राहुल गांधी-अशोक गहलोत-सचिन पायलट की प्राइवेट मन्त्रणा, क्या हैं इसके मायने?

Sachin Pilot vs Ashok Gehlot: भारत जोड़ो यात्रा की मालाखेडा, अलवर में राजस्थान की आखिर सभा में कांग्रेस के लगभग सभी दिग्गज नेताओं ने यात्रा की सफलता, राजस्थान में कांग्रेस की उपलब्धियां और भाजपा की कमियां खूब गिनाई। इस सभा के समापन के बाद हुई बंद कमरे में राहुल गांधी – अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चर्चा।

Written By :  Bodhayan Sharma
Update:2022-12-20 19:00 IST

Sachin Pilot vs Ashok Gehlot

Sachin Pilot vs Ashok Gehlot:अलवर के मालाखेडा में विशाल जनसभा को संबोधित करने के बाद सभा का समापन किया गया। उसके बाद राहुल गांधी समेत सभी नेताओं और यात्रियों को विश्राम टैंटों का रुख करना था। यात्री तो धीरे धीरे टैंटों में चले गये। पर राहुल गांधी के साथ अशोक गहलोत और सचिन पायलट अलवर के सर्किट हाउस की तरफ निकल पड़े। पायलट और गहलोत की आपसी लड़ाई न जाने कितनी ही बार जनता के सामने आई। ये लड़ाई चुनाव से पहले शुरू हुई और उसके बाद मुख्यमंत्री पद के लिए विवादों में, पायलट का विधायकों साथ बागी हो जाने में, गहलोत और पायलट के मीडिया में आए बयानों में साफ़ झलकता आ रहा है। गहलोत पायलट ही नहीं बल्कि इनके अपने अपने खेमों में बंटे विधायक और नेता भी आपसी टकराव में कोई कमी नहीं छोड़ते हैं। राहुल गांधी की इस मन्त्रणा का मकसद इसी मनमुटाव को मिटाने का माना जा रहा है।

गहलोत-पायलट विवाद क्या है?

विवाद को सीधा सीधा कहा जाए तो वर्चस्व की लड़ाई का नाम दे सकते हैं। परन्तु ये लड़ाई बड़ी तब हो जाती है जब इसमें आम जनता की भी भावनाएं शामिल हो जाती है। राजस्थान विधानसभा चुनाव 2018 में चुनाव से पहले कांग्रेस ने जनता को एक बड़े असमंजस में रखा। वो असमंजस था मुख्यमंत्री पद के दावेदार के नाम की घोषणा ना करना। इस वजह से सचिन पायलट को मुख्यमंत्री मानने वाले वोटरों ने भी इस उम्मीद में कान्ग्रेस को वोट दिए कि अबकी बार उनका चहेता नेता सूबे का मुख्यमंत्री बनेगा। ये लड़ाई तब और प्रचलित हुई जब कांग्रेस चुनाव तो जीत गयी पर बहुत दिनों तक इस बात का निर्णय दोनों ही नहीं कर पाए कि राज्य को कौन संभालेगा। फिर इस बात का निपटारा करने के लिए दोनों ही आलाकमान के पास दिल्ली पहुंचे। जब दोनों दावेदार दिल्ली में थे तब राजस्थान की जनता कहीं उग्र होती दिखाई दी तो कहीं सचिन पायलट के पक्ष में प्रार्थना करती।

आलाकमान के फैंसले के अनुसार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को बनाया गया। इसके बाद भी विवाद नहीं थमा, सचिन पायलट को साइड लाइन करने की ख़बरों का लगातार आना और सरकार में उनके प्रस्तावों को ना सुनना शामिल रहा। पायलट ने एक बयान में कहा भी कि सरकार में उनके आदेशों की अवहेलना हो रही है। उपमुख्यमंत्री का पद सिर्फ नाम का रह गया है। फिर सचिन पायलट अपने खेमे के विधायकों के साथ एक रिसोर्ट में चले गए और बाग़ी कहलाए। इस काण्ड से उनके दोनों पद छीन लिए गए, जिसमें एक पद उनका प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष का था और दूसरा उपमुख्यमंत्री का। उसके बाद से दोनों खेमों के नेताओं ने खूब खरी खोटी कही और सुनी। पायलट राजस्थान सरकार के गद्दार कहलाए, तो वहीँ 25 सितम्बर को जयपुर में हुए विधायकों के विरोध को गहलोत प्रायोजित बता कर गहलोत को आलाकमान से बाग़ी कहा गया।

