'पिंक टेस्ट': ईडन गार्डन का ये है इतिहास, प्लेयर्स को उठानी पड़ सकती हैं परेशानियां
भारतीय क्रिकेट टीम कोलकाता के ईडन गार्डन्स में नया इतिहास रचने को लिए तैयार है। बांग्लादेश के खिलाफ शुक्रवार को दोपहर 12.30 बजे टॉस होते ही भारतीय क्रिकेट इतिहास में नया अध्याय जुड़ जाएगा।
कोलकाता: भारतीय क्रिकेट टीम कोलकाता के ईडन गार्डन्स में नया इतिहास रचने को लिए तैयार है। बांग्लादेश के खिलाफ शुक्रवार को दोपहर 12.30 बजे टॉस होते ही भारतीय क्रिकेट इतिहास में नया अध्याय जुड़ जाएगा। भारतीय क्रिकेट टीम के लिए उसका 540वां टेस्ट बहुत ही खास है। वह पहली बार दिन-रात्रि टेस्ट खेलेगी वो भी अपने घर में और यह गौरव हासिल हुआ है ऐतिहासिक ईडन गार्डन्स को।
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जानकारी के मुताबिक दोनों टीम कोलकाता के ईडन गार्डन पहुंच चुकी है।
एशिया का सबसे पुराना टेस्ट ग्राउंड- 1934 से अब तक
भारतीय क्रिकेट टीम में ईडन अहम स्थान रखता है। क्योंकि ये एशिया का सबसे पुराना टेस्ट ग्राउंड है, जहां 1934 से टेस्ट मुकाबले खेले जा रहे हैं। यहां पहला टेस्ट इंग्लैंड के खिलाफ 5 से 8 जनवरी (1934) तक खेला गया था। भारत के पहले कैप्टन सीके नायडू के नेतृतव में खेला गया यह टेस्ट ड्रॉ रहा था। और अब यहां खेला जाने वाला 42वां टेस्ट डे-नाइट टेस्ट होगा, जो गुलाबी गेंद से खेला जाएगा।
इंग्लैंड के बाहर पहली बार ईडन में वर्ल्ड कप फाइनल -1987 में
कोलकाता के ईडन गार्डन्स को 'क्रिकेट का मक्का' कहे जाने वाले लॉर्ड्स के बाद पहले स्टेडियम के तौर पर जाना जाता है, जहां इंग्लैंड के बाहर पहली बार 8 नवंबर 1987 को वर्ल्ड कप फाइनल खेला गया था। इससे पहले खेले गए तीनों वर्ल्ड कप फाइनल (1975, 1979 और 1983) लॉर्ड्स में खेले गए थे। अभी तक सबसे ज्यादा 5 बार वर्ल्ड कप पर कब्जा कर चुके ऑस्ट्रेलिया ने इसी मैदान पर 1987 में इंग्लैंड को फाइनल में हरा पहली बार वर्ल्ड कप जीता था।
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— BCCI (@BCCI)
एशियन टेस्ट चैम्पियनशिप का पहला मैच ईडन में- 1999 में
एशियन टेस्ट चैम्पियनशिप की बात करें, तो ईडन गार्डन्स में इस टूर्नामेंट का शुरुआती मैच खेला गया था। साल 1999 में 16 से 20 फरवरी तक खेले गए इस टेस्ट मैच में भारत को पाकिस्तान के हाथों 46 रनों से हार का सामना करना पड़ा था। वैसे तो, क्रिकेट कैलेंडर में यह नियमित चैम्पियनशिप नहीं बन सकी। दो ही बार (1998-99 और 2001-02) यह चैम्पियनशिप हो पाई।
उपमहाद्वीप में पहली बार डे-नाइट टेस्ट ईडन में- 22 नवंबर 2019 से
