Zimbabwe Cricket: जिम्बाब्वे क्रिकेट टीम की हालत खराब, खिलाड़ी ने ये फोटो शेयर कर बयां किया दर्द
zimbabwe cricket: जिम्बाब्वे के बल्लेबाज रेयान बर्ल ने देश के क्रिकेट की हालत को बयां किया है।
Written By : Dharmendra Singh
Update:2021-05-24 18:02 IST
Zimbabwe Cricket: जिम्बाब्वे क्रिकेट इस समय आर्थिक संकट से गुजर रहा है। जिम्बाब्वे के बल्लेबाज रेयान बर्ल ने देश के क्रिकेट की हालत को बयां किया है। जिम्बाब्वे क्रिकेटरों को जूते की मरम्मत खुद करनी पड़ रही है। 27 वर्षीय क्रिकेटर ने सोशल मीडिया पर एक तस्वीर पोस्ट की है। इस पोस्ट में उन्होंने फटे हुए जूतों का दिखाया है। उन्होंने टीम के लिए स्पाॅन्सर लाने की भावुक अपील की है।
जिम्बाब्वे के क्रिकेटर रेयान बर्ल बाएं हाथ के बल्लेबाज हैं। उन्होंने देश के लिए तीन टेस्ट, 18 एकदिवसीय अन्तरराष्ट्रीय और 25 टी20 अन्तरराष्ट्रीय मैच खेले हैं। बर्ल ने अपने जूते की फोटो, गोंद और उसको ठीक करने के सामान की तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट की है।
दुनिया के कई क्रिकेटर स्पाॅन्सर से करोड़ो डॉलर की कमाई कर रहे हैं ऐसे बर्ल ने सोशल मीडिया पर सवाल किया है कि क्या कोई संभवाना है कि हमें भी कोई स्पाॅन्सर मिलेगा जिससे हमे हर सीरीज के बाद अपने जूतों को चिपकाना नहीं पड़ें। बर्ल के इस ट्विटर पर किए इस पोस्ट के जवाब में पूमा ने कहा कि गोंद को फेंक देने का वक्त आ गया है, हम आपकी मदद करेंगे।
1992 में जिम्बाब्वे का मिला टेस्ट का दर्ज
जिम्बाब्वे को विश्व कप 1983 से पहले एकदिवसीय अन्तरराष्ट्री टीम का दर्जा मिली था जबकि 1992 में टीम टेस्ट को दर्जा प्रप्त हुआ। हालांकि जिम्बाब्वे की टीम बीते कुछ दिनों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुश्किलों का सामना कर रही है। जिम्बाब्वे को एलिस्टेयर कैंपबेल, फ्लावर बंधुओं एंडी और ग्रांट, डेव हॉटन, नील जॉनसन और हीथ स्ट्रीक जैसे खिलाड़ियों ने काफी सफलता दिलाई, लेकिन इनके जैसा क्रिकेटर जिम्बाब्वे तैयार नहीं कर पाया।
आईसीसी ने सरकार के हस्तक्षेप के चलते साल 2019 में जिम्बाब्वे क्रिकेट बोर्ड को निलंबित कर दिया और बीते साल टीम को टी20 विश्व कप क्वालिफायर में हिस्सा नहीं लेने दिया गया, हालांकि जिम्बाब्वे को बाद में इजाजत दे दी। हाल ही में पाकिस्तान ने जिम्बाब्वे के खिलाफ दो टेस्ट की सीरीज और टी20 सीरीज जीती है।
जिम्बाब्वे की शुरुआत रही खराब
1983 में विश्व कप (तब प्रूडेंशियल कप) में जिम्बाब्वे पांच मैच हार गया, लेकिन इसके बाद ऑस्ट्रेलिया को हराकर टूर्नामेंट में अपने होने का ऐहसास कराया। इसके बाद 1987 वर्ल्ड कप में जिम्बाब्वे की छह ग्रुप स्टेज मैच हार गया। 1992 के विश्व कप में जिम्बाब्वे को आठ राउंड रॉबिन मैचों में से सात में हार का सामना करना पड़ा। टीम ने एकमात्र जीत इंग्लैंड के खिलाफ हासिल की। जिम्बाब्वे की इस जीत की क्रिकेट इतिहास में बड़े उलटफेरों में गिनती होती है।