केन्द्रीय कांग्रेस का रुख अभी तक नहीं समझ रहा

राजस्थान प्रदेश कांग्रेस में जब भी कोई बवाल होता है तो दोनों खेमों के नेताओं के साथ साथ आम जनता भी आलाकमान के पक्ष को सुनने के लिए इंतज़ार करती है। पर अभी तक स्पष्ट रूप से किसी का कोई बयान नहीं आया है। अभी तक के सारे प्रयास दोनों के बीच सुलह करवाने के ही होते दिखाई दिए हैं। आपसी तकरार आगामी चुनावों के लिए कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी के तौर पर देखी जा रही है। राहुल गांधी भी इस तकरार को मिटाने की मनसा से ही मिलते दिखाई दिए। इस बंद कमरे की मीटिंग में भी इसी कर्म में एक और कोशिश की तरह देखा जा सकता है।

गहलोत ने बयानों में सीमाएं लांघी-पायलट के जवाब में दिखा हमेशा संयम

पायलट के लिए कई बार अशोक गहलोत के मीडिया में आए बयानों का निचोड़ देखा जाए तो आरोपों के साथ साथ कई तमगे भी गहलोत ने पायलट को दिए हैं। "पायलट पर नाकारा हैं, निकम्मे हैं, अनुभव नहीं है फिर भी पद के लिए लड़ाई कर रहे हैं। गद्दारों के लिए सरकार में कोई जगह नहीं है। पायलट गद्दार है, वो भाजपा के सम्पर्क में थे, जिसके सुबूत भी मेरे पास है, पैसे ले कर वो मानेसर के रिसोर्ट में विधायकों के साथ गए थे, बिकाऊ विधायकों का साथ है" ये सारे बयान अशोक गहलोत के हैं जो उन्होंने मीडिया को दिए या किसी न किसी सभा में कहे।

जब इन बयानों की प्रतिक्रिया सचिन पायलट से ली गयी तब पायलट ने समय की गंभीरता को देखते हुए बस इतना ही कहा, "ऐसे तो गहलोत साहब ने मेरे बारे में काफी कुछ कहा है, मुझे नाकारा, निकम्मा तक कहा है पर मैं उनके बयानों को अलग तरह से नहीं लेटा हूँ, वो अनुभवी नेता हैं, मेरे पिता सम्मान हैं, बस इतना ही कहूँगा अभी पूरा ध्यान सरकार को रिपीट करने में लगाना है, इन बयानों में नहीं फसना है। जो भी होगा उसका निर्णय आलाकमान के हाथ में है और मैं उन निर्णयों को मानूंगा।"

पहले के सी वेणुगोपाल और अब राहुल

कुछ ही दिन पहले कांग्रेस के बड़े नेता केसी वेणुगोपाल भी राजस्थान आ कर दोनों के बीच सुलह का प्रयास कर के गए थे। ये सुलह का प्रयास राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के राजस्थान में प्रवेश से ठीक पहले किया गया था और यात्रा के राजस्थान में निर्विरोध और शांति को ध्यान में रखते हुए किया था। हालाँकि उसके बाद से दोनों में से किसी का कोई बयान विवादों को हवा देने वाला नहीं आया और ना ही दोनों के खेमों में बहुत ज्यादा हलचल देखने को मिली। पर पूरी यात्रा में सचिन पायलट के समर्थकों के नारे सुन कर राहुल भी राजनीति के बिगड़ते मौसम को भांप गए होंगे। इसी लिए भारत जोड़ो यात्रा के राजस्थान में अंतिम चरण में आने के समय या ऐसा कहें कि राहुल गाँधी के राजस्थान छोड़ने से पहले इस मीटिंग का होना जरुरी था। जिससे आलाकमान को फैंसला करने में थोड़ी स्पष्टता आए। 21 को यात्रा राजस्थान की सीमा से बाहर हो जाएगी। इससे पहले दोनों ही खेमों में उम्मीद और असमंजस बने के बदल छाए रहेंगे।

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