Hamirpur News: महाभारत काल से जुड़ा है महादेव श्री शैल्लेश्वर मन्दिर का इतिहास

Hamirpur News: चंदेलकालीन इस शिव मंदिर के गर्त में तमाम ऐतिहासिक रहस्य समाए हुए हैं। मंदिर के मुख्य द्वार पर शिलालेख लगा है जिसे आज तक कोई पढ़ नहीं सका है। शिव मंदिर का रख-रखाव समिति करती है।;

Report :  Ravindra Singh
Update:2025-02-18 18:56 IST

महाभारत काल से जुड़ा है महादेव श्री शैल्लेश्वर मन्दिर का इतिहास (Photo- Social Media)

Hamirpur News: सरीला के शल्लेश्वर मंदिर का भव्य शिवलिंग, भक्तों की अटूट आस्था महाशिवरात्रि में भव्य शिव बरात निकाली जाती है। हमीरपुर जिले से 60 किलो मीटर दूर सरीला कस्बे के बीचो बीच बने प्राचीन चन्देल कालीन शिव जी का शल्लेश्वर मंदिर आस्था व श्रद्धा का केंद्र है। चंदेलकालीन इस शिव मंदिर के गर्त में तमाम ऐतिहासिक रहस्य समाए हुए हैं। मंदिर के मुख्य द्वार पर शिलालेख लगा है जिसे आज तक कोई पढ़ नहीं सका है। शिव मंदिर का रख-रखाव समिति करती है। शिवरात्रि पर भव्य शिव बारात का आयोजन होता है।

हमीरपुर कस्बे के मध्य ऊंचाई वाले इलाके में बना प्राचीन शिवालय शल्लेश्वर मंदिर का निर्माण व इतिहास आज तक उजागर नहीं हो सका है। चंदेलकालीन मंदिर व मठों की तर्ज पर पत्थर के शिलापटों से बने इस मंदिर को भी चंदेलकालीन माना जाता है। मंदिर के गर्भ में भारी भरकम शिवलिंग स्थापित है। इस मंदिर के बारे में यह भी किदवंती कही जाती है कि कस्बा प्राचीन काल में राजा शल्य की राजधानी रहा है। ऊंचाई वाले व मध्य क्षेत्र में यह मंदिर होने से लोग इसे राजा शल्य के महल का मंदिर भी बताते हैं।


प्रत्येक शिवरात्रि के दिन शिवलिंग एक चावल बढ़ता है

मन्दिर में समिति व दूरदराज से आने वाले शिव भक्तों का यह भी दावा है कि मंदिर का शिवलिंग हर वर्ष एक चावल जितना लंबा व मोटा हो रहा है। इसकी प्रमाणिकता शिवरात्रि पर की जाती है। शिवरात्रि के मौके पर होने वाले शिव विवाह में शिवलिंग पर चढ़ने वाला जनेऊ हर वर्ष छोटा पड़ जाता है। मंदिर का रख-रखाव करने वाली श्री शल्लेश्वर मंदिर समिति ने इस मंदिर का नए लुक में भव्य निर्माण करा दिया है और अनवरत निर्माण कार्य जारी रहता है। शिवरात्रि के समय यहां शिव बारात का आयोजन करीब 52 वर्षों से होता चला आ रहा है।

इसका आयोजन हर वर्ष बढ़ रहा है। साल भर यहां पूजा अर्चन व मनौती मांगने वालों का तांता लगा रहता है। सावन के महीने में दूर दराज से कवारियां यहां आकर जलाभिषेक करते हैं। पूरे वर्ष हर सोमवार को यहां कीर्तनों का आयोजन होता है।

श्रावण मास के प्रत्येक सोमवर को जलाभिषेक करने बालो शिव भक्त लाखो की संख्या में आते है और प्रत्येक सोमवार को पार्थिव शिवलिंगो का आयोजन किया जाता है। भीड़ को देखते हुए प्रशाशन द्वारा पुख्ता इंतजाम के साथ 2 सीसी टीवी कैमरे से भी नजर रख्खी जाती है।


