Anokhi Kahaniya: हिंदी का पुत्र हूं, असमिया मौसी के घर आया हूं
Anokhi Kahaniya: मैंने कहा कि पानी मेरे पास है, सिर्फ इसलिए खरीदूंगा कि आपके बोतल पर असमिया में नाम छपा है।
पर्वतों से आज मैं टकरा गया
तुमने दी आवाज लो आ गया।
असमिया में लिखा है इसलिए खरीद रहा हूं....
मौसी के घर आया हूं और हिंदी का बेटा हूं।
आसाम की पहाड़ी तलहटी के मध्य कोई रेलवे स्टेशन था। रेल बिना घोषित ठहराव के ठहर गई। सुहानी सुबह के पांच बच रहे होंगे। रेल से उतर कर कमर सीधा करने की सोची। एक पानी बेचने वाले पर नजर पड़ी। बोतल का नाम असमिया में लिखा दिखा। भारतीय भाषाओं और स्वदेशी अवधारणा को सशक्त करने का संकल्प सागर की तरह मन में हिलोरित होने लगा। मैंने एक बोतल पानी मांगा और बोतल पर छपा नाम पढ़ने लगा। मुझे पढ़ते व हिचक में देख कर पानी वाले चचा ने कहा कि यहां यही पानी मिलेगा। मैंने कहा कि पानी मेरे पास है, सिर्फ इसलिए खरीदूंगा कि आपके बोतल पर असमिया में नाम छपा है। हमें अपनी भाषा व संस्कृति को मजबूत करना चाहिए।
हिंदी का पुत्र
उसने कहा कि पानीवाला- पर आपकी भाषा हिंदी है, नहीं, केवल हिंदी नहीं, असमिया भी है, हां हिंदी अधिक आती है। मेरे प्रत्युत्तर के कुछ सोचने के बाद बोला - इस सोच व तर्क के आप पहले खरीददार हैं, 20 में 2 ले जाइए। मैंने उससे बीस रुपये वापस ले कर 50 रुपए दिए। मैंने उसे बताया कि मौसी के घर जा रहा हूँ, मतलब हिंदी का पुत्र हूँ असमिया मौसी के घर आया हूं। जब ट्रेन चलने लगी तो दौड़ कर डब्बे पर चढ़ गया वो बूढ़ा पैसे वापस करने के लिए दौड़ा पर...... हम और ट्रेन दोनों शीघ्र ही हवा से बात करने लगे।