कोरोना घर मे पिया आराम करीं

Update: 2020-03-28 15:29 GMT

(हास्य रचना )

लाख बोलावे केहू, न जाईं,

कहीं सुबह ना, शाम करीं!

आइल बा, ई कूफुति,कोरोना,

घर में पिया,आराम करीं!

ऊठीं ना अब,भोर भइल,

बोलीं हम चाय बनाई!

जबले मुह हम धोवत बानी,

चूल्हा, आप जराईं!

दासा पर पत्ती बा अउरी,

सिकहर पर बा दूध!

चीनी डारिके,अंवटी बालम,

पिअल जांय "द्विइ घूट"!

अब्बे छोटकी, जाग-जाई ते,

नाहक जिया हराम करीं!

आइल बा, इ कूफुति,कोरोना,

घर में पिया,आराम करीं!

जाने काहें मन बनल बा,

रहीं रउआँ साथे!

चलीं न दू गो कपड़ा बाटे,

फिंचि लीं हाथे-हाथे!

आईं तब निश्चिंत हो बइठीं,

खाना हम पकाइब!

मन करी ते,सबजी काटिके,

चउका में, ले आइब!

समय बा सगरी, सीखि लीं मुरहा,

जाने कहिया, काम करी!

आइल बा, इ कूफुति,कोरोना,

घर में पिया,आराम करीं!

दुअरा ग्वाला टेर लगावें,

"दे-दीं" हमके, बल्टी!

गाड़ी आइल, कूड़ा उठाईं,

कइले आईं पल्टी!

देखब बड़का, "रोअत बा,

तनि जाईं ना, सहला दीं!

मन करे ते, कलिहें नियर,

लइकन के, नहला दीं!

सारा सेवा लाल, भरी मोर,

पढिके जहिया नाम करी!

आइल बा, इ कूफुति,कोरोना,

घर में पिया,आराम करीं!

लाईं दियना, हम 'जरा-दी',

भइल सांझ के, बारी;

सारा दिन करते रहि गइलीं,

मूड़ भइल-बा, भारी!

काटीं सब्जी, "हम खाना बनाईं",

दे-दीं, हमके लवना,

पानी लेके, आइब हम,

तनि जाईं करीं बिछौना!

अरे बड़ी जोर से, डांर पिराला,

पकड़ीं बन्हिया, बाम धरीं,

आइल बा, इ कूफुति, कोरोना,

घर में पिया,आराम करीं!

रचनाकार: आलोक शर्मा महराजगंज, उत्तरप्रदेश

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