Scene After Death: दृश्य, मृत्यु के बाद का-इस कविता को पढ़ जान जाएंगे सारा रहस्य

Scene After Death: मृत्यु के बाद अपने परिजनों को रोता-बिलखता देख आत्मा को दुःख होता है। लेकिन अगले पल पता चलता है कि उसकी कोई सुन नहीं रहा है।

Written By :  Kunjlata
Published By :  Shashi kant gautam
Update:2022-05-18 17:05 IST

 दृश्य, मृत्यु के बाद का: Photo - Social Media

Scene After Death: मृत्यु के बाद अपने परिजनों को रोता-बिलखता देख आत्मा को दुःख होता है। लेकिन अगले पल जब उसकी कोई सुन नहीं रहा है, हर व्यक्ति केवल अपना सिर धुन रहा है तब उसको पता चलता है कि उसको शरीर छोड़ने का कोई दुःख नहीं है, अब दूसरा शरीर धारण करना होगा। आत्मा अपने अगले सफर के लिए निकल पड़ती है।


मैंने देखा, मैं बिस्तर पर

बीमार पड़ी हूँ

रात के करघे पर कोई स्वप्न

बुन रही हूँ।।


चाँद धीरे से उतर कर

मेरे सिरहाने आ खड़ा हुआ

तभी चाँद को तपता देख

मुझे अचरज बड़ा हुआ।।

मेरा शरीर पिघलने लगा

किंतु यह क्या? मेरी स्थूल काया से

कुछ निकलने लगा

ये मेरी सूक्ष्म काया थी

जो मुझसे दूर खड़ी थी।।

अपनी देह की पीड़ा का

मुझे कुछ आभास नहीं था

चारों ओर शांति थी

पीड़ा का कहीं वास नहीं था।।

मैं पंख सी हल्की

हवा में तैर रही थी

अपने ही लोगों को बिलखता देख रही थी

सोच रही थी ये क्या हो रहा है?

सारा घर इस प्रकार क्यों रो रहा है?

मैं तो खुश हूँ, कोई पीड़ा नहीं है

ये जग छोड़ने का भी दुःख जरा नहीं है

मैंने कहा, ये जग छोड़कर जाना ही होगा

अब तो मेरा कोई दूसरा ही ठिकाना होगा।।

किंतु मुझे कोई नहीं सुन रहा

हर व्यक्ति केवल अपना सिर धुन रहा

अब मेरी व्याकुलता बढ़ रही है

तब तक देखा मेरी नींद खुल गई है।।

चारों ओर सन्नाटा है

न चाँद है, न परिवार है

केवल रात का करघा घूम रहा है।।

समय चक्र भी यूं ही चलता है

मृत्यु सत्य है, यही कहता है

तो सत्य को पहचान कर भय कैसा?

मृत्यु का स्वागत करो डर कैसा?


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दीपदान

मन के भीतर द्वेष की कलुषता

फिर हज़ार दीप जलायें भी तो क्या?

दीन दु:खी के दु:ख को न समझा

दीप से दीप जलायें भी तो क्या?

ऊँच नीच का भेद न मिटाया

उजाला दीपों का फैलाया भी तो क्या?

रिश्तों की गरिमा न पाली

दीये की गरिमा किस काम की?

प्रीत की सरिता न बहा सकी मन से

प्रकाश की नदियाँ बहाई तो क्या ?

हृदय में बसे प्रभु को न पहचाना

फिर दीपदान किया भी तो क्या?

- कुंजलता

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आस्था

ईश्वर प्रत्येक मन में बसता है,

हर पल मानव के अंग संग रहता है,

उसकी हँसी, उसके दु:ख,

ईश्वर स्वयं भी साथ साथ सहता है।

वही तो बल देता है दु:ख सहने का

मानव में कहाँ शक्ति है इतनी?

सब पूछते हैं कहाँ हैं भगवान?

हमारी पीड़ा क्यों नहीं हरते?

पीड़ा सहना हमारा प्रारब्ध है,

ईश्वर पीड़ा सहने की शक्ति हैं,

क्या सामर्थ्य है, हममें कुछ,

भी कर जाने की?

हमारी श्वांस तक तो उन्हीं की देन है,

मैंने तो सुना है ईश्वर की,

हँसी को, और उसके रूदन को,

मैने आभास किया है,

उनकी उपस्थिति का,

वही प्रमाण हैं मेरी।।

प्रत्येक सफलता व नियति का,

कठिन से कठिन राह,

वही हाथ पकड़ पार लगाते हैं,

मैं जब भी रोई, मैंने

उनका भी रूदन सुना है,

जब मैं खुश होती हूँ,

वह भी मेरे संग मुस्काते हैं।।

-कुंजलता

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नारी

नारी, तूं क्यों इतनी अलबेली है?

मायके- ससुराल से भरी, फिर भी अकेली है,

कहाँ से लाती है इतना साहस ?

हर कठिनाई को हंस कर झेलती है?

कैसे रख पाती है तू जीवन में ,

ढेर सारे रिश्तों का हिसाब?

झंझावातों से तू जूझती अकेली है

नारी तू क्यों इतनी अलबेली है?

घर को सँभालती, संताप सहती है,

कहाँ छुपा रखा है, इतना अभिमान ?

कि सह जाती है जीवन भर अपमान,

कहाँ रख छोड़ा है, इतना स्वाभिमान?

कैसे घर की ख़ुशियाँ सकेली हैं?

नारी तू कितनी अलबेली है?

- कुंजलता

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