मनोज तिवारी की सियासी लॉन्चिंग, गोरखपुर से ऐसे हुई शुरुआत
मनोज तिवारी के उभार की पटकथा गोरखपुर में ही लिखी गई है। दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष पद से अचानक हटाये जाने के बाद पूर्वांचल के सियासी गलियारे से लेकर सोशल मीडिया पर मनोज तिवारी को लेकर खूब प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।
गोरखपुर से पूर्णिमा श्रीवास्तव
गोरखपुर: भोजपुरी गायकी, फिल्मी सफर या फिर राजनीति। तीनोंं ही क्षेत्रों में भाजपा सांसद मनोज तिवारी को पहचान गोरखपुर में ही मिली। यूं कहें कि मनोज तिवारी के उभार की पटकथा गोरखपुर में ही लिखी गई है। दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष पद से अचानक हटाये जाने के बाद पूर्वांचल के सियासी गलियारे से लेकर सोशल मीडिया पर मनोज तिवारी को लेकर खूब प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।
दुर्गा पूजा में जागरण में मनोज तिवारी गाते थे भजन
भाजपा से जुड़े लोग तो संगठन का निर्णय की बात कहते हुए कन्नी काट ले रहे हैं, लेकिन विरोधी दलों के नेता पुराने अनुभवों के आधार पर घेरते दिख रहे हैं। नब्बे के दशक में गोरखपुर के लोगों ने मनोज तिवारी को दुर्गा पूजा में जागरण में गाते सुना है। वहीं उनकी कई हिट फिल्मों की शूटिंग भी गोरखपुर में हुई है।
मनोज तिवारी की सियासी लांचिंग भी गोरखपुर से
उनकी सियासी लांचिंग भी गोरखपुर में ही हुई। वर्ष 2009 में मनोज तिवारी वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ा था। जनसभाओं में जुटने वाली भीड़ को आधार मानकर वह खुद को सांसद ही मान बैठे थे। चुनाव परिणाम आया तो योगी आदित्यनाथ सांसद बने। दूसरे स्थान पर बाहुबली पंडित हरिशंकर तिवारी के पुत्र विनय शंकर तिवारी दूसरे नंबर पर तो वहीं मनोज तिवारी को तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा।
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भोजपुरी फिल्मों में बुलंदियां, लेकिन राजनीति में पिछलग्गू की भूमिका
मनोज तिवारी गायकी और भोजपुरी फिल्मों में भले ही बुलंदियों पर पहुंचे लेकिन राजनीति में वह पिछलग्गू की ही भूमिका में रहे। उन्हें संघर्ष के दिनों के गवाह वरिष्ठ पत्रकार अरविन्द राय कहते हैं कि मनोज तिवारी दूसरे की तैयार पिच पर ही सियासी बैटिंग करते रहे।
अमर सिंह से करीबी रिश्ते के चलते मिला लोकसभा चुनाव में टिकट
गोरखपुर में अमर सिंह से करीबी रिश्ते के चलते उन्हें लोकसभा चुनाव में टिकट मिला। तब वह एक पत्रकार से फिल्म सिटी के सवाल पर भिड़ गए थे। उन्होंने दावा किया था कि वह चुनाव में जीतें या हारे फिल्मसिटी उनकी प्राथमिकता होगी। वर्तमान में उनकी ही पार्टी के रविकिशन सांसद हैं, लेकिन फिल्म सिटी की बात उन्हें याद भी नहीं है।
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मनोज तिवारी की सियासी हैसियत दिल्ली चुनाव में पता चली
लोकसभा चुनाव में उनके साथ रहे तत्कालीन सपा महानगर अध्यक्ष जियाउल इस्लाम का कहते हैं कि महत्वाकांक्षी होना ठीक है, लेकिन शार्टकट से राजनीति में मंजिल पाने वालों का ऐसा ही हश्र होता है। सुबह देर से उठना, जनता से झूठे वायदे करना मनोज तिवारी की आदत रही है। पार्टी के नाम पर लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सात सीटें जीतने वाले मनोज तिवारी की सियासी हैसियत दिल्ली चुनाव में पता चल गई।
गोरखनाथ मंदिर में मनोज तिवारी की फिल्म 'ससुरा बड़ा पइसा वाला' की हुई शूटिंग
वरिष्ठ पत्रकार अरविन्द राय कहते हैं कि गायकी और राजनीति में काफी अंतर होता है। मनोज इस अंतर को पाटने में कामयाब नहीं हुए। जिससे उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी गंवानी पड़ी। मनोज तिवारी के साथ गायकी का मंच साझा करने वाले लोकगायक राकेश श्रीवास्तव का कहना है कि गोरखनाथ मंदिर में ही मनोज तिवारी की सुपर हिट फिल्म 'ससुरा बड़ा पइसा वाला' की शूटिंग हुई थी। गोरखपुर से गायकी परवान चढ़ी। सियासत की पहली परीक्षा उन्होंने गोरखपुर में दी। लेकिन उन्हें जिनती बड़ी जिम्मेदारी मिली उसे बखूबी संभाल नहीं सके।
गायकी, अभिनय और सियासत में काफी अंतर
सीमेंट कारोबारी अनुपम मिश्रा कहते हैं कि असुरन में दुर्गा पूजा समिति द्वारा मनोज तिवारी को बुलाया गया था। वैसी भीड़ अभी तक नहीं देखी। लेकिन दिल्ली की सियायत में उनकी नासमझी को लेकर साफ हो गया कि गायकी, अभिनय और सियासत में काफी अंतर होता है। व्यंग्यकार शैलेश त्रिपाठी ने फेसबुक पोस्ट लिखा कि 'चट्ट देनी मार दिहलें खींच के तमाचा।' उनका इशारा राजनीतिक के खिलाड़ियों को अच्छी तरह समझ में आ रहा है।
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