायलट का। उस समय भी इन दोनों में से "मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए", का सवाल कांग्रेस आलाकमान के गले की हड्डी बन गया था। पर आलाकमान ने दोनों को राजी किया और गहलोत को सत्ता प्रमुख बना कर राजस्थान में उतारा और वहीं सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री का पद दे दिया। इसके बाद सचिन पायलट ने आरोप लगाए कि सरकार में उनकी चलने नहीं दी जा रही है। जिसके विरोध में अपने 18 विधायकों समेत सचिन नाराज़ हो कर या ऐसा कहें कि गहलोत सरकार से बाग़ी हो कर मानेसर के एक रिसोर्ट में जा कर बैठ गए थे। जिसके बाद आलाकमान के दखल के बाद वो लौटे। पर जब वो वापिस आए तो उनसे उनके सारे अधिकार और सारे पद छीन लिए थे। उनके साथ के विधायकों को भी अपने अधिकारों से हाथ धोना पड़ा था।

"गद्दार और मक्कार" बनेगा राजस्थान का मुख्यमंत्री?

सचिन पायलट की लोकप्रियता का एक बड़ा उदाहरण इस बार देखा गया। जब राजस्थान में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा आई थी, तब सचिन पायलट को लेकर लोगों में दीवानगी देखी गयी। ये आलाकमान के नाम एक सन्देश की तरह ही देखा जा रहा है। सचिन पायलट के बैनर, उनके नाम के नारे, उनसे मिलने आई जनता, उनकी हर बात में बात नज़र आ रही थी। जनता ने भरपूर समर्थन सचिन पायलेट पर न्यौछावर किया। अब आलाकमान को इस बारे में सोचने पर मजबूर होना होगा, कि अगर राजस्थान में कांग्रेस अपनी सरकार दोहराना चाहती है तो उसे ये जोखिम तो उठाना पड़ सकता है। गहलोत भी अपने हिस्से की पूरी लड़ाई लड़ रहे हैं और उनका साथ दे रहे हैं वो विधायक जिन्होंने 25 सितम्बर को अपने इस्तीफे, सी पी जोशी को सौंप कर सीधे आलाकमान से बगावत कर दी और अपनी पूरी वफादारी गहलोत के लिए दिखाई। 91 विधायकों का इस्तीफा मायने रखता है। अगर इनके 50 प्रतिशत विधायकों के क्षेत्र में जनता ने इन्हीं विधायकों का साथ दिया तो कांग्रेस सत्ता में गहलोत का पद फिर ऊँचा हो जाएगा।

सबका दाता "आलाकमान"

अभी किसी भी दल के किसी भी नेता से सवाल पूछा जाता है तो एक ही जवाब आता है। वो जवाब है "इस बात का फैसला दिल्ली में बैठी आलाकमान करेगी।" इस बात से ना तो जनता का दिल मान रहा है और ना ही मीडिया का। जनता को सीधा सटीक नाम चाहिए। फिर वो दल चाहे कांग्रेस हो या भाजपा। जनता को भी अपना मन बनाने के लिए, अपना मत बनाने के लिए समय लगेगा। अब वैसे भी चुनाव में एक साल का समय भी नहीं बचा है आचार संहिता लगने में अब 10 महीने का समय भी शेष नहीं रहा है। राजस्थान में अगले साल दिसम्बर में चुनाव होने हैं। इससे पहले आचार संहिता अक्टूबर में लगने की सम्भावना जताई जा रही है। ऐसे में राजनैतिक पार्टियों और जनता के पास मात्र 10 महीने का समय ही बचा है। ये सुनिश्चित करने का, कि राजस्थान के भविष्य के नाम पर अपना वोट पार्टी को देना है या व्यक्ति विशेष को. पार्टी और व्यक्ति विशेष में चुनना पड़े तो वो भी कौन होगा ये अभी का सबसे बड़ा सवाल नेताओं के दिल में भी है, उनके समर्थकों के दिल में भी, पार्टी के कार्यकर्ताओं के ज़हन में भी और आम जनता तो इसका जवाब ढूढने में लगी ही हुई है।

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