मंदिर के गर्भ से जुड़ा कुआं

ब्लाक रोड पर मंदिर से करीब एक किमी दूर एक प्राचीन कुआं है। जिसे शल्लऊ कुआं कहा जाता है। शल्लेश्वर मंदिर से इसका जल मार्ग जुड़ा हुआ है। लेकिन मंदिर में कहा छेद है, यह आज तक कोई ढूंढ नहीं पाया। मंदिर के शिवलिंग पर होने वाले दूध व जलाभिषेक इस गुप्त रास्ते से कुंए में आता है। लोगों की मान्यता है कि इस कुंए में नहाने से चर्म रोग ठीक हो जाते हैं। लोग दैनिक प्रयोग व पीने में भी इस पानी का प्रयोग करते हैं। कस्बे के लोगों ने इसका जीर्णोद्धार करा दिया है। शल्लेश्वर मंदिर समिति अध्यक्ष स्वामी प्रसाद यादव ने कहा कि मंदिर बहुत प्राचीन है। निर्माण किसने और कब कराया सब कुछ गर्त में है। कोई चंदेलकालीन तो कोई इसे राजा शल्य की राजधानी का मंदिर बताते हैं।

सरीला के शल्लेश्वर मंदिर का भव्य शिवलिंग, भक्तों की अटूट आस्था। महाशिवरात्रि में भव्य शिव बरात निकाली जाती है। मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है।


शिव मंदिर का इतिहास

सरीला जनपद हमीरपुर का एक अति पिछड़ा क्षेत्र है, यह क्षेत्र अपने आप मे महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। यह क्षेत्र कई तपस्वीयों व ऋषि मुनियों की कर्मभूमि रहा है। जहां जहां के अवशेष अपने गर्भ में एक लंबा इतिहास छिपाये हुये है। बुंदेलखंड का इतिहास महाभारत काल से माना जाता है। महाभारत काल में सोलह महाजनपद थे जिनमें से एक जनपद चेदि था जिसको आज बुंदेलखंड के नाम से जाना जाता है। चेदि महाजनपद की राजधानी शुक्तिमती थी, इस जनपद के प्राचीनतम राजा शिशुपाल थे जिन्हें श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से मारा था।

इसी प्राचीनतम अच्छेचेदि प्रदेश का छोटा सा हिस्सा है - सरीला। जिसमें अति प्राचीनतम शिवलिंग स्थापित हैं "शल्लेश्वर मंदिर"में। जिसकी वजह से लाखों श्रद्धालु अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करने इस मंदिर में उपस्थित होते हैं। आज भी लाखों लोग शिवरात्रि के पावन पर्व पर इस मंदिर में इस शल्लेश्वर धाम मे माथा टेकने आते हैं। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से बुंदेलखंड में गुप्त काल को स्वर्ण युग माना गया है। गुप्त काल में इस क्षेत्र में मंदिरों, गुफाओं,और वास्तुकला का उदय हुआ उससे पहले मंदिरों का उल्लेख नहीं मिलता है। बुंदेलखंड क्षेत्र में मंदिरों का निर्माण गुप्त काल में शुरू हुआ और चंदेल काल तक उसका विस्तार चरम पर था। बुंदेलखंड में चंदेलों का सम्राट 9वीं शताब्दी में स्थापित हुआ।

चंदेल काल में प्रथम राजा चंद्रवर्धन थे जो चंद्रवंशी क्षत्रिय थे। बुंदेलखंड में सबसे ज्यादा मंदिरों का निर्माण चंदेल काल में हुआ राजा परम लाल 1202 तीसरी में कुतुबुद्दीन एबक से पराजित होकर कालिंजर चले गये थे। क्षेत्र मुस्लिम शासकों के अधीन हो गया था। इस चेदि प्रदेश या बुंदेलखंड में विशालकाय मंदिरों की स्थापना हुई जो आज पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं। श्री शल्लेश्वर धाम सरीला में प्राचीनतम शिवलिंग हैं। यहां पर बने मठ को देखने से प्रतीत होता है कि उनका निर्माण गुप्तकाल एवं चंदेल काल के मध्य हुआ भगवान शिव के शिवलिंग को देखें तो चंदेलकाल के पूर्व का निर्माण माना जा सकता है। मठ में गुम्बद दीवार होने से यह चंदेलकालीन प्रतीत होता है।सरीला स्टेट की वंशावली महाराजा छत्रसाल से प्रारंभ हुई। आज सरीला स्टेट हमीरपुर जनपद की एक तहसील है यहां प्रतिवर्ष शिवरात्रि के पावन वर्ष पर लाखों श्रद्धालु इस शिवलिंग पर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करने आते हैं। प्रत्येक वर्ष महाशिवरात्री पर निकलती है।


श्री शैलेश्वर महाराज की बारात

शिव बारात में अलौकिक,धार्मिक, विभिन्न झाकिया सहित तरह तरह के सांग्स निकाले जाते है। रात्रि में जगह जगह सांस्कृतिक कार्यक्रम का व राम जानकी मंदिर में विशाल भंडारे आयोजन किया जाता है।।                           

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