Poem in Hindi: चिठ्ठी, पाती अब नहीं आती
Poem in Hindi: कितना कुछ सिमट जाता था एक सफेद से कागज में, जिसे नवयौवना भाग कर सीने से लगाती, और अकेले में आंखों से आंसू बहाती।
चिठ्ठी, पाती अब नहीं आती
Social Media: खो गयी वो......चिट्ठियां
जिसमें लिखने के सलीके छुपे होते थे
कुशलता की कामना से शुरू होते थे
बडों के चरण स्पर्श पर खत्म होते थे।
और बीच में लिखी होती थी जिंदगी...
नन्हें के आने की खबर
माँ की तबियत का दर्द
और पैसे भेजने का अनुनय
फसलों के खराब होने की वजह।
कितना कुछ सिमट जाता था एक सफेद से कागज में
जिसे नवयौवना भाग कर सीने से लगाती
और अकेले में आंखों से आंसू बहाती।
माँ की आस थी पिता का संबल थी
बच्चों का भविष्य थी और
गाँव का गौरव थी ये चिठ्ठियां।
डाकिया चिठ्ठी लायेगा कोई बाँच कर सुनायेगा
देख देख चिठ्ठी को कई कई बार छू कर चिठ्ठी को
अनपढ़ भी एहसासों को पढ़ लेते थे।
अब तो स्क्रीन पर अंगूठा दौड़ता है,
और अक्सर ही दिल तोड़ता है
मोबाइल का स्पेस भर जाए तो
सब कुछ दो मिनट में डिलीट होता है।
सब कुछ सिमट गया है 6 इंच में
जैसे मकान सिमट गए फ्लैटों में
जज्बात सिमट गए मैसेजों में
चूल्हे सिमट गए गैसों में
और इंसान सिमट गए पैसों में।
(पहाड़ का सच से साभार)
दीपक चमोली