उस मैच के दौरान जिम्बाब्वे ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 134 रन बनाए। इसके बाद लक्ष्य का पीछा करने उतरी इंग्लैंड की टीम 125 रन ही बना पाई। जिम्बाब्वे की तरफ से तेज गेंदबाज एडो ब्रांडेस ने चार विकेट छटके थे। जिम्बाब्वे के इस प्रदर्शन से प्रभावित होकर आईसीसी ने टीम को टेस्ट का दर्जा दे दिया था। लेकिन जिम्बाब्वे का शुरुआत के 30 टेस्ट में बेहद खराब प्रदर्शन रहा है। टीम ने पाकिस्तान के खिलाफ सिर्फ एक टेस्ट में जीता हासिल की।
जिम्बाब्वे का सुनहरा दौर
साल 1997 से लेकर 2002 तक इन पांच वर्षों में जिम्बाब्वे का सुनहरा दौरा था। जिम्बाब्वे को सफलता दिलाने में हीथ स्ट्रीक, फ्लावर बंधुओं, हेनरी ओलोंगा, नील जॉनसन जैसे खिलाड़ियों ने अहम भूमिका निभाई। जिम्बाब्वे ने साल 1998 में पाकिस्तान को उसके घर में टेस्ट सीरीज में 1-0 से शिक्स दी। इसी साल टीम ने हरारे टेस्ट में भारत को मात दी।
जिम्बाब्वे ने सबसे अच्छा प्रदर्शन 1999 के विश्व कप में किया जब उसने सुपर सिक्स में पांचवां स्थान हासिल किया। टीम ने ग्रुप स्टेज में भारत को 3 रनों से शिक्सत दी। जिम्बाब्वे की टीम ने दक्षिण अफ्रीका को भी हराया। यह जिम्बाब्वे की अफ्रीका के खिलाफ यह पहली जीत थी। साल 2000-01 में टीम ने न्यूजीलैंड के खिलाफ घर और बाहर दोनों स्थान पर जीत दर्ज की।
बुरे दौर की शुरुआत
साल 2003 के विश्व कप की मेजबानी जिम्बाब्वे और दक्षिण अफ्रीका ने संयुक्त रूप की। जिम्बाब्वे के पहले मैच में एंडी फ्लावर और हेनरी ओलोंगा ने सरकार के रवैये से नाराज होकर काले रंग की पट्टी पहनी थी। उन्होंने इसे 'लोकतंत्र की मौत' का शोक मनाना कहा था। इसके बाद दोनों खिलाड़ियों ने इंटरनेशनल क्रिकेट से संन्यास की घोषणा कर दी। दोनों को देश निकाला का सामना करने के लिए भी मजबूर होना पड़ा।
साल 2004 में जिम्बाब्वे क्रिकेट यूनियन तत्कालीन कप्तान हीथ स्ट्रीक को बर्खास्त कर दिया। इसके खिलाफ 14 खिलाड़ियों ने क्रिकेट में सरकारी हस्तक्षेप के खिलाफ बायकॉट करने का ऐलान कर दिया। साल 2005 में जिम्बाब्वे सरकार के मुरामात्सविना (मूव द रबिश) अभियान से क्रिकेट के साथ ही देश की पूरी सामाजिक स्थिति बाधित हो गई। सरकार इस अभियान के जरिए देशभर में झुग्गी बस्तियों को जबरन खाली कराना चाहती थी। संयुक्त राष्ट्र (UN) के आंकड़ों के मुताबिक, इस अभियान से करीब सात लाख लोग बेरोजगार हो गए और उन्होंने रोजी-रोटी के लिए दर-दर भटकना पड़ा। 2006 में जिम्बाब्वे की प्रथम श्रेणी प्रतियोगिता (लोगान कप) को सस्पेंड किया गया। देश की आर्थिक हालात खराब होने और खिलाड़ियों को लंबे समय तक सैलरी नहीं मिलने से जिम्बाब्वे क्रिकेट गर्त में चला गयाय। साल 2006 में राजनीतिक अस्थिरता की वजहे से जिम्बाब्वे का टेस्ट दर्जा निलंबित कर दिया गया।
6 साल बाद जिम्बाब्वे की 4 अगस्त 2011 को टेस्ट क्रिकेट में एंट्री हुई। जिम्बाब्वे क्रिकेट ने घरेलू प्रतियोगिताओं के आयोजन और किट के निर्माण के लिए रीबॉक के साथ 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर का सौदा किया। मंदी शुरुआत से पहले 2014 तक स्थिति ठीक रही। साल 2014 में टी20 विश्व कप में जिम्बाब्वे की टीम को पहले दौर से ही बाहर होना पड़ा। 2017 में जिम्बाब्वे ने श्रीलंका को एकदिवसियी सीरीज में 3-2 से हराया। 2019 के विश्व कप के लिए टीम क्वालिफाई नहीं कर पाई। इसके बाद से सरकार का हस्तक्षेप बढ़ गया। वर्तमान में जिम्बाब्वे की आर्थिक हालत बिल्कुल खराब है।