अब 22 नवंबर का दिन न सिर्फ ईडन के लिए, बल्कि भारतीय क्रिकेट के लिए मील का पत्थर साबित होने जा रहा है। भारतीय उपमहाद्वीप में पहली बार डे-नाइट के आयोजन ने कोलकाता को 'पिंक सिटी' में तब्दील कर दिया है। सौरव गांगुली के BCCI अध्यक्ष बनने के बाद भारत के गुलाबी गेंद से खेलने का रास्ता साफ हुआ। उन्होंने कहा था कि कप्तान विराट कोहली इसके लिए सिर्फ तीन सेकेंड में मान गए थे। इस पिंक टेस्ट को लेकर कोलकाता में जमकर उत्साह है, मैच के शुरुआती चार दिनों के टिकट बहुत टाइम पहले ही बिक चुके हैं।
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ईडन का यह मैच विश्व क्रिकेट का 12वां डे-नाइट टेस्ट
ईडन गार्डन्स का मैच विश्व क्रिकेट का 12वां डे-नाइट टेस्ट है। पहला डे-नाइट टेस्ट 2015 में 27-29 नवंबर तक एडिलेड में खेला गया था। ऑस्ट्रेलिया ने न्यूजीलैंड के खिलाफ यह मुकाबला महज तीन दिनों में 3 विकेट से जीता था।
अब तक किसने कितने डे-नाइट टेस्ट खेले हैं
ऑस्ट्रेलिया ने सर्वाधिक 5 डे-नाइट टेस्ट खेले हैं। पाकिस्तान, वेस्टइंडीज, श्रीलंका और इंग्लैंड ने 3-3, न्यूजीलैड और साउथ अफ्रीका ने 2-2, जबकि जिम्बाब्वे ने एक टेस्ट मैच खेला है।
अब तक कहां-कहां खेले गए हैं डे-नाइट टेस्ट
ऑस्ट्रेलिया में सबसे ज्यादा पांच डे-नाइट टेस्ट खेले गए हैं। यूएई में 2, जबकि वेस्टइंडीज, न्यूजीलैंड, साउथ अफ्रीका और इंग्लैंड में 1-1 टेस्ट मैच खेला गया है।
क्रिकेटर को स्टेडियम में उठानी पड़ती है ये परेशानियां
डे-नाइट टेस्ट में ढलती शाम के समय फ्लट लाइट ऑन हो जाती हैं। उस समय बैट्समैन को आने वाली परेशानी को लेकर काफी चर्चा हुई थी। इस 'ट्विलाइट जोन' से सामंजस्य बैठाने को लेकर काफी चर्चा हुई है। भारत के कुछ प्लेयर्स ने इस ट्विलाइट में गुलाबी गेंद को देखने में आने वाली समस्या के बारे में बातें कही थीं। ये खिलाड़ी दिन-रात प्रारूप में दिलीप ट्रॉफी खेल चुके हैं।
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इसके अलावा बांग्लादेश के भी किसी प्लेयर को गुलाबी गेंद से खेलने का अनुभव नहीं है। ऐसे में उनके लिए भी यह मैच काफी चुनौतीपूर्ण होने वाली है।
कौन-कौन सी परेशानियां आएंगी?
1. ईडन गार्डन्स में ढलती शाम के दौरान घूमती हुई गुलाबी गेंद पर पूरी तरह नजर बैठाने में बैट्समैन को परेशानी हो सकती है। दिन के उजाले में रेड बॉल को देखना जितना आसान होता है, वैसा पिंक बॉल के साथ नहीं है।
2. कोलकाता में शाम के बाद ओस गिरती है, जिससे गेंद गीली होकर भारी हो जाती है। बॉल को ग्रिप न कर पाने की वजह से स्पिनरों के लिए टर्न दिला पाना आसान नहीं होगा।
3. विराट कोहली ने कहा है कि इस बॉल से फील्डिंग करना काफी मुश्किल है। गुलाबी गेंद की तुलना हॉकी गेंद से की है। उन्होंने कहा है कि पिंक बॉल काफी तेजी से फील्डर के हाथ में लगती है। ये बॉल एकदम हॉकी के भारी बॉल की तरह है।
4. ऊंचे कैच पकड़ना मुश्किल होगा। लाल और सफेद गेंद में पता होता है कि बॉल किस गति से नीचे आ रही है, जबकि गुलाबी गेंद के साथ इसका अंदाजा लगाना आसान नहीं होगा।