आजादी के आंदोलन में जिस कर का हुआ था विरोध, उसकी वसूली जारी आज भी

नमक, सभ्यताओं की शुरुआत के बाद से, कारोबार की एक महत्वपूर्ण वस्तु रहा है। इसे विभिन्न सरकारों द्वारा राजस्व के स्रोत के रूप में माना जाता रहा है। उदाहरण के लिए इस पर उत्पाद शुल्क और एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने का कर आदि लगते रहे।

Update:2020-02-24 19:22 IST

रामकृष्ण वाजपेयी

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जिस नमक पर कर के विरोध में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सत्याग्रह किया, मुंशी प्रेमचंद ने नमक का दरोगा कहानी लिखी उस नमक पर आज भी कर वसूला जाना बदस्तूर जारी है। सरकारें 19वीं सदी के पहले से लेकर आज तक नमक पर कर लगाती आ रही है और उसे जनता से वसूल किया जाता है। आज ही के दिन 24 फरवरी 1944 को लागू हुआ सेंट्रल एक्साइज एंड साल्ट एक्ट कतिपय संशोधनों के साथ आज भी अमल में है और आप नमक पर कर चुका रहे हैं।

नमक का इतिहास

नमक, सभ्यताओं की शुरुआत के बाद से, कारोबार की एक महत्वपूर्ण वस्तु रहा है। इसे विभिन्न सरकारों द्वारा राजस्व के स्रोत के रूप में माना जाता रहा है। उदाहरण के लिए इस पर उत्पाद शुल्क और एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने का कर आदि लगते रहे। हालांकि नमक पर लगने वाले कर पर प्रशासनिक नियंत्रण में एकरूपता नहीं रही। अलग अलग प्रांतों व तत्कालीन भारतीय रियासतों अपनी अपनी कर प्रणाली रही। 1802 के एक दस्तावेज के अनुसार उससे पहले से नमक विभाग अस्तित्व में रहा है।

प्लोडन का प्लान

नमक से काफी राजस्व इकट्ठा करने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार ने वर्ष 1856 में प्लोडन को नियुक्त किया, उन्होंने इस संबंध में किसी प्रणाली की संभावना की जांच की ताकि भारत में नमक का निर्माण और बिक्री आसान बनायी जा सके।

प्लोडन ने अपनी रिपोर्ट में पूरे क्षेत्र में एक्साइज सिस्टम के क्रमिक विस्तार और शुल्क में कमी के लिए सिफारिश की। भारत सरकार ने आयुक्त की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया और तदनुसार लाइसेंस प्रणाली बनाई। इन शर्तों के पालन न करने की स्थिति में कड़ी कार्रवाई वाले अधिनियम को लाया गया।

जिला कलेक्टर करते थे कलेक्शन

उस समय नमक राजस्व का संग्रह मूल रूप से जिलों के कलेक्टर किया करते थे। जिनके नियंत्रण में प्राधिकरण नमक राजस्व के आयुक्त थे। बाद में 1876 में भारत सरकार द्वारा नियुक्त एक आयोग की सिफारिश पर एक नमक आयुक्त के अधीन इसे एक अलग विभाग किया गया।

नमक कर वसूली के लिए ऐसी ही प्रणाली बाम्बे और कलकत्ता प्रेसीडेंसी में लागू की गई। 1873 के नमक एक्ट के अनुसार साल्ट रिवेन्यू इकट्ठा करने का काम कलेक्टर्स को ट्रांसफर किया गया।

नमक राजस्व

इसी तरह बंगाल में विदेशी नमक के आयात और जारी करने का नियंत्रण केंद्रीय राजस्व बोर्ड के तहत काम करने वाले कलकत्ता के कस्टम कलेक्टर के हाथों में था। उत्तरी भारत के नमक राजस्व विभाग का संचालन आयुक्त उत्तरी भारत के नमक राजस्व द्वारा किया जाता था। इसके बाद नमक अधिनियम में 1880 और 1890 के दौरान कुछ संशोधन किया गया। इसके और बाद में भारत सरकार अधिनियम, 1919 के तहत नमक आयुक्त के कुछ कार्य प्रांतीय सरकार को हस्तांतरित किए गए।

नमक की यात्रा

भारत सरकार अधिनियम, 1935 के पारित होने के बाद से, नमक पर कर का विषय केंद्रीय सूची में आ गया। 1938 में नमक विभाग को आबकारी के संग्रह को सौंपने का निर्णय लिया। बंगाल में नमक प्रशासन को केंद्रीय उत्पाद शुल्क और नमक, उत्तरी भारत विभाग बंगाल सरकार से 1 अप्रैल, 1939 से ले लिया गया और यह व्यवस्था दिसंबर, 1939 तक और उसके बाद भी जारी रही।

1944 में 24 फरवरी को सेंट्रल एक्साइज और साल्ट एक्ट लागू हुआ था। इस याद में 24 फरवरी को नमक कर दिवस मनाया जाता है। तमाम संशोधनों के बावजूद नमक कर का कानून आज भी लागू है।

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